पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२४६ अतप्ततपस- -अतरसो न जाये। २ जो तपो हुई मुद्रासे चिह्नित न किया । अतमित्र ( स० त्रि०) उजला, साफ.। जाये। ३ जिसके रामानुज सम्पदायको चार छापें न अतमेरु (वै० त्रि०) सबल, ताकतवर। लगाई गई हों। ४ बिना छापका। अतर (हिं० पु०) निर्यास, पुष्पसार, इत्र, फूलोंको अतप्ततपस् (सं० वि०) जिसने तपस्या पूरी न को खुशबूका जो निचोड़ भभकेसे निकाला जाता है। अतर बनाने की विधि यह है, कि टटके फूल एक अतप्यमान (सं० त्रि.) अक्लेशित, जो दुःख न बन्द बरतनमें भर जलती हुई आगपर चढ़ा देते हैं। उठाता हो। इस बरतनमें एक नल लगा रहता, जो चन्दनके अतबान (हि. वि.) बहुत, ज्यादा, अधिक, तेलसे भरे भभकेमें जा पहुंचता है। फूलोंसे जो अत्यन्त। सुगन्धित भाफ उठती, वह पूर्वोक्त नल दारा अतबा-पिपरिया-अयोध्याके अन्तर्गत खेरी जिलेका चन्दनके तेलपर टपक-टपक इकट्ठा होती है। इसके एक परगना। यह मुहम्मदी तहसीलका अन्तर्वर्ती बाद तेल ऊपर उठ आता और वह सुगन्धित भाफ और कठना और गोमती नदीके बीच अवस्थित है। नीचे बैठ जाती है। यही तेल जब काछकर रख यह २७ वर्ग कोस लम्बा-चौड़ा है, जिसमें साढ़े ग्यारह लिया जाता, तब अतर या इत्र कहलाता है। जिस वर्ग कोसपर खेती की जाती है। इस परगने में फूलको भाफ खोंचौ जातो, उसी फलके नामपर जगह-जगह जङ्गल मौजूद है। अतरका भी नामकरण होता है। जैसे,—गुलाबका सन् ११८० ई०में मुहम्मदौके राजाको मुसल अतर, केवड़ेका अतर, मोतियेका अतर इत्यादि। मानोंने कैद किया था। उसी समय उनका राज्य अतरंग (हिं० पु.) वह प्रक्रिया, जिसमें लङ्गर ध्वंस हुआ और ब्राह्मणों और क्षत्रियोंके हाथसे ज़मीनसे उखड़ा रहता है। राज्य रक्षणादिका भार ले लिया गया। क्षत्रियोंने अतरदान (हिं पु०) इत्रदान, अतर रखनेका डब्बा ; गोमती नदौके किनारे २८२ गांव पाये थे। उन्होंके वह पात्र, जिसमें अतरका फाहा रख सभामें सबका वंशमें भगवन्त सिंहको अतबा-पिपरिया और मुग्ध सत्कार किया जाता है। पुरका अधिकार मिला ; किन्तु सन् १७३६ ई० में अतरल (सं० वि०) गाढ़ा, जो पतला न हो। कर्मचारियों के साथ विवाद होनेसे उन्होंने अपना राज्य अतरवन (हिं पु०) १ घोड़वेके ऊपर रख छज्जा खो दिया और वह वनमें जाकर रहने लगे। उस पाटनकी पत्थरवाली पटिया। २ एक प्रकारको समय वह निकटस्थ ग्रामसे बलपूर्वक पखादि लाकर अपना काम चलाते थे। श्लिमेन साहबने उन्हें एक अतरशुम्बा-बम्बई प्रान्तके बड़ोदा राज्यका एक प्रसिद्ध डाकू बताया है। महकमा। इस महकमेके कितने ही गांव अंगरेजी पञ्चमसिंहके भगवन्तसिंहको मार डालनेसे राज्यमें अवस्थित हैं। इसमें कितने ही पहाड़ हैं अतबा-पिपरिया खेतीके लिये किसानोंको सौंपा गया। और वृक्ष भी चारो ओर ख. ब देख पड़ते हैं। यह सन् १८५८-५८ ई० में अंगरेज-सरकारने अयोध्या स्थान बहुत ही विचित्र बना है। किन्तु यहां जङ्गल राज्य के अधीनस्थ फिदाहुसैन खां नामक एक व्यक्तिको या तालाब कहीं भी नहीं। वृष्टि कोई २५।२६ अतबा ताल्लुकको सनद प्रदान को थौ । सनदमें लिखा इञ्चके हिसाबसे होती. है। वातरक, मागम, धम्मी, गया, कि फिदाहुसैन खां पुरुषानुक्रममें इस पर वाराणसी और मोहर नदी इस महकममें बहती है। गनको चिरस्थायी रूपसे भोग कर सकेंगे। किन्तु भूमि प्रायः रेतली है, किन्तु कहीं-कहीं काली मट्टी इस समय अतबेमें फिदाहुसैनका कोई अधिकार भी मिलती है। नहीं। इसमें तीस मौजे लगते हैं। अतरसो (हिं. क्रि०वि०) १ परसोंके आगेका घास।