पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अतिवृष्टिहत-अतिशक्तिभाज् । इसके बाद जो व्यक्ति अपनी माताका इकलोता बेटा | अतिव्याप्ति (स० स्त्री०) अतिशयेन लक्ष्यमलच्य- होता, वह पीतलको कटोरीके भौतर वही नाम ञ्चाविशिष्य व्याप्तिः। अतिशय व्यापन, अधिक व्याप्ति, और एक जवाका फूल रख, एक ही गोतमें उसे लक्ष्य तथा अलच्यमें लक्षणका गमन । तालाबके पानीके भीतर गाड़ आता था। अज 'श्रलच्ये लक्षागमनमतिव्याप्तिः ।' लक्ष्य पदार्थमें पहुंचके लोगोंको विश्वास था, कि यह प्रक्रिया करनेसे तीन अलक्ष्य पदार्थमें भी लक्षणके चले जानेको अतिव्याप्ति दिनमें अवश्य वृष्टि बन्द हो जाती है। अनावृष्टि देखो। कहते हैं। इसका मतलब यह है किसी एक. अतिवृष्टिहत (स. त्रि०) मूषलधार वृष्टिसे मारा वस्तुको लक्ष्यकर यदि उसके लक्षणादि निर्देश किये गया, गहरी बारिशसे चोट खाया हुआ। जायें, फिर वही लक्षण यदि उस वस्तुमें मिलें, जिस- अतिवेगित (सं० त्रि०) अतिवेगः जातोऽस्य । जाताति को पहले लक्ष्यकर वह लक्षण निर्दिष्ट नहीं हुए, वेग, बड़े वेगका। तो ऐसी अवस्था में अतिव्याप्ति कही जा सकती अतिवेध (सं० पु०) ' अत्यन्तो वेधः सम्पर्कः । है। जैसे-शाखापह्नवत्व वृक्षत्वम् । जिसमें डालियां और एकादशौके साथ दशमीका सम्पर्क-विशेष।' पत्तियां होती हैं, वही वृक्ष है। इस स्थानमें वृक्षको अतिवेपथु (स• त्रि.) १ बहुत कांपता हुआ। ही लक्ष्यकर यह लक्षण बताया गया, कि डालियों ( स्त्री०) २ बड़ी कंपकपी, अजहद लरजिश । और पत्तियोंके होनसे ही वृक्ष कहाता; किन्तु अतिवेल (सं० त्रि०) अतिक्रान्तं वेलां मर्यादां कुलं यह लक्षण लताके प्रति भी पाया जाता है, जिसको वा। १ अधिक, असोम, मर्यादातिक्रान्त । (अव्ययो०) पहले लक्षाकर लक्षण नहीं कहा गया था। इसलिये २ वेलातिक्रम। यह लक्षणको अतिव्याप्ति कहो जाती है। अतिवेला (स० स्त्री०) देर, विलम्ब, कुसमय । अतिव्यायाम (सं० पु०) अपरिमित परिश्रम, अज़- अतिवचक्षण्य (सं० लो०) अधिक बुद्धिमत्ता, बड़ी हद कसरत। अतिव्यायाम यानी हदसे ज्यादा होशियारी, अजहद कमाल । कसरत पथ्य नहीं। इससे कास, ज्वर, छर्दि, श्रम, अतिवैसस् (सं० त्रि०) अत्यन्त प्रतिकूल, निहायत क्लम, तृष्णा,, क्षय, प्रतमक, रक्तपित्त प्रभृति रोग बरखिलाफ। उत्पन्न हो जाते हैं। अतिवोढ ( स० त्रि०) अति वहनकर्ता, प्रापक । अतिशक्करी (सं० स्त्री०) अतिक्रान्ता शक्करों तना- अतिव्यथन (सं० लो०) अत्यन्तपीड़न, बड़ी भारी मक वृतम्। पन्द्रह अक्षरका छन्दीविशेष। व्यथा। अतिशक्त (सं० त्रि०) अत्यन्तशक्तिशालो, निहायत अतिव्यथा (सं० स्त्री०) अत्यन्त पौड़ा, अज़हद दर्द कवो। अतिव्यय (सं० त्रि०) अतिशयितो व्ययः। अतिशक्ति (स. स्त्री०) अतिशयितो शक्तिः, अपरिमित व्यय, फ़िज़ ल-खचं । शास्त्रकार कहते हैं प्रादि-स० । १ अत्यन्त सामर्थ्य, हदसे ज्यादा ताकत । कि उपार्जित धनका आधा भाग खाने-पौने और (त्रि.) अतिशयिता शक्तिर्बलं यस्य, बहुव्रौ । नित्य-नैमित्तिक कामोंमें खर्च और चौथाईसे पुण्य अत्यन्त बलवान्। निहायत ताकतवर। अतिक्रान्तः सञ्चय करे। बाकी चौथाईसे मूलधन या पूंजी शक्तिम् अतिक्रा-तत्। सामर्थ्यका अतिक्रमकरनेवाला। बढ़ाये। इस नियमसे अधिक जो व्यय किया जाता सामर्थ्यातिक्रम (अव्ययो०)। है, उसोको अतिव्यय कहते हैं। अतिशक्तिता (स. स्त्री०) अतिशक्ति-तल्-टाप् । विक्रम- अतिव्याधिन् (सं• त्रि.) तौखा, चुभनेवाला। शोलका धर्म, महाबलत्व, जोरावरी। अतिव्याप्त (सं० वि०) सर्वत्र वर्तमान, अपरिमित अतिशक्तिभाज् (सं० पु.) अतिशक्ति-भज-खि । रूपसे स'लग्न, निहायत आलूदा। अतिशय शक्तिविशिष्ट, क्षमतावान्। (अंशभाज देखो।) -