पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३२२

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अदय-अदरक ३१५ जीता जा सके। (पु०) ५ तीन वर्षसे कम अवस्थाका दूसरे शताब्दमें मिश्रके प्रधान नगरसे इस मसालेपर बछड़ा। अपालन निमित्त अदम्य बछड़े के नष्ट रूमियोंने सरकारी खजानेको चुङ्गो लगाई थी। होनेसे उसका स्वामी प्राजापत्यका पाद प्रायश्चित्त मध्यके समय यह प्रायः ऐसी ही तालिकाओंमें करे। इस स्थल में कोई-कोई ऋषि खामीको गोवधका उल्लिखित हुआ और पूर्व से युरोपके व्यवसायमें इसको पाद प्रायश्चित्त करना बताते हैं,- गणना प्रधान रही। इसकी खेती भारतवर्षके प्रत्येक “पादद्याप्राप्त के देयो वत्से खामिन्यरक्षिते।” (प्रायश्चित्त वि०) उष्ण और सजल भाग तथा ४००० से ५००० हजार “अप्राप्त के अप्राप्तदम्यावस्थे विहायणपर्यन्तमिति यावत् ।" (टीका ) फीट ऊंचे हिमालयमें की जाती है। इसके बोने कहते हैं, कि उक्त वचनमें वत्स शब्द रहनेके कारण और तय्यार करने में बड़ा परिश्रम करना और दो वर्ष पर्यन्त अदम्य अवस्था मानना पड़ेगी और ध्यान देना होता है। भूमि अवश्य उपजाऊ इन्हीं दोनो वर्षों के मध्यमें प्राजापत्यका पाद प्रायश्चित्त चाहिये, किन्तु न तो अधिक भारी और न अधिक कर्तव्य है। इसके सम्बन्धमें लोग यह वचन सुनाया हलको और मोटी ही हो। इसके सींचने में अधिक करते हैं,- सावधान रहनेको आवश्यकता है। इसमें खाद "वर्षमावातु बाला स्यादतिबाला द्विवार्षि कौ। खूब पड़ती, और यह बड़ी सावधानतासे निराई अत:परन्तु सा गौः स्वात्तरुणी दन्तजन्मनि ॥" जाती है। पर्षको बाला, दो वर्षको अतिबाला, तत् कोई तीन शताब्द हुए मालावरवाले जिस पश्चात् तरुण अवस्थामें दांत निकल आनेपर बछिया अदरकको बड़ी प्रशंसा की गई थी, अब कहते गो कहलाती है। हैं, कि वह कालीकटसे दक्षिणमें अवस्थित चेरनाद अदय (सं. त्रि.) दयारहित, बेरहम । जिलेकी पैदावार है। इस जिलेको भूमि खूब अदयालु (सं० त्रि.) करुणाशून्य, नामेहरबान । लाल और उपजाऊ होनेसे अदरक बोनेके लिये अदर (स' त्रि०) १ अधिक, ज्यादा ; कम नहीं। विशेष उपयोगी है। साधारणतः यहां इसकी खेती २ पगू देशके सत्रहवें राजा। वैशाख मासके मध्यमें प्रारम्भ होतो, जब भूमि भलौ- अदरक (फा. पु०) आईक, आदा, अदरख । भांति जोत-जातकर ठीक कर दी जाती है। वृष्टि इसका वृक्ष एक गज ऊंचा होता है, और इसमें आरम्भ होनेके समय १०-१२ फीट लम्बो और ३-४ लम्बी-लम्बी पत्तियां लगती हैं। वास्तव में इस वृक्षका फीट चौड़ो क्यारियां बनाई जाती और उनमें कोई उत्पत्तिस्थान क्रान्तिसीमावाला एशियाखण्ड है, एक फूटके अन्तरसे छोटे-छोटे गड्डे खोदकर खाद जहां इसको खेती बहुत पुराने समयसे होते आई भर देते हैं। इसके पश्चात् इसकी जड़वाली जो राशि एशियासे लोग इसे पश्चिम-इण्डीज़में ले गये, होशियारोसे भूमिमें बोनेके लिये गाड़ी जाती है, जहां अब यह अधिकतासे पाया जाता है। पूर्व उसे खोदते और उसका अच्छा-अच्छा अंश काट, और पश्चिम इण्डीजसे यह पुरानी और नई दुनियाके डेढसे दो इञ्चतकके टुकड़े बनाते हैं, जिससे वह उष्ण प्रदेशोंमें फैल गया, अफ्रीकासे कुछ अदरक लगाने योग्य हो जाती है। फिर उन टुकड़ोंको व्यवसायके लिये बाहर भेजा जाता है। गड्डोंमें गाड़ और क्यारियोंपर हरी पत्तीकी गहरी संस्कृतमें शृङ्गवेर और अरबौमें इसे जञ्जबील तह चढ़ा देते हैं। यह तह खादका काम देती कहते हैं। यूनानी और रूमौ इसे पहले मसाला और क्यारियोंको नमोसे भी बचाती, जो वृष्टिक ही समझते थे, जिन्हें सम्भवतः यह रक्तसागरको राहसे अमोघ जलसे होती है। बाढ़से फसल बिलकुल प्राप्त होता था। उनका खयाल था, कि यह दक्षिण बिगड़ जाती, किन्तु उत्तम रूपसे जल आवश्यक अरबमें पैदा होता था। कहते हैं, कि सन् ई० के होनेके कारण सिंचाई पर अधिक ध्यान देना होता