पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३२३

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अदरक पूरा होनेके है। क्यारियां ढांकने के लिये पत्ती बड़ी होशियारीसे लेनेके पश्चात् अदरक व्यवहारोपयोगी बनता है। इकट्ठा करना चाहिये ; क्योंकि कुछ पत्ती ऐसी हैं, खानदेशमें घोड़ेको लौद, गोबर और भेड़की जिन्हें डालनेसे कीड़े-मकोड़े पैदा हो जाते, जो लेंडी समान भाग मिलाकर खादका काम लेते हैं। फसलको भविष्यत्में हानि पहुंचाते हैं। यह बात साफ करनेके लिये पहले जड़को चौड़े मुहके बरतन- भले प्रकार नहीं बताई जा सकती, कि कितने क्षेत्र में कुछ-कुछ उबालते और फिर कुछ दिन छायांमें कलमें कितना अदरक निकलता और उससे क्या लाभ सुखा, चनेके हलके पानीमें डुबाते हैं। पश्चात् इसे होता है। धूपमें सुखाते, गहरे चूनेके पानीमें डुबाते और जोश बम्बई-प्रान्तमें इसको खेती ख ब की जाती है। देनेके लिये भूमिमें गाड़ देते हैं। जोश देनेका काम वीजका अदरक फालान और चैत्र मासमें खुदता है। पश्चात् अदरक सोंठ बन और जब पौधा मुरझा जाता है, तब सबसे अच्छी जड़ बाजारमें बिकनेके लिये भेज दिया जाता है। कहते धोकर छायामें सुखा लेते, और सूखे गन्ने तथा हैं, कि अदरक एक बौधेमें पचाससे डेढ़ सौ मन अदरककी पत्तीपर उसका ढेर लगा देते हैं। जड़पर तक पैदा होता है। अदरक पौन मनसे सवा भौ कितनी ही पत्ती डालकर फिर सबको चिकनी मन और सोंठ पांच सेरसे दश सेर तक रुपयेमें मट्टौसे छोप देते हैं, जिससे हवा भौतर न पहुंच सके। बिकता है। इस प्रकार जड़को बोनेके समयतक सुरक्षित रखते हैं, बङ्गालमें कई जगह अदरककी खेती ली है। यथा समय जिसमें अङ्गुर फूट पड़ता है। जैसी भूमि | तिरहुत और सारनके लोग नैपालो अदरकके स्वादको गन्नेको चाहिये, वैसी ही इसे भी आवश्यक होती है, बड़ी प्रशंसा करते हैं। आलू और घुइयां होनेके अर्थात् ढोलो, हलको और विना पत्थरको भूमि, पश्चात् बङ्गालमें अदरक लगानेसे सुभौता होता जिसमें कमसे कम चौथाई भाग रेतका रहे। चैत्रसे जब-जब पानी बरसे, तब-तब इसका खेत आषाढ़ तक अदरक लगाते हैं। चैत्रमें जो अदरक फाल्गुनके अन्त, चैत्रकै आदिसे जोत डालना चाहिये ; लगाया जाता, उसे पांच-पांच दिनपर सींचना वैशाखका दूसरा या तीसरा सप्ताह इसके लगानेका पड़ता है। भूमिको ठण्डा और सजल रखनेके लिये समय है। अङ्गुर दश-पन्द्रह दिनमें ही फूट सकता इसके साथ पटुवा बो तथा नये पौधोंको घास और है, किन्तु कभी-कभी दो महीने लग जाते हैं। खेत केलेकी पत्तीसे ढांक देते हैं। इसके विरुद्ध यदि सूखा होनेसे कार्तिक और अग्रहायणके आदिमें भी यह वृष्टि प्रारम्भ होनेके बाद लगाया गया हो, सोंचनको आवश्यकता पड़ती है। शीतकालमें वृष्टि तो पटुआ बोने या पौधोंको घाससे ढांकनेको कोई न होनेसे माघके अन्त या फाल्गुनके आदि तक, आवश्यकता नहीं पड़ती। अदरकका खेत महीने में दो बार खेत सींचना होता है। एक क्यारियों में बंटता और प्रत्येकके बीच में पानीको एक मन अदरक डाला जाता, तथा नाली बना दी जाती, जिसमें लालमिर्च और हलदी चालीससे साठ मन तक प्रायः उपजता है। उपजती है। जब अदरकका नया पौधा एक फट आश्विन और कार्तिकमें किसान होशियारीसे कुछ ऊंचे चढ़ता है, तब प्रत्येक क्या में कोई ढाई बोया हुआ अदरक निकालकर ऊंचे दामपर बेच मेर खल डालते हैं। यही काम श्रावण और भाद्र लेते हैं। एक बोधेको खेतीमें लगभग छियालीस मासमें फिर दुहराया जाता है। पहली और दूसरोको रुपये खर्च होते हैं, जिनमें सोलह रुपया अदरकके छोड़कर, खादको तीसरी तह मट्टीसे ढांक देते हैं। वीजका दाम पड़ता है। फिर सात रुपयेको खाद प्रायः महीने में जड़ खोदनेको तय्यार होती है। जड़ आती, और बाकी रुपया दूसरे कामों में लग जाता खोदने, बकला खपरसे रगड़ने और जड़ धूपमें सुखा है। चालीससे साठ मनकी उपजका दाम अस्मीसे बौधौ चार