पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३०२

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अविस्थान-अथर्य अनित्य ? लिखते। अतएव इसमें कोई सन्देह नहों, कि आज का स्वा-अथ धातून बम: ? अर्थात् समस्त धातुओंका कलको अत्रिसंहिता किसी दूसरे व्यक्तिको बनाई है। विषय कहते हैं ? इसमें अत्रिका मत अधिक परिमाणसे सन्निवेशित है। अधिकार-किसी विषयके पहले अथ सन्धिः, अथ समाम: म्म ति देखो। इत्यादि लिखा रहनेसे उसका अधिकार अर्थात् अत्रिस्थान-श्वेतगिरिस्थ जनपद-विशेष। यहां के लोग उत्तरोत्तर सम्बन्ध समझा जायेगा। जैसे-अथ सन्धिः अत्रिदेवको पूजा करते थे। अर्थात् सन्धिका अधिकार करके यह प्रबन्ध लिखा अत्रिस्म ति-अविसंहिता देखो। जाता है। अत्रय-आवेय देखो। संशव-शब्दी नित्यः अथानित्यः ? अर्थात् शब्द नित्य है या अत्र गुण्य (स' लौ०) सत्त्व, रजः और तमः-इन तीनो गुणोंका विनाश । सांख्यवादी इस स्थितिको पक्षान्तर-अथ चैत्त्वमिमं धर्म्य संग्रामं न करिष्यसि। फिर यदि मोक्ष कहते हैं। तुम यह धर्मयुद्ध न करोगे । अत्र व (स अव्य.) इसी स्थानमें, इसी जगह । समुच्चय-भौमोऽथार्जुनः । भीम और अर्जुन । अत्वच् (सं० त्रि०) चौरहित, जिसमें चमड़ा न हो। मङ्गल-अथातो ब्रह्मजिज्ञासा । अर्थात् मङ्गलाचरणपूर्वक अत्वरा (सं० स्त्रो०) शीव्रताको अनुपस्थिति, धैर्य ; ब्रह्मक जाननकी इच्छा। इस्तकलाल । अथऊ (हिं० पु.) सन्ध्यासे पहले होनेवाला अत्सरुक (सं० पु०) नास्ति सरुरिव मुष्टिवन्धन भोजन, जो खाना शाम होनेसे पहले खाया स्थानं यस्य। खड्ग जैसा, जिसमें मुठिया न हो जाये। यज्ञीय पात्रविशेष,-चम्मच, हाथा आदि। अथक (हिं० वि०) न थकनेवाला, परिश्रमी। अथ, अथो (स. अव्य०) अर्थ चु• अदन्त-ड पृषो- अथकिं (सं० अव्य.) १ हां, यही तो, ठीक है, दरादित्वात् रलोपः । १इस समय, अब,. उस २ फिर कैसे । ३ और क्या । समय। २ सिवा, अलावा; अतिरिक्त, भिन्न। अथकिमु (सं० अव्य०) १ कितनी अधिकतासे ४ किञ्चित्-किञ्चित्, कुछ-कुछ। ५ निःसन्देह, बेशक । २ इतने परिमाणसे। ६ किन्तु, परन्तु ; लेकिन, मगर। ७ वरं, वरना; अथच (सं० अव्य०) और भी, फिर, इसतरह। नहीं तो। ८ क्या । ८ किसतरह। १० या । ११ पूरे अथतु (सं• अव्य.) किन्तु, मगर ; विपक्षमें । तौरसे। १२ फिर। इस शब्दसे अनन्तर, प्रारम्भ, | अथमना (हिं० क्रि०) न थमना, न ठहरना । प्रश्न, कास्य, अधिकार, संशय, पक्षान्तर, विकल्प, अस्तमन देखो। समुच्चय और मङ्गलादि अर्थ निकलते हैं। अथरा (हिं० पु०) रंगरेज़ोंके कपड़ा रंगने, सुना- "मङ्गलानन्तरारम्भप्रश्न कास्न्येष्वथो अथ।" (अमर) रॉके मानिक रेतने, जुलाहोंके सूत भिगोने और अनन्तर-विवक्षुमाणेनाहृतः पार्थनाथ विषम्म रम् । अर्थात् इसके ताने में लेई लगानका बरतन । 'बाद ( इन्ट्रका संवाद सुनकर ) यज्ञाभिलाषी युधिष्ठिर अथरि, अथ (वे. स्त्री०) १ नोकदार अङ्गार या कर्तृक निमन्त्रित मुरारि इत्यादि । खानं कृत्वाऽथ भुत्रोत । अग्निशिखा। २ भालेको नोक । ३ अङ्गुलि, उंगली। अर्थात् सान करनेके अनन्तर भोजन करे। ४ हस्ती, हाथी। इस शब्दका प्रयोग केवल ऋग्वेदमें आरम्भ-अथ लिङ्गानुशासनं लिख्यते । अर्थात् लिङ्गानुशासन देख पड़ता और इसका अर्थ सन्दिग्ध है। (हिं. स्त्री०) 'लिखना अब आरम्भ किया जाता है। ५ हलका अथरा। ६ हांडी या घड़ा थापौसे पौटनेको प्रश्न-अथ किमिद तावत्-यह सब फिर क्या है? कंभारका बरतन । ७-दही जमानेका कूडा। अथ वक्त समर्थोऽसि ? क्या तुम बोल सकते हो? अथर्य (वै० पु.) १ लगातार चला जानेवाला खू.ब समझे।