पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३०४ अथर्ववेद छः छः, चतुर्थ काण्डके प्रति सूक्त में सात-सात और पञ्चम काण्डके प्रति सूक्तमें आठसे लेकर अट्ठारह-तक ऋक् वर्तमान हैं। छठे काण्ड के प्रति सूक्त में तीन- तौन ऋक् हैं और सप्तम काण्डके प्रति सूक्तमें एक ही एक ऋक् मिलता है। अष्टम काण्डसे अष्टादश काण्ड पयन्त अनेक बड़-बड़े सूती हैं। त्रयोदश काण्डमें रोहित नामक देवताका विवरण दिया गया है। कदाचित् वही सबके सृष्टिकर्ता होंगे। उनकी पत्नीका नाम रोहिणी था: चतुर्दश काण्डमें विवाहको कथा है। पञ्चदश काण्डमें व्रात्यका वृत्तान्त कहा गया है। षोड़श और सप्तदश काण्ड में विविध विषय संकलित हुआ है। विश काण्डके अधिकांश स्थल में इन्द्रदेवकी स्तुति देख पड़ती है। यह स्तुति प्रायः समस्त ऋग्वेदके प्रथम मण्डलसे उद्धृत की गई है। अथर्व वेदका कमसेकम छठवां भाग ऋग्- वेदक मन्त्रोंसे बनाया गया है, जो प्रथम और दशम मण्डलके ही अधिक हैं। अथर्व वेदमें भी पुरुषसूक्त है, किन्तु ऋगवेदके पुरुषसूक्तसे इसमें पाठका अनेक प्रभेद देख पड़ता है। युरोपीय पण्डिौंका मत,-कोलब्रुक साहब कहते हैं, कि अथर्ववेद-संहिता, २० काण्ड विद्यमान हैं। यह काण्ड अनुवाक्, सूक्त और ऋक्-इन तीन भागों में विभक्त हैं। अनुवाक्को एक शतसे और सूक्तको संख्या साढ़े सात शतसे अधिक है, मन्त्र केवल ६०१५ मिलते हैं। इसमें प्राय ४० प्रपाठक पाये जाते हैं ।* शास्त्रदर्शी विलसनके मतसे 'अथर्व' वेदमें गण्य नहीं, वरं यह वेदका क्रोडपत्रस्वरूप है। किन्तु उपनिषदीको छोड़ अथर्ववेदमें ही लिखा हैं, कि यह चतुर्थ वेद है,- “यस्माको अपातक्षन्ययजुर्यस्मादपाकषन् । सामानि यस्तो लोमान्यधर्वाङ्गिरसो मुखम् । स्कम्भ' तं ब्रूहि कतमः खिदैव सः॥ अथर्व १०४२० 'जिससे लोगोंने ऋक् मन्त्र पृथक् कर लिये हैं, तथा यजुः खींचा है, साम जिसका लोम और अथर्वाङ्गिरस जिसका मुख है वह स्कम्भ कौन है ? यह बात आप हमसे कहिये।' युरोपीय पण्डितोंके मतसे अथर्व वेदका कोई-कोई अंश अतिप्राचीन और कोई-कोई अंश आधुनिक है, जो ऋग्वेदके दशम मण्डल बनने के बाद रचा गया था । अथर्ववेदका कोई-कोई अंश प्राचीन ऋग्वेदसे मिलता है सही, किन्तु दोनोंका प्राकृतिक भाव विचारकर देखनेसे सम्पूर्ण विभिन्न मालूम देता है। ऋग्वेदके ऋषि प्रकृतिक सौन्दर्यसे विमोहित हैं, किन्तु अथर्ववेदके ऋषि उपदेवोंके भय और उनके भौतिक प्रतापसे अतिशय चिन्तान्वित हैं। उक्त वैलक्षण्य रहते भी यह प्रमाणित हुआ, कि अथर्व- वेदका कोई-कोई अंश अतिप्राचीन है। सुप्रसिद्ध हटने साहबका कहना है,–'अथर्ववेद ऋग्वेदकी तरह ऐतिहासिक है, किन्तु याज्ञ नहीं। पहले यह वेद अष्टादश काण्डोंमें विभक्त था। इसका षष्ठांश भी छन्दमें न लिखा गया था। अवशिष्ट छन्द अर्थात् एकषष्ठांश ऋक्सूक्त, विशेषतः ऋग्वेदके दशम मण्डलमें देखा जाता है। बाकी सभी अथर्ववेदका अपना अंश है।' हटने साहबने ऐसे ही प्रमाणित किया है, कि ऋक्संग्रहकालमें अथर्ववेदका अपना अंश विद्यमान न था। अध्यापक केरण (Kern) साहबने अपने भारतवर्षीय श्रेणीविभागप्रणाली नामक ग्रन्थमें लिखा है,- अथर्ववेदका प्रायः अद्धांश ऋग्वेदसे मिलता है, इसलिये अथर्ववेद भी ऋग्वेदको तरह प्राचीन हो सकता है। केवल अथर्ववेदका अवशिष्ट अंश भाषा, मन्त्र और वर्णनापद्धतिके अनुसार ऋग्वेदको अपेक्षा अप्राचीन भी माना जा सकता है। ऋग्व दमें वहिक शब्दका कोई उल्लेख नहीं, किन्तु इस वेदके स्थान-स्थानमें यह शब्द उल्लिखित हुआ है। अथर्ववेद ५।२२। ५, ७. ६, देखो। Mr. Whitney's Papers on the Journal of the American Oriental Society, Vol. iii. p. 305ff ; iv, p. 155ff ; Max Müller's Anc. Sans. Lit. p. 38, 446ff. $ Indische Studien, p. 295 : Zwei Vedische Texte über Omina und Portenta, p. 345-348.

  • Asiatic Researches, Vol. VIII.

+ Wilson's Rigveda, Introduction, p. viii.