पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बैजावी। अण्डाकर्षण-अतंद्रित २४३ अण्डाकर्षण (स० क्लो०) आख्ता बनाने का काम ; मांसार्बुद और कर्कटार्बु दमें नश्तर लगाना ठीक बधिया करना। नहीं। विज्ञ चिकित्सकके हाथ चिकित्साका भार अण्डाकार, अण्डाकृति (स० त्रि०) अण्ड-जैसा, अर्पण करना चाहिये। नस्तर लगानेसे सभी स्त्रियां आरोग्य लाभ करती, किन्तु जो दुर्बल होती, अण्डाधार (स० पु०) अण्डानि धियन्ते अस्मिन्, वह प्रायः नप्तर लगानेसे मर हो जाती हैं। अण्ड--वञ्। स्त्रियोंके गर्भको दोनो ओर छोटे-छोटे अण्डालु (सं० पु.) अडण्मस्ति अस्य अण्ड-आलुच् । अण्ड रहनेका आधार (Ovaries )। इसका विवरण अण्ड अण्डादार मछली। शब्दमैं देखी। अडिका (सं० स्त्री०) चार यवके बराबर माप । अण्डाधारमें अर्बुद यानी अाबला हुआ करता है। अण्डिनी (स० स्त्री०) सान्निपातिक योनियाधि- यह आबला उपस्थित होनेसे धीरे-धीरे पेट बढ़ता है; विशेष। पेट और छातीमें नसें उभर आती हैं ; दोनो स्तन अण्डौर (स'• पु०) अण्ड-ईरन्, अण्डं पुमवयवः भारी, काले और दुग्धपूर्ण हो जाते हैं, फलतः अस्यास्तीति। समर्थ, बलवान् व्यक्ति । गर्भके जितने लक्षण हैं, वह एक-एककर सब दिखाई | अण्व (वै. ली.) सोमरस छाननेको साफ़ीका दिया करते हैं। कितने ही स्थलों में प्रवीण चिकित्सक बारीक छेद। भी रोगिणीको देख कुछ स्थिर नहीं कर सकते। अण्वस्थि (सं० क्ली० ) बारीक हडडी। कहीं तो अर्बुद रोगको गर्भावस्था समझ लोग भूल | अण्वी (दै० स्त्री० ) उंगली। जाते, किसी स्थलमें गर्भावस्थाको अर्बुद-रोग जानके अत् (सं० अव्य०) अत्-क्विप् । आश्चर्यसे । भ्रम उत्पन्न हो जाता है। शीघ्रतासे। अण्डाधारका अर्बुद या आबला तीन प्रकारका अकारके आगे त रहनेसे अकार समझा जायेगा। होता है–१ मांसार्बुद, २ कर्कटाबंद और ३ कोषाधुंद । इसीतरह जिस स्वरवर्णके आगे तकार रहेगा, उससे अधिकांश स्त्रियोंको कोषार्बुद ही हुआ करता है। उसका पूर्ववर्ती स्वर समझा जायेगा। ह्रस्व स्वरके इस पौड़ाको पहली अवस्थामें रोगिणोको कोई कष्ट आगे तकार रहनेसे इख स्वर और दीर्घ स्वरके नहीं मिलता। धीरे-धीरे मलद्दार और मूत्राशय आगे तकार रहनेसे दीर्घ स्वर समझा जायेगा। भारी मालूम होने लगता ; कभी-कभी जांघमें पौड़ा जैसे—अत्-अकार, आत्-आकार; इत्-इकार, होती, पौठमें कांटे-जैसा चुभा करता ; किसी स्थलमें ईत्-ईकार इत्यादि। मासिक रजः बन्द हो जाता है। किसी-किसी जिसके आगे रहेगा, उसमें तत्कालको हो संज्ञा स्थलमें अनियमित समयसे रजः प्रकाशित हुआ होगी यानी तकारके अव्यवहित पूर्वमें इस्वस्वर करता है। यदि पीड़ा बहुत बढ़ गई, तो कोष्ठवड, होनेसे हुस्खस्वर और दीर्घस्वर होनेसे दीर्घस्वर समझा अजीर्णता और साधारण दौर्बल्यके लक्षण देख जायेगा। पड़ते हैं। अत-वन्धन। इदित्, भ्वा०, पर०, सक० सेट् । औषध सेवन करनेसे इस पौड़ामें प्रायः कोई वेदमें जगह-जगह इसका प्रयोग देख पड़ता है। उपकार नहीं होता। कितने ही चिकित्सक अत-भ्रमण और प्रापण । भ्वा०, पर०, सक० सेट । आयोडाइड-अव-पोटाश और विरेचक औषध सेवन अतंक (स आतङ्क) आतङ्क देखो। कराया करते, किन्तु यह सब प्रक्रिया प्रायः निष्फल अतंत (सं० अत्यन्त ) अत्यन्त देखो। जाती हैं। आरोग्यका एकमात्र उपाय यही है, अतंट्रिक (सं० अतन्द्रिक ) अतन्द्रिक देखो। कि आबलेको काटके बाहर निकाल ले। किन्तु अतंद्रित (सं० अतन्द्रित ) अतन्द्रित देखो तपरस्तत्कालख। पा १।१।७० त