पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२९१

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२८४ अत्ते बक्काल-अत्यग्निष्टोम देते हैं। इन थालोंमें आठ-आठ पैसे भी रखे जाते सासुरके लोग उसे फूलोंसे सजाते हैं, वह नई हैं। जब यह सामान वेङ्कटरमणके सम्मुख रख दिया पोशाक पहनती और सम्बन्धियों और मिहमानों जाता, तब वे आदमी लौट जाते हैं। इसके बाद द्वारा गोदमें डाली हुई मिठाई खाती है। फिर दो आदमी कन्याक माता-पिताको अङ्गा और जब कोई मर जाता, तो सब अत्ते-बक्काल मिल- चादर देने जाते हैं। पीछे वर और कन्या हलदीक कर रोने लगते हैं। किसीकी अकालमृत्यु होनेसे ये उबटनसे शीतल जलमें स्नान करते और कनारोके दूसरे गांवके रक्षकको एक मुर्गा बलि देते हैं, जिससे गीत गाये जाते हैं। जब स्नान हो जाता है, तब वर भूत-प्रेत पास न आयें। इन्हें विश्वास है, कि भूत- पक्ष के लोग वरको छोड़ कन्याके घर कनारी गीत प्रेत ही लोगोंको युद्ध, सर्पदंश और जलमें डुबनेसे मार गाते-गाते पहुंचते हैं। कन्याके घर पहुंच वरका डालते हैं। मृतोंके सम्मानार्थ ये अपनी जातिके बाप बारहसे पचीस रुपयेतक देता है। इसके बाद लोगोंको भोज देते हैं और जबतक पुत्र या दूसरे कन्याका पिता वर-कन्याकी गांठ जोड़ देता है और सम्बन्धी जोते रहते हैं, तबतक प्रतिवर्ष मृत्युके दशवें वरका बाप अपने आदमियों, तथा कन्या और उसके और तेरहवें दिन बराबर लोगोंको खिलाते रहते हैं। लोगोंके साथ लौट आता है। वरके घर पहुंचनेपर गांवका मुखिया सामाजिक सिद्धान्त सिखानेके लिये वर और कन्या दोनों एक परदेको आडमें खड़े किये सभा करता और जो नियम विरुद्ध चलता उसे आर्थिक जाते हैं। इसके बाद परदा हटाया जाता और दण्ड दिया जाता है। मुखियेको अधिकार है, कि कन्याका भाई वर और कन्याका दाहना हाथ मिला वह किसीको भी जातिसे बाहर कर दे। ये अपने देता और उनके ऊपर पानी छोड़ता है; मामा लड़के स्कुलमें पढ़ने के लिये नहीं भेजते । वर-कन्याकी गांठ जोड़ता है और मिहमानोंको अत्न, अत्नु (सं० पु०) अतति सततमाकाशे भ्रमति, भोजन कराया जाता है। वर-कन्या भी दिन भर भूखे अत-न। १ आदित्य, आफ़ताब। धावस्यज्यतिभ्यो नः। रह इसो समय भोजन करते हैं। भोजनके बाद कन्या उण् ३।६। अतति सततं गच्छति, अत-नु पक्षे न वा। पक्षके लोग अपने घर वापस जाते हैं, तथा कुछ लोग २ वायु, हवा। (लो०) अतति जयपराजयौ अत्र । वरके घर रहते हैं। दूसरे दिन यह रहे हुए लोग वर ३ युद्ध, जङ्ग। (त्रि.) ४ गमनशील, जानवाला; कन्याको ले कन्याके घर लौटते और भोजनादिसे पथिक, मुसाफ़िर। सन्तुष्ट हो तीसरे दिन लौटते हैं। जब वर कन्याके | अत्य (वै० पु०) अतति शीघ्र गच्छति, अत-यत् घर जाता, तब वह फतुही, अङ्गा, दुपट्टा, रुमाल कर्तरि। द्रुतगामी अश्व, जल्द जानेवाला घोड़ा। और खड़ाऊ पहनता है। एक हाथमें वह रङ्गीन | अत्यंहस् (वै० त्रि०) पापको पहुंचसे बाहर, जिसमें रुमाल और नारियल लिये रखता और दूसरेमें एक पाप लग न सके। कटार, दो पान और एक सुपारी रखता है। इसके | अत्यंहस् आरुणि-एक वैदिक शिक्षक। तैत्तिरीय बाद वैकटरमणका अलग रखा हुआ नारियल तोड़ा उपनिषत्में लिखा है, कि इन्होंने अपने एक शिष्यको और बाकी खाया जाता है। जब कन्या अपनी दय्याम्पतिक पास अग्निवाले सावित्रके अवस्थापर आती, तो वह एक महीने और चार दिन विषयमें प्रश्न करने भेजा था.। इस धृष्टताके कारण अलग रहती है। इसके बाद उसके कुलकी स्त्रियां इनके शिष्य बहुत फटकार गये । उसके सम्बन्धी या वरकी दी हुई पोशाक उसे पह अत्यग्नि (स० पु.) १ क्षुधाधिक्य, भूखका बढ़ना। नाती हैं, उसकी गोद चावल और पान-सुपारीसे २ अग्निमान्द्य, भूखका न लगना। ३ अग्निसे बढ़कर भरी जाती और सम्बन्धियोंको भोजन मिलता है। पदार्थ, आगसे अच्छी चौज । पहले स्त्रीके गर्भवती होनेसे उसके मायके और अत्यग्निष्टोम (सं० पु.) अतिक्रान्तोऽग्निष्टोमम्,.