२६ अकबर 1 १३. रियाजी (खगोलविद्या) थी। केशी, लाल, मुकुन्द, क्षेमकर,मधु, योगेन्द्र,महेश, १४. इलाही (ब्रह्म-विद्या) राम, हरिवंश, तारा ; हिन्दू:चित्रकारोंमें ये बहुतही १५. तवारीख (इतिहास) विख्यात हैं। साम्राट्को आज्ञासे बहुतसी फारसीकी यह ऊपर लिखो पढाई अरबी-फारसो पढ़ने किताबोंमें तस्वीरें लगाई गई थी। इनके अलावा वालोंको थो। संस्कृत पढ़नेवालोंको निम्नलिखित कालीयदमन, नलदमयन्ती और महाभारत तथा विद्याएं पढ़नी पड़ती थीं। रामायणमें भी सुन्दर-सुन्दर तस्वीरें लगवाई गई थी १. व्याकरण वस्त्रोंपर काम, सोने-चांदीपर नक्काशीका काम, ज़री- २. न्याय पर ज़र्दोजीका काम, पत्थर और काठपर खुदाईका ३. वेदान्त काम इत्यादि शिल्प-मम्बन्धी कामोंपर भी अकबरको ४. पातञ्जल विशेष दृष्टि थी और धन व्यय करके उन्होंने इन शिल्प- अकबरको विद्यानुरागभी कम न था। अपने के कामोंको उत्साह दिया था। पुस्तकालयको पुस्तकें भिन्न-भिन्न श्रेणीयोंमें भाग सम्राट अकबर सभी विषयों में एक अच्छे शिल्पी करके उन्होंने रखवाई थी। गद्यको और पद्यको थे। उन्होंने एक गाड़ी बनवाई थी, जो एक विचित्र और अरबी, फारसी, हिन्दी, ग्रोक, कश्मीरी ही ढङ्गमे बनाई गई थी। उस गाडीम एक जोता आदि भाषाओंकी पुस्तकें छाँट-छाँट कर रखी रखा गया था. गाड़ी चलात हो जोता घूमने और गई थी। जिस भाषाको जो जानता था, उसके आटा पिमने लगता था। अकबरने एक एन्ट्रजालिक मुंहसे ही उसी भाषाको पुस्तक वह सुनते थे आईना बनवाया था। दूर अथवा पाममे भी उस जब ग्रन्थ समाप्त हो जाता और उसका विषय आईनेको देखनेपर उसमें भांति भांतिकी मूर्तियां सम्राट अकबरको समझमें आ जाता, तो वह, पढ़ने दिखाई देती थीं। कुएं से जल निकालने को एक कल वालोंको अच्छा पारितोषिक भी देते थे। हिन्दुओंके | अकबरने बनवाई थी। उम कन्नमें एक चक्का लगा हुआ लिखे हुए ग्रन्थोंको भी वह बड़ी चाहसे पढ़ते थे। था ; उसको घुमात हो दूरमे या गहरे कुएं मसे जल कृष्ण जयोतिष, गङ्गाधर, महेश महानन्द, महाभारत, ऊपर आ जाता था। माथ हो उसमें एक कारोगरी यह रामायण आदि संस्कृत ग्रन्थोंका उन्होंने फारसी भाषा को गई थी कि, इधर जन्न खोचनेवाला चक्का घूमता था में अनुवाद कराया था। और दूसरी ओर उसीके बन्नपर एक आटा पीसनेका अकबरके समयमें चित्र-विद्याको भी बड़ी उन्नति जांता घूमता था ; इससे आटा बहुत जल्द तय्यार हुई थी। सम्राटको स्वयम् चित्र बनानेका शौक था ; होता था। बन्दूके और तो साफ करने के लिए भी इसीसे वह चित्रकारीको सदा उत्साह दिलाया करते एक कल अकबरने बनवाई थी; उममे एक साथहो थे। उन्होंने सप्ताहमें एक दिन तस्वीर दिखानेके लिये बारह बन्दूकें साफ होतो थौं। नियत कर दिया था। वे अच्छी तस्वीरोंको छांट उनके संगीत-शास्त्रको ओर भी अकबरका पूरा ध्यान था। बनानेवालोंको उत्साह दिलाते थे। जो कोई उनके हिन्दू, ईरानी, मुमलमान, कश्मीरी आदि मब जा- दरबारसे वेतन पाता था, उमका वेतन बढ़ानेको आज्ञा तियोंके गानविद्या-विशारद स्त्री-पुरुष उनकै साथ देते थे। इसका फल यह हुआ कि, उनके राजामें ऐसे विद्यमान थे। तानसेनका नाम अभी जगत्में प्रख्यात चित्रकार दिखाई देने लगे, जिनके आगे विलायती हो रहा है। मालाबारके बाजबहादुर भो उस समय- चित्रकार कोई पदार्थ नहीं हैं। अबुलफजलने लिखा के एक अच्छे गायक थे। इनके अतिरिक्त और भी है कि, इनमें हिन्दुस्थानी ही विशेष थे। हिन्दुओंको कितने ही गायक तथा गायिकायें अकबरको मभाको चित्र-विद्यामें निपुणता उस समय बहुत ही बढ़ी-चढी' गान-विद्यासे मोहित करती थीं। उस्ताद यूसुफ, सुल-