पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३२७

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अदाट-अदावतो जो न दे। २ कपण, बखोल। (त्रि.)३ वद्दमुष्टि, कानीनय सहोदय क्रौत: पौन वस्तथा। खयन्दत्तच्च शौट्रय षडदायादबान्धवाः ॥"६१६० कञ्जुस। अदाट (सं० त्रि०) न-दा-टच्, नञ्-तत् । कपण, 'स्वायम्भुव मनुने जिन बारह प्रकारके पुत्रों को बात न देनवाला। (स्त्री०) डीप-अदात्री। कही है, उनमें छः प्रकारके पुत्र पित्रादि धनके अदादि (सं० त्रि०) वह धातु जिनकै आदिमें अट् अधिकारी होते, तथा पिता की तरह सपिण्ड- हो। धातु पाठकै दश गणों में यह एक गण है। इस समानोदकका पिण्डदान और तर्पणादि कर सकते गाको धातुओंमें 'शप्' प्रत्ययकालोप हो जाता है। हैं। औरस, क्षेत्रज, दत्तक, कृत्रिम, गूढोत्पन्न और अदान (सं० क्लो०) न दानम्, अभावार्थे नञ्-तत् । अपविद्ध-यही छः प्रकारके पुत्र पैटक धन और दानाभाव, कञ्ज सौ। (पु०) २ मदजलशून्य हस्ती, पिण्डदानके अधिकारी हैं। कानीन, सहोढ, क्रोत, हाथौ जिसके मद न भरता हो। (त्रि०) नास्ति पौनर्भव, स्वयन्दत्त और शौद्र-यह छ: प्रकारके पुत्र दानं त्यागो मदजलं वा यस्य । ३ दानशून्य, कञ्ज स। पिठ्धनके अधिकारी नहीं, किन्तु बान्धव होते ४ निबुद्धि, बेसमझ। अर्थात् पिण्डादि दे सकते हैं।' (पुत्र शब्दमें गूढोत्पन्न अदानी (हिं० वि०) कृपण, कञ्जुस, न देनेवाला। प्रभतिका विवरण देखो।) अदान्त (सं० त्रि.) न दान्तम्, दम्-णिच्-त कर्मणि । २ उत्तराधिकारीरहित, लावारिस । वा दान्तशान्तपूर्ण दस्तस्पष्टच्छन्नज्ञप्ताः । पा रा२७ । अविनीत, अदायिक (सं० त्रि०) न दायमर्हति, दाय-ठक् ; जिसको इन्द्रियां वशमें न हों, विषयासक्त, अजितेन्ट्रिय, नञ्-तत्। १ दायादशून्य, जिसका कोई दावेदार ऐयाश, लम्पट। न हो। २ दायादसे सम्बन्ध न रखनेवाला, जो अंदान्य ( स० त्रि०) न देनेवाला, कञ्जुस । विरासतसे ताल्लक न रखे। अदाभ्य (वै० त्रि.) न-दम्भ-ण्यत्, नञ्-तत्। अदार (सं• पु०) १ जायारहित पुरुष, बेजोड़ का मर्द १.अहिंस्य, निश्छल । २ दम्भरहित, सीधा-सादा। २ अहिंस्य व्यक्ति, नुकसान न करनेवाला आदमी। (पु०) ३ ज्योतिष्टोम यज्ञमें सोमरस समर्पण करनेको अदारश्रित (वै० त्रि०) अछूता भाग जानेवाला, जो एक प्रक्रिया। बेचोट खाये भाग जाये। अदामन् (वै० त्रि०) कृपण, कञ्जुस । अदारिका (सं० स्त्री० ) वृक्षकमल, वृक्षोत्पल । अदाय (स. त्रि०) नास्ति दायो यस्य। पैक अदालत (अ० स्त्री०) न्यायालय, कचहरी, विचार सम्पत्तिका अंश पानेके अयोग्य, पतित ज्ञाति। होनेका स्थान। अदालतमें हाकिम मुकद्दमें फैसल अदायां (हिं० वि०) १ अदक्षिण, वाम, प्रतिकूल, करते हैं। इसमें दो विभाग रहते हैं-फौजदारो खिलाफ। २ अनुत्तम, बुरा। और दीवानी। अदायाद ( स० वि०) न दायादः। दायं विभजनीय- अदालतो (अ० वि० ) १ न्यायालय-विषयक, अदा- धनमादत्त इति, दाय-आ-दा-क; अथवा दायमत्तीति, लतका। २ अदालत करने या मुकद्दमा लड़नेवाला। दाय अद् अण, उप-स। १ असपिण्ड, पतित ज्ञाति, अदाव (हिं० पु.) १ काठिन्य. मुश्किल। २ पेंच, जो पित्रादि धनका अधिकारी न हो। मानव मार। ३ छल, धोखा। धर्मशास्त्रमें लिखा है,- अदावत (अ० स्त्री०) शत्रुता, वैर, विरोध, विद्वेष, "पुवान् हादश यानाह नृणां स्वायम्भुवो मनुः । दुश्मनी, आंट, लाग। तेषां षट् बन्धुदायादाः षडदायादबान्धवाः ॥ १।१५८ अदावती (अ॰ वि०) दुश्मनी रखनेवाला, जो लाग- औरसः चवजयव दत्तः कृविम एव च । डांट माने । २ शत्रुता उत्पन्न करनेवाला, जिससे ..... गूढोत्पन्नोऽपविद्धय दायादा बान्धवाच षट् ॥ ६ ॥ १५६ दुश्मनी बढ़े। -