पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२४४

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अण्ड फट मनुष्य और विधाताने इनके एक ही शरीरमें यह दोनो प्रकारको। शैशवसे प्रौढ़ावस्था तक सभी अवस्थाओंमें कोष इन्द्रियां बना दी हैं। इसके विरुद्ध किसी-किसी विद्यमान रहते देखे जाते हैं। धीरे-धीरे बढ़ने जातिके स्त्री-पुरुष विधाताने अलग-अलग सांचेमें और पकनेपर यह कोष अण्डाधारके ऊपर उठते ढाले हैं। हैं। इन कोषोंके बीच में लार-जैसा पदार्थ रहता है। बिना पुरुष-संसर्ग कितने ही प्राणियोंके मनुष्यका अण्ड भी बहुत ही छोटा होता है । अण्ड सन्तान उत्पन्न नहीं होती। किन्तु अण्डको धीरे-धीरे बड़ा हो आनेपर भीतरके कुसुमादि बढ़ते उत्पत्ति ऐसी नहीं। बिना पुरुषके संसर्ग हो अण्डा रहते और ऊपरका आवरण-चर्म पतला होता चला उत्पन्न हुआ करता है। क्या मनुष्य, गो, बकरा, जाता, इसीसे अन्तमें वह फट पड़ता है। भैंस प्रभृति बड़े-बड़े जीव, क्या पक्षी और मछली जानेपर यह कुसुमादि अण्डाधारके ऊपरसे अण्ड- सभी प्राणियों के लिये यही नियम है। सन्तानोत्पत्ति प्रणाली में आ पहुंचते हैं। अण्डाधारसे अण्डके अलग के लिये स्त्रीजातिके शरीरमें चार प्रधान स्थान होते हो अण्डप्रणालीमें आनेसे स्त्रियोंका ऋतुकाल होता हैं,-१ अण्डाधार (ovaries ), २ अण्डप्रणाली है। उसी समय पशु-पक्षी शरीरमें सन्ताप होनेसे (Fallopian tubes or oviducts), ३ जरायु घूमने और बोलने लगते हैं। इसी अवस्थामें पुरुषका (uterus ), ४ योनि (vagina)। संसर्ग होनेसे अण्डके भीतर जीवका सञ्चार होता हाथी, गो, भैंस प्रभृति बड़े बड़े जन्तुयोंको स्त्रीजातिके है। पुरुषका संसर्ग न होनेसे अण्डा सूख जाता है। दो अण्डाधार होते हैं। पक्षिजातिके पेडूवाले वाम कितनों ही ने देखा है, कि पालू हंसों और कबूतरों- भागमें केवल एक ही अण्डाधार रहता है। अण्डा के खाको अण्डा होता है; किन्तु उस अण्डेसे धार, पेड़की दोनो ओर कोखके ऊपर होता है। बच्चा नहीं निकलता। खाकी अण्डा और कुछ इसकी बनावट कमलको कली-जैसी बीचमें मोटी और भी नहीं, बिना पक्षीके संसर्ग पक्षिणी जो अण्डा दोनो ओर नोकदार रहती है। दोनो ओर दो देती है, उसोको खाको अण्डा कहते हैं। अण्डाधार और बीचमें जरायु होती है। अण्डाधारसे मछलौके गर्भमें अण्डेसे जीवका सञ्चार नहीं जरायु तक जो नली है, उसे अण्डप्रणाली कहते हैं। होता। मछलौके अण्डा देनेपर मत्स्य उसी जगह जा जरायुके नीचे योनिमार्ग है। शुक्रत्याग किया करता है। उसी शुक्र यानी वीर्यके अण्ड में लगनेसे बच्चा उत्पन्न होता है। सिर्फ तीमी और कोई-कोई हङ्गरीके गर्भ में अण्डे से बच्चा निकलता है, जो दूसरौ मछलियोंकी तरह अण्डे नहीं देतीं। सब प्रकारके अण्डज जन्तुओंके अण्डोंकी संख्या बराबर नहीं। घोंघा एक ही बार न्यूनाधिक पचास -अण्डप्रणाली: ग-जरायु । अण्डे देता है। दीमक प्रतिदिन अस्सी हज़ारसे कम अण्डप्रणाली कोई चार इञ्च लम्बी होती अण्डे नहीं देती। यह एकादिक्रमसे दो वर्षतक है। जिनके सन्तान नहीं होती, उन स्त्रियोंको अण्डे देती हैं; इसीसे एक-एक दीमकके कोई जरायु तीन इञ्च लम्बी, ऊपरको ओर दो इच्च चौड़ी पांच करोड़तक सन्तान होती है। एक-एक और मुंहानेके पास सिर्फ आध ही इञ्च खुली रहती कछुएके एक बार में कमसे कम पचाससे डेढ़ सौ तक है। छोटे-छोटे कोष विन्दु-विन्दु सदृश निकल सभी अण्डे होते हैं। सचराचर पक्षिजातिके एकबारमें उमरमें अण्डाधारके भीतर संलग्न रहते हैं। दोसे चारतक अण्डे उत्पन्न होते देखे जाते हैं। क-पण्डाधार ।