पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३०९

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व क्ष द्रा उ अथर्ववेद मघापर्यन्त सात नक्षत्र हैं। प्रत्येक नक्षत्रका स्थान इसी कारण सन १८७८ ई०को १ली जनवरीको परिमाण १३ अंश २० कला रहता है। इसीसे कृत्तिका मघाके मध्यस्थित ताराको द्राधिमा १४८°८ निश्चित नक्षत्र जिस समय राशिचक्रके प्रथममें था, उस समय हुई और जिस समय राशिचक्रके प्रथममें कृत्तिका मघाके मध्यस्थित नक्षत्रको ट्राधिमा ७४ १३ अंश नक्षत्र था, उस समय उसका परिमाण १०२° २० २० कला +2 अंश = १०२ अंश २० कला थी। रहा। ऐसा होनेपर उस समयसे सन १८७६ ई० सन १८७८ ई० को नटिकाल पञ्जिकामें (Nautical तक अयनगति ४५. ४८ आगे बढ़ी है। विषुव- Almanac) मघाके मध्यस्थित नक्षत्रको स्थिति इस रेखासे अयनगति सम्म खके दिक्को प्रतिवत्सर प्रकार निर्दिष्ट हुई थी,- ५० मिनिट चलती है अर्थात् ७२ वर्षमें एक अंश दक्षिणमैं उदय १०.१५२४ (काल); उत्तरमें अस्त १२ मात्र भोगती है। इसलिये पौछकी ओर इसकी गति स्थिर करनेसे ७२४ ४५.८= ३२८७.६ वर्ष अब ट्राधिमा स्थिर करने के लिये राशि चक्र के व्यासको वक्रता स्थिर निकलते हैं। अतएव यह संकलनकाल ३२८८- करना आवश्यक है। १८७८ ई०१ली जनवरीको वह २३० २७ १८५०१ १८७७%=१४२१ वर्ष सन् ई०से पहले जा पहुंचता निहारित हुई थी। है। किन्तु सामनेको चाल प्रतिवत्सर ००००२”के हिसाबसे बढ़ती है। सन १८८० ई में वह ५०. २५८२” बढ़ी थी। किन्तु हिन्दू ज्योतिर्वेत्ता अन्यून ४८.६-यह परिमाण मानते हैं। इस हिसाबसे यह संकलनकाल ३३८३-१८७७=१५१६ सन ई०से पहले हो जाता है। अर्थात् आजसे गिननेपर ऊपरकै चिवम (न म) नाडीमण्डल, (न ब) राशिचक्रका व्यास, कोई ३४०० वर्ष पहले अथर्ववेद सङ्कलित हुआ था ।* (१) एक नक्षत्र, (न उ) दक्षिण उदय-'उ'के समान, (क्ष उ) अस्त-'के समान, (न द्रा) ट्राधिमा-'ट्रा' के समान, (द्रा न उ) कोण-'क'-तुल्य यह गणना सहज प्रणालीसे दिखानेका एक वक्रताके समान और (चन उ) कोण 'क'के समान है। ऐसा होनेसे उपाय है, किन्तु उससे हिसाब उतना सूक्ष्म नही यहां यह उपलब्धि होती है, कि वृत्तांशक समकोण दी है-(क्ष न उ) बनता। पृथिवीको मध्यरेखा और भूचक्रको मध्य- और (क्ष न द्रा), जैसे, कट क= सिन् उ, कट् अ........(१)। रेखां मिली हैजहां, उसो स्थानको क्रान्तिपात कहते कस् कटान् उ, कट् (न क्ष)...(२)। एवं टान् ट्रा= कस, इस क्रान्तिपातके उत्तर-दक्षिण लम्बखरूप जिस (न क्ष ट्रा), टान् (न क्ष) = कस. (क-क्र) टान् उ सेक् क...(३)। रेखाकी कल्पना की जाती है, उसका नाम विषुव- ऊपरके दक्षिण-उदय-कालको (१०.१५२४) पन्द्रहसे गुण रेखा पड़ा है। सूर्य जिस गति द्वारा विषुवरेखासे करनेपर १५०°२८ वृत्तांश पाता है। लग, सिन् १५० २८%De६८२७८५ दक्षिण और उत्तर जाते हैं, वह अयनगति है। कट १२ ३३८-१०.६५२०५० ७२ वर्षमें एक अंश अयनगति चलती है। अयनांश कट २४.१६-१०३४४८३५ शून्य होनेसे दिन और रात दोनों समान रहते टान् १५०० २८-९७५३२३१ हैं और क्रान्तिपात होता है। पहले चैत्र कृष्ण मेक २४ १९४६१००४०३०६ अमावस्याको क्रान्तिपात हुआ करता था। कस ०.५२१६ %D९९६५० वेदके संकलनकालमें संक्रान्तिके समय राशिचक्रके टान १४८८६७६३५५७ प्रथममें कृत्तिका नक्षत्र इसलिये क=२४. १९४६ रहा। अब चैत्र शुक्ला क्र-२३ २७°३१ दशमीको दिन और रात दोनों बराबर होते क-क्र-०:५२१६ हैं, और राशिचक्रके. प्रथममें अश्विनी रहती है। एवं द्रा- १४८६

  • Theosophist: September, 1881, Vol. 11. No. 12.

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