पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३०३

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२६६ अथर्व–अथर्वभूत २ भाले पथिक, मुसाफिर जो बराबर चलता रहे। शतपथ ब्राह्मणमें लिखा है, कि दध्यञ्च नामक जैसौ नोकीली वस्तु। ३ वह पदार्थ जिससे भालेको एक ऋषि अथर्वाके पुत्र थे,- नोक जैसे अङ्कर फूट। “तमुत्वा दध्यनृषिः पुत्र इधै अथर्वणः ।" अथवे (स० पु० ब्रह्मार्क ज्येष्ठपुत्र, जिनको उन्होंने अथर्वाके पुत्र दध्यञ्च ऋषिने आपको ( अग्निको) ब्रह्मविद्या बताई थी। प्रज्वलित किया था। अथर्वण (सं० पु० ) अथर्वन्-अच्, पृषोदरादित्वात् न अथर्ववेदमें अथर्वा और वरुणके सम्बन्धपर एक टेर्लोपः। शिव, जिन्हें अथर्वमुनि-प्रोक्त विद्या ज्ञात है। उपाख्यान लिखा है। वरुणने अथर्वाको एक विचित्र अथर्वणि (सं० पु०) अथर्वा तदुक्तशास्त्रादौ कुशलः, नित्यवत्सा धेनु दी थी। पृनि धेनु वरुणेन दत्तामथर्वणे अथर्वन्-इस्। १ अथर्ववेदज्ञ ब्राह्मण, अथर्ववेदको मुयां नित्यवत्माम्। कुछ दिन बाद वरुणने वही धेनु जाननेवाला ब्राह्मण। २ पुरोहित । बापस लेनेका यत्न किया। अथर्व वेद-१४ देखो। अथर्व न् (सं० पु०) अथ-ऋ-वनिप्, शक । अथवा अन्तमें अथर्वाने वरुणदेवसे कहा, 'हम परस्पर बन्धु नामक ऋषि। मुण्डक उपनिषद्के प्रारम्भमें लिखा और एक ही वंशमें उत्पन्न हुए हैं।' इसी उपाख्यान- है, कि अथर्वा ब्रह्माके ज्येष्ठ पुत्र थे,- को देख कोई-कोई अनुमान करते हैं, कि वशिष्ठ ""ब्रह्मा देवानां प्रथमः सम्बभूव विश्वस्त्र कर्ता भुवनस्य गोप्ता । और अथर्वा ऋषि एक ही व्यक्ति थे, एवं वरुण और म ब्रह्मविद्यां सर्वविद्याप्रतिष्ठामथर्वाय ज्येष्ठ पुवाय प्राह ॥ १' विश्वामित्र ये दोनो भी कोई पृथक् व्यक्ति नहीं थे। अथवणे बां प्रवर्दत ब्रह्माया तां पुरोवाचाभिरे ब्रह्मविद्याम् । ऐसा अनुमान करनेका कारण यह है, कि महाभारत म भारद्वाजाय सत्यवाहाय प्राह भारद्वाजोऽङ्गिरसे परावराम् ॥" २ और रामायणको एक कथामें लिखा है-विश्वामित्र देवताओंके मध्यमें पहले ब्रह्मा उत्पन्न हुए थे। वशिष्ठको धेनु बलपूर्वक लेने आये थे। इसके लिये वह इस विश्वके कर्ता और रक्षक रहे। उन्होंने महाविरोध उपस्थित हुआ। इसके सिवा कुल- अपने ज्य ठपुत्र अथर्वाको सकल विद्याओंको मूल विवरण देखनेसे भी दोनो एक ही वंशसे उत्पन्न ब्रह्मविद्याका उपदेश दिया। ब्रह्माने अथर्वाको जो प्रमाणित होते हैं। जो हो, दोनो उपाख्यानोंमें सिखाया था, अथर्वाने उसे अङ्गिराके निकट प्रकाश सादृश्य रहनसे अथर्वा और वशिष्ठ एक व्यक्ति नहीं कर दिया। फिर अङ्गिराने भरवाज-वंशोद्भव सत्व हो सकते। इस बातका कोई विशेष प्रमाण भी नहीं वाहको वही विद्या बताई। वही श्रेष्ठ विद्या सत्य मिलता है। वाहने अङ्गिरसको पड़ाई थी। यह शब्द एकवचनमें वैदिक पुरोहितोंके प्रधान, ऋग्वेद प्रभृति प्राचीन पुस्तकें देखनेसे ऐसी प्रतीति और बहुवचनमें अथर्व न्के वंशका बोधक है। होती है, कि अथर्वाने पहले अग्निको सृष्टि और अथर्व न्के वंशज अश्वत्थोंको दानस्तुतिमें वर्णित हैं और आर्यों में सबसे आगे यज्ञादि क्रिया प्रवर्तित समय-विशेषपर दूधमें मधु डालके इनके पौनकी बात की थी। भी वेदमें लिखी है। तैत्तिरीय ब्राह्मणके अनुसार जो "अग्निर्जाती अथर्वणा विददिश्वानि कान्या। भुवढू तो विवश्वतो।' गौ असमयमें गर्भपात करे, वह अथर्वनीको हौ दी जाना चाहिये। इनके अग्नि, दध्यञ्च, भिषज्, बृहद्दिव अथर्वाने अग्निको उत्पन्न किया था, जो सब और कवन्ध-यह कई एक पुत्र थे। विद्या जानते रहे। वह विवस्वतके दूत बने थे। अथर्वनी (हिं० पु०) अथर्वन्वाला आचार्य जो अथर्वा त्वा प्रथमो निरमन्थदने ।" . ( वाजसनेय संहिता.) कर्मकाण्ड या यज्ञ कराये, पुरोहितं । हे अग्नि ! अथर्वाने आपको पहले उत्पन्न अथर्वभूत ( सं० पु.). बारह महर्षियोंको किया था। उपाधि। कृम्वेद १०।२२१५