पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२४८

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२४२ अण्ड-अण्डसू सृष्टिके उत्पन्न करनेको इच्छासे परमात्माने अपने ३ शौशके ऊपर अण्डा रखना।-बराबर जमीनमें एक शरीरमें विविध प्रजा उत्पन्न करनेके विचारपर शौशेका टुकड़ा ख ब जमाकर रखे, जिससे वह किसी पहले जलकी सृष्टि की और उसी जलमें शक्तिरूप ओर ऊंचा-नोचा न रहे। इसके बाद एक सद्यःप्रसूत वीज डाल दिया। यह वीज सोने-जैसा विशुद्ध और अण्डा कितनी ही देरतक हाथमें ले ज़ोरसे हिलाते सहस्रांशु सूर्य-जैसा चमकीला एक अण्डा बन गया। रहे। हिलाते-हिलाते भीतरका फूल और भौतरको इससे सब लोगोंके पितामह स्वयं ब्रह्मा उत्पन्न सफेद लार दोनो चौजें एकमें मिल जायेंगी। इसके हुए। बाद अण्डकी मोटी ओर ऊपर करके उसका नुकोला सन्तालोंका कहना है, कि पहले यह जगत् जल मुह शीशेके ऊपर रखनेसे अण्डा सीधा हो जाया राशिमें डूबा था। उसी समय एक हंस और करता है। सिवा इसके बोतलमें समूचा अण्डा डालना हंसिनी दोनो जलके ऊपर पद्मदलमें वास करते थे। प्रभृति कई तरहके दूसरे तमाशे भी होते हैं। हंसिनीके गर्भवती होनेपर सन्तालोंके देवता मारंबूरो अण्डक (सं० पु.) अण्ड कन् खार्थे । अण्डकोष । उन पक्षियोंको जङ्गलमें ले गये। हंसिनीने वहां अण्डकटाह (सं० लो०) अण्डं ब्रह्माण्ड कटाहमिव । अण्डा दिया। उसी अण्डेसे दो मनुष्योंकी उत्पत्ति ब्रह्माण्ड, कर्मभूमि-जगत् । हुई। उनमें एक पुरुष और एक स्त्री थी। सन्ताल देखो। अण्डकोटरपुष्पी, अण्डकोठरपुष्पी (सं० स्त्री०) अण्ड- बाजीगर अण्डे से कितने ही प्रकारके तमाशे मिव कोठरे पुष्य यस्याः। जिसमें अण्डजैसा फल हो, दिखाया करते हैं। इस जगह इसके सम्बन्धमें कई अजान्वीवृक्ष, नीलराना, नोलवुना। बातें लिखी जाती हैं,- अण्डकोश, अण्डकोष, अण्डकोषक (सं० पु०) अण्डस्य १ अण्डा घुमाना ।-एक भाग लवणाम्ल (Muriatic मुष्कस्थ कोष इव। १ मुष्क, वृषण, वीजपेशिका, acid ) और छः भाग जलसे एक शौशेके बरतनके फोता। २ सीमा । ३ फल । तीन अंश भर दे। इसके बाद उसमें हंसका एक अण्डग (सं० पु०) गोधूम, गेहू। अण्डा डाले ।पहले अण्डे से भाफ बाहर निकल जाती, अण्डज (सं० पु०) अण्डात् जायते, अण्ड-जन्-ड। पोछे अण्डा घूमा करता है। अण्ड के भीतर झिल्ली अण्डसे उत्पन्न होनेवाला (Oviparous )। १ ब्रह्मा । जैसा एक पतला चमड़ा होता, एसिडके तेजसे २ पक्षी। ३ सर्प । ४ मछली इत्यादि। जो छूट जाता है। उस समय सफेद लार या अण्डस्कन्द (सं० पु०) घोड़े के फ़ोतीका एक रोग । रस और फूल दोनो कुछ-कुछ पकते, इसौसे अण्डहस्ती (स' पु०) चक्रमर्दक्षुप । अण्डे के नीचे छोटे-छोटे बुल-बुले उत्पन्न हो जाते अण्डजा (सं० स्त्री०) मृगनाभि, कस्तूरो, मुशक । हैं। उन्हीं बुलबुलोंके कारण अण्डा नौचेसे हलका अण्डजेश्वर (सं• पु०) पक्षिराज गरुड़। पड़ जाता और इसीसे ऊपर तैरते और घूमते अण्डधर (सं० पु०) शङ्कर, शिव । रहता है। अण्डपेशी (सं० स्त्री०) १ कोष। २ मुष्क। २ वजेके शरीरमै चित्र बनाना।-नौसादर, भिलावें और अण्डभू, अण्डसू ( स० स्त्रो०) अण्ड-भू-क्विप्, अण्ड-सू- सिर्केको बराबर-बराबर लेके खरलमें अच्छी तरह क्विप्, अण्डात् भवतीति, अण्डात् सूयते । १ ब्रह्मा । घोटनेसे एक प्रकारको रोशनाई बन जाती है। इस २ पक्षी। ३ सर्प । ४ मछली आदि; जो. अण्डसे रौशनाईसे सफेद कबूतरके अण्डे के ऊपर चित्र बना उत्पन्न हो। रखे। समयपर अण्डा फटनेसे ठीक जैसा चित्र अण्डवईन (स० क्लो०) फ़ोतेका बढ़ना। पहले अण्डे के ऊपर बनाया जायेगा, वैसा ही चित्र | अण्डवृद्धि (स'. स्त्री०) फ़ोतका बढ़ना। बच्चे के शरीरमें भी बना निकलेगा। अण्डसू (संत्रि.) अण्डा देनेवाला।