पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३२४

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खांसी और क्षुधा इसके बाद अदरक अदर्शन एक सौ बीस रुपये तक होता, जिसमें बीघे पीछे रसको दूधके साथ पीनेसे जुकाम, बत्तीससे चौहत्तर रुपये तक लाभ मिलता है। निवृत्ति दूर हो जाती है। मुसलमान-हकौमोंने संयुक्तप्रान्तके कुमायूको उपत्यकाओंमें अदरक भी इसका ऐसा ही गुण बताया है। ताज़ा अदरक खूब लगाया जाता है। यहां भो खेती वैसे ही की घराऊ दवाओं में अधिक पड़ता है। रसको चीनी या जाती, जैसे मन्द्राज और बम्बईके सम्बन्धमें कहा मधुके साथ जुकाम और खांसीपर देते, और नीबूके गया है। कुमायूके अदरकको अधिक प्रशंसा है और अर्क में मिला उससे पित्तजनित अजीर्णको रोकते हैं। इसको उत्तमतापर पहाड़ियोंको बड़ा विश्वास जम बम्बईमें विसूचिका ( हैजा) या वमन रोग होनेसे गया है। संयुक्त प्रान्तको तरह पञ्जाबमें भी हिमा अदरकका रस समान भाग तुलसीके रससे मिला, लयको निम्न और उच्च उपत्यकाओंपर अदरकको तथा उसमें थोड़ासा मधु और मोरपङ्खका भस्म खेती होती है। फसलको भाद्र, आश्विन और डालकर प्रायः सेवन कराया जाता है। कार्तिक-वर्षमें तीन बार निराते हैं। एक बौधेमें अदरक भारतके सभी बाजारोंमें बिकता और आठ मन अदरक पड़ता, अच्छी फसल होनेसे बत्तीस अधिकांश मसालेको तरह काममें आता, जिससे मन निकलता है। शिमलेके पास सबाथू जिले में प्रधानतः तरकारी बघारी जाती है। इससे चटनी सबसे अच्छा अदरक पैदा होता है। यहां अदरक और मुरब्बा भी बनता है। विभिन्न स्थानोंके अदरकमें एक टोकरी में रख, और रस्सीसे ऊंचा बांध, तीन दिन विभिन्न गुण विद्यमान है। बम्बईमें तीन प्रकार तक रोज़ दो घण्टे हिला-हिलाकर सुखाया और फिर को सोंठ बिकती है-अहमदाबादी, कलकतिया आठ दिनतक धूपमें डाला जाता है। और मालावरी या कोचिनी। इनमें मालावरको फिर टोकरेमें रख, इसे हिलाते, और दो दिन सोंठ प्रायः दूने दामपर बिकती है। युक्तप्रान्तमें बाद सोंट बना लेते हैं। सोंठ अदरकसे मंहगो कुमायूं, पञ्जाबमें सबाथू और बङ्गालमें नेपालका बिकती, तथा उसमें लोगोंका परिश्रम सफल होता अदरक सबसे अच्छा समझा जाता है। भारतसे प्रति वर्ष कितना हो अदरक जहाजों द्वारा विलायत वैद्य और हकीम अदरकको बहुत पुराने समयसे भेजते हैं। औषधमें व्यवहार करते आये हैं। वेद्योंने इसे अदरको (हिं० स्त्री०) टिकिया-जो सोंठ और गुड़ चरपरा, गर्म, वातनाशक और लगानेसे चमड़ेको मिलाकर तय्यार होती है, सोंठौरा। लाल करनेवाला बताया है। उनके मतसे यह अदरा-पार्दा देखो। अजीर्ण, कण्ठरोग, शिरःपौड़ा वक्षवेदना, गठिया, अदराना (हिं० क्रि.) १ आदर पानेका इच्छुक सूजन, जलोदर, और अन्य अनेक रोगों में लाभदायक होना, मान चाहना, इज्जत पानेको खवाहिश करना, है। पुराने वैद्य प्रायः वातरोगके निवारणार्थ त्रिकटु इतराना, नखरे दिखाना। २ मान बढ़ाकर शेखोपर ही बताते हैं, जिसमें सोंठ, मिर्च और पीपल पड़ती चढ़ाना, अभिमानी बनाना, फुलाना। है। वैद्योंको विश्वास है, कि सोंठमें अदरकके सब अदर्श (सं० पु०) १ जो न दिखाई दे। २ अमावस्या। गुण रहते हैं और सिवा इसके यह रेचक भी होता (हिं० ) ३ दर्पण, आईना। है। भोजनसे पहले नमकके साथ अदरक खानेसे अदर्शन (सं० क्लो०) न दर्शनम् ; दृश् -ल्यु ट्, नज्- वातरोग दूर हो जाता है। साधारणत: यह गले तत् । अदर्शनं लोपः । पा १।१।६०। १ दर्शनाभाव, लोप। और जीभको साफ़ करता, भूक बढ़ाता एवं चित्त २ असावधानता, गफलत। (त्रि.) नास्ति दर्शनं प्रसन्न रखता है। शिरकी पौड़ा या दूसरी वेदनामें यस्य, बहुव्री। ३ दृष्टिशून्य, दर्शनका अविषयीभूत, अदरकका रस दूधमें मिलाकर सूंघते हैं। ताजे अगोचर, जो देख न पड़े।