पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३१५

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अथर्ववेद "श्रावतम्त आवतः परावतस्त आवतः। अन्तर्गत यष्त् और बेन्दीदाद विभागका ऐक्यकर इहैव भव मा नु गा मा पूर्वाननु गा: पितून नु बध्नामि ते दृढम् ॥१ देखनेसे कितनी ही बातोंका सादृश्य देखा जा यत् त्वाभिचैनः पुरुषः स्खो यदरणी जनः । सकता है। उन्मोचनप्रमीचन उभे वाचा वदामि ते ॥२ अथर्ववेदके ८३ काण्डवाले १ले सूक्तमें मृत्यु के यद दुद्रोहिय शेपिर्ष स्विवैः पुसे अचित्त्या । उन्मो० ॥३ प्रति लिखा है,- बदनसी मारकता पिटताच्च यत् । उन्मोचनप्रमोचन उभे वाचा वदामि ते ॥ ४ "अन्तकाय मृत्यवे नमः प्राणा अपाना इह ते रमन्ताम् । यत् ते माता यत् ते पिता जामिर्धाता च सर्जतः । इहायमस्तु पुरुषः महामुना सूर्टस्त्र भाग अमृतस लोके" प्रत्यक् सैवस्व भेषज जरदर्षि कणोमि त्वा ॥ ५ 'अन्तक मृत्युको नमस्कार है। तुम्हारा प्राण इहेधि पुरुष मवेण मनसा सह । और अपान वायु इसी जगह रहे। इसी सूर्यपुर टूती यमस्य मानु गा अधि जीवपुरा इहि ॥६ और अमृतलोकमें आत्माके साथ यही पुरुष विद्यमान अनुहृतः पुनरहि विद्वानुदयनं पथः । रहे।' आरोहणमाक्रमणं जीवतो जीवतीयनम् ॥ ७ अथर्ववेदके वे काण्ड के १३ वें सूक्तमें सभा- मा विभेन भरिष्यसि जरदष्टिं कृणोमि त्वा । समितिक विषयपर लिखा है,- निरवीचमहं यचममङ्गेभ्यो अङ्ग ज्वरं तव ॥"८ इत्यादि ५म काण्ड ३० सूक्त । "सभा च मा समितिशावतां प्रजायते हितरौ सविदाने । बैना स'गच्छा उप मा स शिक्षाचार बदानि पितरः स'गतेषु ॥ १ 'तुम्हारे निकटसे, तुम्हारे निकटसे, तुम्हारे विद्म ते सभे नाम नरिष्टा नाम वा असि । दूरसे ( मैं तुमको बुलाताह)। इसी जगह ये ते के च सभासदतं मे सन्तु सवाचसः ॥ २ रहो। जाओ नहीं, अपने पूर्वपिटपुरुषों के एषामहं समासीनानां वचों विज्ञानमा दद। समौच मत जाओ। मैं तुमको दृढ़ रूपसे पकड़कर अस्था: सर्वस्वाः ससदी मामिन्द्र भगिनं कृणु ॥ ३ रखता हूँ। तुम्हारा आत्मीय व्यक्ति किंवा अन्य यदि यद वो मनः परागतं यद वडमिह वेह बा। कोई अभिचार करता रहा हो, तो मैं मन्त्र पढ़कर तद आव वर्तयामसि मयि वो रमतां मनः ॥" ४ उसे दूर किये देता हूं। यदि तुमने बेसमझे किसी 'सभा और समिति दोनों प्रजापतिकी कन्या हैं। स्त्री किंवा पुरुषको कष्ट अथवा शाप दिया हो, तो वह हमारी रक्षा करें। जिनके साथ हमारा मिलन मैं उसे छुड़ा देता है। यदि तुमको पिता या माता होता है, वह हमारे पास आयें। हे पिटगण ! के पापसे यह पौड़ा होती हो, तो मैं मन्त्र पढ़कर उसी लोकसमागमके मध्यमें में सत्कथा कह। उसे झाड़े डालता हूं। तुम्हारे पिता, माता, भ्राता, हे सभे ! हम तुम्हारा नाम जानते हैं। तुमको सदालाप मगिनी आदि जो औषध देते हैं, उसे सेवन करो। कहते हैं। सभासद् हमारे साथ बात किया करें। मैं तुमको दीर्घजीवी बनाता हूं। हे पुरुष! अपने यहां जो बैठे हैं, उनका तेज और ज्ञान हम लेते हैं। समस्त मनके साथ इस जगह रहो। दो यमदूतोंके हे इन्द्र ! इस सभामें सबको अपेक्षा हमें प्रसिद्ध करो। साथ मत जाओ। इस, जीवित मनुष्योंको पुरीमें यदि आपका मन किसी दूसरी जगह जाकर अटक रहो। जीवितोंके पथवाले उदयन, आरोहण, अव. गया हो, किंवा इसी जगह रुक या अन्यत्र रह तरण प्रभृति मनमें विचार, तुमको बुलाने पर लौट जाये, तो वह वापस आये और हममें रमण आना। कोई डर नहीं, तुम मरोगे नहीं; मैं किया करे।' तुमको दीर्घजीवी कर देता हूं। यक्ष्मारोगसे तुम्हारा अथर्व वेदके १८वे काण्डवाले ठें पुरुषसूक्तमें शरीर क्षय होता था, उसे मैं झाड़ रहा है।' कहा मया है ;- अविस्ताके किसी-किसी भागमें ऐसे ही मन्त्र सन्नि- "सहस्रबाहुः पुरुषः सहसाचः सहस्रपात् । वेशित हैं। यहांतक, कि इस वेदके साथ अविस्ताके 'विश्वतो कृत्वात्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम् ॥ १