पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२९

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अकबर २७ । तृतीयाको तीन, और चतुर्थीको चार और पञ्चमीको भी चार ही बत्तियां जलती थीं। षष्ठीको पांच, सप्तमौको छः; इसी तरह एक दिन नागा करके दो दिनोंतक संख्या बढ़ाई जाती थी। एक सेर रूईकी एक एक बत्ती बनती थी और एक बत्तौमें एक सेर तेल लगता था। अकबरने अपने राज्यमें सब तरहका प्रबन्ध किया था। वे सती होनेकी प्रथाके विरोधी थे। वे खयम् बहुत थोड़ी शराब पोते थे और अपने सभासदोंको भी बहुत थोड़ी पौने देते थे। ‘तान हाशिम, उस्ताद महम्मद आमौन, और उस्ताद महम्मद हुसेन तानपूरा बजाते थे । ग्वालियरके वौरमण्डलखां स्वरमण्डल बजाते थे। शहाब खां और पुर्बीन खां बौन, शेख दाबानी करनाई, उस्ताद दोस्त सहनाई, मौर सैयद अली और बहरामकुली घिचक, तास बैग कुज, कासिम रबाब और उस्ताद शाह महम्मद सुर्ना आदि भांति-भांतिके बाजे बजाते थे। अबलफजलके भाई फैजी सम्राट अकबरको सभामें एक प्रधान कवि थे। फैजीने ब्राह्मण-वेशसे काशीमें संस्कृत पढ़ी थी और अच्छा पाण्डित्य लाभ किया था। अकबरने साहित्य के प्रचारमें भी अच्छा उद्योग किया था। उन्होंने अपने राज्यभरमें पाठशालायें स्थापित करादी थीं। उनमें धार्मिक शिक्षाका कुछ विशेष प्रभाव नहीं था) अकबर धार्मिक भी थे। जिस समय सूर्य मेष राशिमें आते, तो उन्नीस दिनोंतक सौराग्नि आहरण करते थे। उसको प्रणालौ यह है:-दोपहरके समय अकबरके नौकर धूपमें सूर्यकान्तमणि रखकर आग जला लेते थे। सालभरतक उस आगको रक्षा करने के लिये विश्वासी मनुष्य नियत किये गये थे । सम्राट के लिये रसोई उसी अग्निपर होती थी। पौर्ण- मासीकै दिन चन्द्रकान्तमणि द्वारा वे चन्द्रमासे अमृत हरण कराते थे। वह अमृतकणा साफ ओसके समान रहती थी। रातके समय अकबरके घरमें ३६ दीपक जलते थे। उनमें १२ सफेद, बारह चांदीके शमादान और बारह सोनेके शमादान रहते थे। एक-एक शमादान वजनमें दस मनसे कम न था। उनमें छः २ बड़ी लम्बो मोम बत्ती लगाई जाती थौं। शुक्लपक्षको प्रतिपदा, द्वितीया और टतौयातक एक, दूसरी पौतलसोजमें आठ बत्तियां जलती थौं, चतुर्थीको सात और पञ्चमीको छः बत्तियां रहती थीं। इसी तरह नित्य एक बत्ती कम करके दशमीको केवल एक बत्ती रह जाती थी। इसके बाद पूर्णिमातक एक बत्ती ही जला करती थी। फिर कृष्णपक्षको प्रतिपदाको एक, द्वितीयाको दो, अकबर बादशाह अकबर रूपमें बहुत ही सुन्दर थे। छाछठ वर्षको अवस्था हो जानेपर भी वे बूढ़े से नहीं मालूम होते थे। उनके पक्के केश मात्र उनको वृद्धावस्थाके चिन्ह थे। गोएसे कई पाहडौ उनकी सभामें आये थे। पादरियों- को इच्छा थी कि, सम्राट् कस्तान हो जायँ, पर उनकी इच्छा पूर्ण न हो सको। १६०६ ईस्खौमें सुलतान दानियालका विवाह बड़े समारोहसे हुआ ; परन्तु कुछ दिन बाद ही दानियाल शराब पौनेके कारण मर गया। दानियालको मृत्युसे अकबर बहुत ही शोकान्वित हुए। वे दिन-दिन क्षीण