पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२४२

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२३६ अणुशस् -अगड इम यन्त्रको आविष्कार किया था। इस यन्त्रका ऐसा हुई, बाकी तीन श्रेणो जन्तुओंकी हैं। युरोपके चमत्कार है, कि एक छोटी मक्खीके चलकर घूमने भी प्राणितत्त्ववित् पण्डितोंने जन्तुओंको उत्पत्तिका पर दो-तीन कोस दूरसे उसके पैर चलानेका शब्द तीन प्रकार नियम निश्चित किया है। किन्तु उनकी अनायास साफ़-साफ़ सुनने में आता है। विलायती व्यवस्था दूसरी तरहको है। बहुत दिन पता विलो नामक वृक्षका कोयला ही इस यन्तका प्रधान लगाने के बाद उन्होंने ऐसा निश्चय किया, कि उपादान है। किसी-किसी जीवका शरीर काट दो टुकड़े कर अणुशस् (सं० अव्य०) टुकड़े-टुकड़े। डालनेसे उसके एक-एक टुकड़े से पहलेको भांति अणुह (सं० पु०) भीमराजके एक पुत्र । एक-एक जन्तु उत्पन्न होता है। उसी एक जन्तुके अणुभाव (सं० पु०) अणुत्व, जर्रा होनेको हालत । (स. क्लो०) अम-गत्यादिषु-ड। अमन्ति सम्प्रयोगं यान्ति अनेन । अमन्ताउडः। उप १११११॥ १ अण्डा । २ कोष । ३ मुष्क । ४ वीर्य । ५मृगनाभि। अण्ण' खगादिकोषे स्यान्मुक वीर्येऽपि च क्वचित् । (विश्वप्रकाश) व्यवच्छेद द्वारा जीवोत्पत्ति। अण्ड शब्दका ही अपभ्रश अण्डा है। जीव उत्पन्न दो टुकड़े करनेपर फिर एक-एक टुकड़ेसे ठीक वैसे होनेकी पहली अवस्थामें मनुष्यों, गायों, पशु-पक्षियों, ही जन्तु उद्भूत हुआ करते हैं। इसीतरह मछलियों, कौड़े-मकोड़ों प्रभृति सभी प्राणियोंकी एक जन्तु जितने बार दो टुकड़े किया जायेगा, स्त्री-जातिके गर्भमें अण्ड होते हैं। इनमें मनुष्य, उतने ; ही बार उसके हरेक टुकड़ेसे एक-एक पशु प्रभृति कोई कोई जन्तुओंके गर्भसे ही प्राणी निकलेगा। इस प्रक्रियाको व्यवच्छेद (fission ) अण्डा पक जाया करता ; पीछे जरायुसे सन्तान द्वारा जीव उत्पन्न करना कहते हैं। जलमें उत्पन्न होती है। किसी-किसी जन्तुके गर्भ में सन्तान जो कितने ही प्रकारके कौड़े रहते हैं, उनकी उत्पन्न नहीं होती। पक्षी, मछली प्रभृति कितने उत्पत्ति इसीतरह होती है। सड़ा हुआ मछली- हो जन्तु अण्डे देते हैं। अन्तमें भूमिष्ठ होने, और मांस खानेसे पटमें फ़ोते जैसा एक प्रकारका कौड़ा अण्डा पकनेके बाद बच्चा बाहर निकलता है। उत्पन्न होता है। पहले उसके शरीरमें जगह-जगह प्राणितत्त्वज्ञोंने देखा है, कि जगत्में मनुष्यसे लेकर गांठ पड़ जाती, धौर-धीरे गांठके मिट जाने- कौड़े-मकोड़ेतक जितने प्रकारके जीव हैं, उन सबको पर उससे एक-एक स्वतन्त्र कौड़ा निकलता है। उत्पत्तिका नियम बराबर नहीं होता। हमारे वर्षा ऋतु आनेपर गांवोंके सड़े तालाबोंमें जोंक जैसा शास्त्रकारोंने चार प्रकारको उत्पत्ति बताई है। एक प्रकारका कौड़ा उत्पन्न होता है। कुछ दिन जैसे,-१ जरायुज-यानी मनुष्य, गो, महिष प्रभृति । बाद उसकी पूंछको ओर दूसरा एक कौड़ा उत्पन्न हो २ अण्डज-जैसे पक्षी, मछली इत्यादि। जाता है। दे कोआत्रेफरी (De quatrefages) नामक जैसे कौड़े, खटमल आदि। ४. उभिद्यानी किसी प्राणितत्त्ववित् पण्डितने सिलिस ( Syllis) वृक्ष, लता प्रभृति । उन्होंने सब जीवोंको चौरासी लाख नामक एक प्रकार कौड़ेके शरीरको परीक्षाकर देखा श्रेणियों में बांटा है। इन चौरासी लाख श्रेणियोंमें है, कि उसको देह टूटनेसे और भी नये-नये कौड़े चार लाख मनुष्य, तेईस लाख चौपाये, दश उत्पन्न होनेके समय पूछकी ओर अंगूठी जैसी लाख पक्षी, ग्यारह लाख कौड़े, सत्ताईस लाख कितनी ही गांठे देख पड़ती हैं, और पहली ही स्थलचर और नौ लाख जलचर हैं। शास्त्रकारों को गांठके ऊपर एक दाग बन जाता है। थोड़े हो लिखी चार श्रेणियों में एक श्रेणी तो उभिदको दिनमें इस गांठके ऊपर शिर और आंखें निकल आती ३ खेदज-