पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२६३

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अतिपात-अतिप्रमाण २५७ शिलाके दक्षिणका सिंहासन । इस सिंहासनपर । अतिपातिन् ( स० वि०) ठीक ऊपर पड़नेवाला। तीर्थङ्कर बैठा करते हैं। अतिपात्य (संत्रि०) ध्यान न देने योग्य । अतिपात (सं० त्रि०) अति-पत-घञ्। अतिक्रम, अतिपिच्छ (सं० पु०) सफेद रतालू । उपात्यय, पर्यय, गड़बड़, उथल-पुथल, अकर्त्तव्यमें अतिपिच्छला (सं० स्त्री० ) घृतकुमारी, चौकुवार। आस्था, कर्त्तव्यमें अनास्था, क्षति, हानि, वाधा, अतिपिञ्जर ( स० पु.) अतिपोड़क दुष्टव्रण, विघ्न । बुरा घाव। अतिपातक (सं० पु०) अतिक्रान्तमतिविगर्हित- अतिपितामह (स. पु०) दादासे बढ़कर व्यक्ति । त्वात् अन्यत् पातकम्। नौ तरहके पापोंमेंसे तीन अतिपिल (सं० पु० ) पितासे बढ़कर व्यक्ति । बड़े पाप। जैसे पुरुषके पक्षमें, माटगमन, कन्या- अतिपुरुष, अतिपूरुष (स० पु०) प्रथमश्रेणीका गमन और पुत्रवधूगमन और स्त्रियोंके पक्षमें-पुत्र- मनुष्य या वीर। गमन, पिटगमन और श्वशुरगमन है। शूलपाणिने अपने अतिपूत (स त्रि.) बहुत पवित्र, निहायत पाक- बनाये प्रायश्चित्तविवेकमें लिखा है, कि अतिपातक महा- साफ। पातकको अपेक्षा भी गुरुतर पाप है। इसका कारण अतिपेशल (सं० त्रि.) बहुत होशियार । यह है, कि यह सब गुरुतर पाप करके जो प्रायश्चित्त अतिप्रकाश (वै त्रि०) १ बहुत प्रसिद्ध । २ कलशित, नहीं करते, वह अतिपातकके पर्यायक्रमसे एक कल्प बदनाम। नरक भोगते हैं। महापातको और अणुपातको एक अतिप्रगे (सं० अव्य०) बहुत सवेरे, सूर्योदयके समय । मन्वन्तर और उपपातको चारयुग नरकमें रहते हैं। "नातिप्रगे नातिसायं न सायं प्रातराशत: ।” मनु० ४।६। अतिशयेन. इन कई पापोंमें अतिपातककी बात पहले कहो गई, प्रगीयते वेदोऽस्मिन् काले। जिस समय वेद खूब इसका फल भी बहुत दिन भोगना पड़ता है, पढ़ा जाये। पूर्वकालमें सभी ब्राह्मण बड़े सवेरे वेद इसी कारण यह सब पापोंसे बड़ा है। विष्णु कहते पढ़ते थे। जैसे मनुने लिखा है,- हैं, कि चाहे जानकर किया गया हो, या बेजाने, एक- "नाविष्यष्टमधीयीत न शूद्रजनसन्निधौं। बार किया गया हो या कई बार ; इस पापके करने न निशान्ने परिधान्तौ ब्रह्माधीत्य पुनः खपेत् ।" (8IRE) का, सिवा उसी समय अग्नि में प्रवेशकर मर जानेके, अस्पष्ट रूपसे और शूद्रके समीप वेद न पढ़े, बड़े दूसरा कोई प्रायश्चित्त नहीं है। प्रायश्चित्तविवेकके सवेरे वेद पढ़के श्रान्त होनेपर फिर नोंद न ले। टीकाकार गोविन्दानन्दने लिखा है, न ह्यन्या निष्क ति- अतिप्रणय (स० पु०) बड़ी कृपा, अजहद तेषां।" सिवा मरनेके ऐसे पापियोंको दूसरो कोई मिहरबानी। निष्कृति नहीं है। इससे यही प्रतिपन्न होता है, अतिप्रबन्ध ( स० पु०) पूरा बन्दोबस्त । कि सिवा मरनेके दूसरी विधि, जैसे मरणवैकल्पिक | अतिप्रबुद्ध ( स० त्रि०) अतिशयेन प्रबुद्धम् । १ अत्यन्त चौबीस वर्षके व्रताचरणसे भी यह पाप नहीं छूटता। बृद्धियुक्त, बहुत बढ़ा हुआ। २ अत्यन्त बद्ध, बहुत पूर्वजन्ममें किये हुए अतिपातकके लिये इस जन्ममें बुड्डा। (पु.) ३ प्रमाणातिरिक्त बृद्ध, प्रमाणसे बाहर गलत्कुष्ट रोग होता है। इसके प्रायश्चित्तमें दो बुड्डा। पराकव्रत करना चाहिये। इसमें असमर्थ होनेसे अतिप्रभञ्जनवात (सं० पु०) बड़े जोरसे चलनेवाली ३८४०० कौड़ी या इतने ही मूल्यका सोना या चांदी हवा, घण्टेमें ४० या ५० कोस जानेवाला वायु । उत्सर्ग करे। इसके द्वारा अतिपापसे छुटकारा अतिप्रमाण (सं० वि०) अतिशयितं प्रमाणं यस्य । मिलता है। १ अत्यन्तप्रमाण, अधिक प्रमाणयुक्त, अच्छौतरह अतिपातित (सं० लो०) हड्डियोंका टूटना साबित। (पु०) अतिक्रान्तः प्रमाणम् । २ प्रमाणशन्यू 1