पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२५९

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अतिकवा-अतितत २५३ पानी। काला बगला जाता है। सूअर घ्राणेन्द्रिय द्वारा इसे मालूम २ जो जगत् या संसारको लांघे । (पु०-क्लो०) गम- करते हो मट्टी खोदने लगते हैं। ट्राफल निकलते क्विप् गच्छतौति। द्युतिगमिजुहोतीनां च। (कात्यायन) हो, क्षेत्रलामो सूअरको दूरकर उसे टोकरीमें ३ जगत्। स्त्री-डीप्-जगती। उठा लेते हैं। छाता और ट्राफल दोनो एक- अतिजन (सं० त्रि०) जहां मनुष्य न हों, वीरान। जातीय हैं, फिर भी, छाता ट्राफलसे कुछ ऊ'चा अतिजर, अतिजरस् (सं० त्रि०) बहुत बुड्डा। होता है। अतिजल (सं० वि०) खूब सींचा हुआ, पानी- छातका गुण-सुमिष्ट और पुष्टिकर है। यह पुलाव बनाकर खानेमें मछलो-मांससे खराब नहीं। जो अतिजव (सं० त्रि०) अतिशयितो जवो वेगो यस्य, मछलीमांस न खा और उद्भिभोजी रहके जीवनको | बहुव्रीः । १ अत्यन्त वेगवान्, अतिशय द्रुतगामी, धारण करते, वह पुलाव खानेको इच्छा हानसे इसे बहुत जल्द चलनेवाला। (लौ०) अतिशयितो व्यवहार कर सकते हैं। जवः, प्रादि-तत् । २ अतिवेग, बड़े जोरको चाल । जो छाता काला या नीला हो, उसे अवश्य विषाक्त अतिजागर (स० पु० ) अतिशयितो जागरो निद्रा- समझना चाहिये। छातेका एक अंश टूटनेसे यदि राहित्यं यस्य, बहुव्री०। १ नौलवर्ण वक पक्षी, काला पीला रङ्ग निकले, तो भी उसे विषमय समझना बगला। उचित है। छाता मुंहमें डालनेसे यदि न किन- नौलवक प्रायः कहा जाता किनाये, तो विषाक्त नहीं होता। बनाते समय है। यह बहुत छोटा होता है। पर बिलकुल काले छातको पानीसे धो साफ कर डालना चाहिये। नहीं होते, उनमें कुछ-कुछ नीलापन रहता है। यह ऐसा करनेसे विषका कोई भय नहीं रहता। रातको बोलते-बोलते उड़ा करता, इसौसे इसका विषाक्त छाता खानेसे वमि, शिरमें चक्कर, यहां नाम-अतिजागर पड़ा है। रातको कुछ जाड़ा तक, कि मृत्यु भी हो सकती है। लगनेके बाद थोड़ा-थोड़ा ज्वर आनेसे कोई- अतिच्छत्रक (स० पु.) अतिच्छत्र-स्वार्थे कन् । कोई लोग इस बगलेके नख गले में बांधनको बताया १ छत्रवृक्ष, छाता। इसकी जड़ और पत्तीमें वचको करते हैं। (त्रि०) २ जो बहुत जागता रहे। (अव्य०) तरह कडुआ रस होता है। २ मतान्तरसे सुलफेका जागरा सम्प्रति न युज्यते अतिजागरम् । जागतरकारी वा । पेड़। ( कात्यायन) पच्चे शः। ३ जागनेके अयोग्य समय । अतिच्छना, अतिच्छत्रिका (स० स्त्री०) अतिच्छन- अतिजान (स' त्रि०) अपने कुलसे ऊंचा। टाप। मौरी, सौंफ। शतपुष्या सितच्छवातिच्छवा मधुरा मिसिः। अतिजीर्ण (स त्रि.) बहुत पुराना। अवाकपुष्पी कारवी (इत्यमरः)। अतिजीर्णता (सं० स्त्री०) बड़ा बुढ़ापा। अतिछन्दस् (सं० पु० ) अतिक्रान्तश्छन्दः, छन्दो वेदो- अतिजृम्भ (सं० पु. ) वातरोग विशेष, बहुत सौ ऽभिप्रायश्च तमतिक्रान्तः १ वेदोक्त कर्महीन, वेदके उबासियोंका आना। बताये काम न करनेवाला, अतिकान्त अभिप्राय अतिडीन (सं० पु.) अतिक्रान्तं डीनं प्रचण्डगमनं, पुरुष, प्रयोजन को न समझनेवाला आदमी। डीङ्-क्त डीनम् । उदितश्च । पा ८।२।४५। उदिन्मध्ये डौङः २ वृत्तानुसारी वर्णविन्यासविशेष । पाठसामर्थ्यान्ने । (भट्टोजि ) श्री डीङ नभो-गतौ इति काव्यकामधेनुः । अतिजगती (सस्त्री०) अतिक्रान्ता जगतीम् । पक्षियोंका प्रचण्ड, गमन पक्षियोंको बहुत लम्बी १ छन्दोविशेष, तेरह अक्षरके छन्दविशेषका नाम ।१३। चाल। यथातिजगत्याम् (८१९२ पिङ्गल)। तुरगरसयतिनौततोगः क्षमा १, अतितत (स. त्रि०) अतिशयेन तत विस्तृतम् । नाचौगस्त्रिदशयतिः प्रहर्ष गौयं २ इत्यादि। (वृत्तरवाकरः) (वि०.) बहुत फैला हुआ।