पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३२८

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अदास-अदिति गुलाम न हो। अदास (सं० पुं०) खतन्त्र पुरुष, जो आदमी अन्त्य ष्टिक्रिया किंवा श्राहादि करे, तो उसे दो तप्तवच्छ प्रायश्चित्त करके शुद्ध होना चाहिये। अदाह (हिं. स्त्री) अदा, हावभाव। अदित-आदित्य देखी। अदाहक (सं• त्रि०) जो न जलाये, जिसमें जलानेकी अदिति (सं० स्त्री०) दो अवखण्डने-क्तिच्, न दीयते शक्ति न हो। खण्ड्यते बृहत्त्वात् ; विरीधार्थे नञ्-तत्। १ दिति अदाह्य (सं० त्रि.) न दग्धुमहम्, दह ण्यत् दैत्योंकी माता, अदिति,-जो दैत्योंकी माता नहीं। अहे ; नञ्-तत्। जो मृत व्यक्ति अन्त्येष्टिक्रियाके रामायण, महाभारत और पुराणादिमें लिखा है, कि अयोग्य हो, जिसे कोई न जलाये, न फंका जाने अदिति दक्षको कन्या थीं; महर्षि कश्यपके साथ वाला। शास्त्रकारोंने नीचे लिखे कई एक व्यक्तियों इनका विवाह हुआ। निरुतमें अदितिको देवमाता को मृत देहको दाह करनेसे निषेध किया और स्त्रियों में "प्रथमागामिनी" बताया है। निरुक्त ४।३२ और ११।२२ देखो। ऋग्वेदमें देवताओंके जन्म-विवरण- सींग, दांत या नखवाले पशु हारा यदि कोई पर अदितिके विषयका इस प्रकार वर्णन किया मारा (जैसे गेंडा, सिंह, व्याघ्र और भल्लक) गया है,- और सर्पविष, अग्नि, स्त्रीलोक और जल- "देवानां नु वयं जाना प्र वीचाम विपन्धया। इनके साथ क्रौड़ा करते हुए किसी को मृत्यु उक्थेषु शस्यमानेषु यः पश्यादत्तरे युगे ॥ १ ब्रह्मणस्पतिरेता सं कार इवाधमत् । हो जाये, तो उसके मृत देहको दाह न करना देवानां पूव्ये युगेऽसत: सदजायत ॥ २ चाहिये। यदि कोई मारनेके लिये सर्पको खिझाने, देवानां युगे प्रथमें ऽसत: सदजायत । या बिजली गिरनेसे मरे, तो शास्त्रानुसार उसको तदाशा अन्वजायंत तदुत्तानपदस्परि ॥ ३ अन्त्य ष्टिक्रिया करना मना है। चोरी और व्यभिचार भूर्जज्ञ उत्तानपदी भूव पाशा प्रजायन्त । करनेके कारण जिसको मृत्यु हुई हो, उसको भी अदितैर्दक्षो पजायत दवाइदिति परि॥४ अन्त्येष्टिक्रिया नहीं हो सकती। चण्डालादिके साथ अदितिय जनिष्ट दक्ष या दुहिता तव । कलहकर मरनेसे उत्कष्ट वर्णवाले किसी व्यक्तिको तां देवा पन्वजायंत भट्रा अमृतबन्धवः ॥५ यह वा श्रदः सलिले सुसंरब्धा अतिष्ठत । जलाना शास्त्रसम्मत नहीं। विषयुक्त औषध खिलाने, भवा वो नृत्यतामिव तीव्रो रेगुरपायत ॥६ आग लगाने और विष देकर मार डालनेवाले यह वा यतयो यथा भुवनान्यपिन्वत । पाखण्डी व्यक्तिका मृतदेह अदाह्य है। जो नराधम भवा समुद्र भा गृहलमा सूर्यमजभर्तन ॥ ७ क्रोधवश विष खाये, आगमें जले, अस्त्राघात लगाये, अष्टो पुवासी अदितेय जातातन्वस्परि। फांसी चढ़े, निर्भर, पर्वत या वृक्षसे गिरे, उसको देवा उप प्रत्सप्तभिः परा मार्ता'डमास्यत् ॥८ अन्त्येष्टिक्रिया नहीं होती। जूता बनाने आदि सप्तभिः पुत्र रदितिरूप पैत्पूय॑ युगम् । कुशिल्प द्वारा जो जीविका चलाये, जो वध्यभूमिका प्रजायै मृत्यवे त्वत्पूनर्मातांडमाभरत् ॥” (ऋग्वेद १०७२।१-२) अधिकारी हो (जैसे जल्लाद प्रभृति), जिसके मुख में 'हम संकीर्तनकर देवताओंका जन्म-वृत्तान्त कहते भगाङ्ग-जैसा चिह्न रहे, जो नपुंसक किंवा क्लोवप्राय हैं। हमारे इन उक्थगायकोंमें कोई भी क्यों न हो, हो, जो ब्राह्मणको दण्ड देनेके लिये राजा हारा उत्तर युगमें उन्हें देख सकेगा। ब्रह्मणस्पतिने नियुक्त किया जाये और जो महापातको और पतित कर्मकारके सदृश इस समस्त जगत्को फूंककर हो, उसके मरनेसे शास्त्र अन्त्येष्टिक्रियाको व्यवस्था निर्माण किया। देवताओंके पूर्व युगमें असत्से नहीं देता; ऐसे व्यक्तिका आत्मीयस्खजन आंखसे (जो न था।) सत् (जिसका अस्तित्व है) उत्पन्न आंसू भी न गिराये। यदि कोई भूलसे ऐसे व्यक्तिको हुआ था। तत्पश्चात् उत्तानपदसे समस्त दिशाओंने ८१