पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३१७

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अथर्ववेद सजीव और क्या निर्जीव-सकल वस्तुओं में ही व्याप्त दिया गया है। (पुरुष और विपाद शब्दका विवरण तत्तत् हो रहे हैं। ४। उनसे विराट्ने जन्म लिया और शब्दमें देखी।) विराट्स पुरुष उत्पन्न हुए। वह जन्म लेकर पश्चाद् वेदक सङ्कलन-कालमें लाङ्गलादि अर्थात् हल- और अग्रवर्ती भूमिमें व्याप्त हो गये । ५ । देवताओंने आदिको पूजा की जाती थी,- जब पुरुषके द्वारा यज्ञ किया, तब वसन्त वृत, ग्रीष्म "सौते बन्दामह त्वाची सुभगे भव । यज्ञकाष्ठ और शरत् हविः बना था ।६। उसी यथा नः सुमना असो यथा नः सुफला भुवः ।" अथर्ववेद ३।१७।८। यज्ञमें अग्रजातने पुरुषको कुशके ऊपर वलि चढ़ाया। 'हे सुभगे हलकी रेखा ! आप अधिष्ठान कौजिये । उनके साथ देवताओंने साध्यों और ऋषियोंको भी वलि हम आपको इसलिये वन्दना करते हैं, कि आप दिया था।७। उसी सर्व जन-अधिष्ठित यज्ञमें सदधि प्रसन्न हों और वसुमतीको सुफला बनायें।' वृत और त उत्पन्न हुआ। उन्होंने शून्यके जन्तुओं अन्यत्र, एवं वन्य और ग्राम्य पशुओंको सृष्टि की।८। "इन्द्रः सीतां निग्रवातु तां पूषाभि रक्षतु । उसी सर्व जन-अनुष्ठित यज्ञसे ऋक्, साम, छन्दः सा नः पयस्वती दुहामुत्तरामुत्तरां समाम् ॥” अथर्ववेद ३॥१७॥४॥ उत्पन्न हुए। फिर, उनसे यजुःने भी जन्मग्रहण 'इन्द्र हलको रेखाको ग्रहण करें, पूषा उसको रक्षा किया। (यहां ऋक्, साम, यजुः तीनो वेदोंका नाम करें; वह पयस्विनी हो प्रतिवर्ष हमें शस्य दिये नहीं।)। उससे अख और दो पंक्तिवाले दांतोंके जायें। पशु उत्पन्न हुए। उससे गायबैल और गायबैलोंसे ब्रह्माण्डपुराणमें अथर्ववेदका प्राधान्य प्रतिपादित भेड़-बकर पैदा हुए। १० । जब उन्होंने उस पुरुषका हुआ है,- विभाग किया, तब कितने भागोंमें बांटा था ? "वह चो हन्ति व राष्ट्र मध्वर्युर्नाशयेत् सुतम् । उनका मुख क्या है ? बाहुयुगल क्या है ? अरुहय छन्दोगी धनं नाशयेत् तस्मादायव णो गुरुः ॥" और पद किसे-किसे कहेंगे? ११। ब्राह्मण 'वढच (ऋग्वेदके पुरोहित) राज्य नष्ट करते, उनके मुख थे, उनके बाहु बने, अध्वर्यु ( यजुर्वेदके पुरोहित ) सन्तान नष्ट करते ; वैशा उनके ऊरु और शूद्र उनके पदसे उत्पन्न छन्दोग (सामवेदके पुरोहित ) धन नष्ट करते हुए। १२। उनके मनसे चन्द्र उत्पन्न हुआ, लिये आथर्वण ही सब वेदोंसे श्रेष्ठ है।' चक्षुसे सूर्यने जन्मग्रहण किया, मुखसे इन्द्र "अथर्वा सूजते घोरमद्भुतं शमयेत् तथा । और अग्नि, प्राणसे ( प्राणवायु ) वायु उत्पन्न अथर्वा रक्षते यनं यज्ञस्य पतिरङ्गिराः॥ हुए। १३। नाभिसे अन्तरीक्ष, मस्तकसे द्युलोक दिव्यान्तरिक्षभीमानामुत्पातानामनेकधा । उत्पन्न हुआ। पादद्दयसे भूमि, कर्णसे दिशा निकली। शमयिता ब्रह्मवेदजस्तस्मादक्षिणातो भृगुः ॥ इसीतरह उन्होंने जगत्को सृष्टि को। १४ । देवताओंने ब्रह्मा शमयेन्नाध्वर्युन छन्दोगी न वचः । जब वलि देनेके लिये पुरुषको पशुस्वरूप बनाकर रक्षांसि रक्षति ब्रह्मा ब्रह्मा तस्मादथर्व वित् ॥” (ब्रह्माण्डपु.) बांधा था, तब उनके लिये अग्निको वेष्टन कर सात 'अथर्ववेदी पुरोहित उत्पातको सृष्टि करते और समिधा रखी गई थीं और इक्कीस समिधासे यज्ञ किया उपद्र्वको शान्ति भी करते हैं। अथर्ववेदी पुरोहित गया था। १५। देवताओंने यज्ञ द्वारा उनका याजन यज्ञ रक्षा करते एवं अङ्गिरा यज्ञके पति हैं। किया। पहले वही सकल धर्म थे। महिमा ब्रह्मवेदज्ञ (अथर्ववेदज्ञ) व्यक्ति द्युलोक, अन्तरीक्ष और वितोंने स्वर्गको गमन किया, जहां पूर्वतन साध्य पृथिवीके नाना प्रकारके उत्पातोंको शान्ति करते हैं। • और देवता विद्यमान हैं। १६ ।' अतः भृगुको दक्षिणदिशामे रखना आवश्यक है। ऊपर ऋग्वेदके सूक्तका अविकल अनुवाद कर ब्रह्मा ही (अथर्ववेदी) अनिष्टको शान्ति कर सकते राजन्य इस-