पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२४१

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अणुवीक्षण-अणुश्रोत्र २३५ -चिह्नित दर्पणसे इस छिद्रमें होकर आलोक आ कि प्रदीप किस स्थानमें रखने से दर्पण पर उसका जाता है। दर्पण, यन्त्रमें इसतरह लगाया गया है, कि प्रतिविम्ब पड़ परीक्षाको वस्तुपर भी पहुंच सकता प्रयोजनानुसार वह चारो ओरको हटाया जा सके । है। यह समस्त भली भांति करने के लिये विशेष सिवा इसके आवश्यकतानुसार आलोक भी घटाया कोई नियम नहीं। एकबार अणुवीक्षणको परीक्षा बढ़ाया जा सकता है। बाहुवाले घ-चिह्नित प्रान्तके देखनेसे सभी लोग अनायास यन्तुको ठोक कर नौचे -चिह्नित एक गोलाकार धातुखण्ड विद्यमान सकते हैं। है। इसमें छोटे-बड़े चार छिद्र बने हैं। दर्पणका एक-एक अणुवीक्षणमें अनेक अक्षिदर्पण (eye- आलोक इन छिद्रोंसे परीक्षाको वस्तुपर जा पड़ता है। piece ) एवं आधार-मुकुर (object-glass ) रहते अधिक आवश्यक होनेपर बड़ छिट्र और अल्प आवश्यक हैं। इन सब शीशोंके गुणसे वस्तु बहुत या कुछ होनेपर छोटे छिट्रसे आलोक डाला जाता है। बड़ी देख पड़ती है। इससे प्रयोजनानुसार जिस अणुवीक्षण ठीक हो जानेसे भी वस्तुको देखना तरह अक्षिदर्पण और आधार-मुकुर लगाये जायेंगे, कुछ कठिन है। यन्त्रको इसतरह रखना, और वस्तु भी उसीतरह बड़ी किंवा छोटी दिखाई देगी। आधार-मुकुर ( object-glass) परीक्षाको वस्तुसे अणुवीक्षण अनेक प्रकारके होते हैं, किन्तु बनावट इतनी दूर रहना चाहिये, जिसमें आधार-मुकुरके सबको एक हो जैसी है। भीतरसे वस्तुका जो प्रतिविम्ब निकले, वह पौतल दिनालिक ( binocular microscope) नामक वाले नलके भीतर ही रहे। सिवा इसके दूसरी एक दूसरी तरहका अणुवीक्षण होता है। अभी भी एक बात है। वस्तुका प्रतिविम्ब अक्षिदर्पण जिस अणुवीक्षणकी बात कही गई है, उसमें पोतल- (eye-piece ) और प्रधान अक्षप्रदेशके (principal के तीन नल ऊपर-ऊपर लगे रहते हैं। हिनालिक focus ) मध्यमें और अक्षप्रदेशसे जितनी दूर अणुवीक्षणमें ऐसे ही और तीन नल होते हैं। इसके रहनेपर खूब स्पष्ट और बड़ा देख पड़े, उसको भी अक्षिदर्पण भिन्न-भिन्न हैं, इसीसे दो शीशे लगाकर उपयुक्त व्यवस्था होना चाहिये। साधारणतः, प्रति दोनो आंखोंसे देखा जाता है। फिर आधार-मुकुर एक कृति अक्षिदर्पणमें १०१२ इञ्च दूर रहनेसे यह ही रहता है। अक्षिदर्पण द्वारा दो प्रतिकृति पड़ती उद्देश्य सिद्ध होता है। फिर भी, सबके चक्षुका हैं। किन्तु ठीक एककाल और एकभावसे देखा तेज समान नहीं, इसीसे यह दूरी घट-बढ़ भी जाती जानेके कारण दो प्रतिकृति नहीं मालूम देतीं। है। यह सब ठीक-ठाक करनेके लिये पहले इस यन्त्र द्वारा वस्तुका सकल दिक् खूब अच्छी ऊपरवाले दोनो पोतलके नल नोचेवाले नलके बीचसे तरह देखने में आता है। चढ़ा किंवा उतार, आधार-मुकुरको वस्तुसे इतनी अणुव्रत (सं० पु०) जैनियोंके गृहस्थ-धर्मका एक दूर रखना पड़ेगा, जिसमें उसकी प्रतिकृति कितने अङ्ग, जिसमें प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तदान, मैथुन ही परिमाणसे स्पष्ट दिखाई दे। और परिग्रह यह पांच विरमण या यम होते हैं। पश्चाद्भागवा नल द्वारा समस्त यन्त्र इधर-उधर अणुव्रीहि (सं० पु०) अणुः सूक्ष्मो व्रीहिः धान्यं घुमाने-फिरानेसे जब वस्तु खूब स्पष्ट और बड़ी देख कर्मधा। सूक्ष्म धान्य । धान्य, जिसका अन्न बहुत पड़े, तब समझ लेना चाहिये, कि अणुवीक्षण ठोक छोटा और बढ़िया होता है। मोतीचूर । तौरसे रखा गया है। फिर, थ-चिह्नित दर्पण ठोक अणुश्रोत्र (सं० क्लो० ) अणुः सूक्ष्मशब्दः श्रूयते अने- करके रखना चाहिये, जिसमें ठीक-ठीक आलोक माइक्रोफोन (Microphone) नामक एक पहुंच सके। सूर्यका प्रचुर आलोक न रहने से प्रदीप यन्त्र, जिसके द्वारा बहुत ही सूक्ष्म शब्द सहजमें सुन जला ले। यह अच्छी तरह देख लेना चाहिये, पड़ता है। सन् १८७८ ई. में अध्यापक हियुजने इसके बाद नेति ।