पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३२९

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३२२ अदिति . "द्यौष्पितः पृथिवि मातरघुगग्ने मातर्वसवो मुड़ता नः ।। विश्व आदित्या अदिते सजोषा असाभ्यं शर्म बहुलं वियंत ॥" (६५११५) 'हे द्युलोकपितः ! हे उपकारिणी पृथिवो ! हे अग्नि और वसुगण ! हमारे प्रति कृपा कीजिये। हे आदित्यगण ! हे अदिति ! एकत्र होकर हमें बहुल आश्रय दीजिये। इसके सिवा ३२५४१८-२०, ५।४६ाइ, सा५८, १०३६।२-३, १०।६३।१०, १०॥८॥ ११ देखो। यजुर्वेद और अथर्ववेदके भी स्थान-स्थानमें अदिति पृथिवीसे भिन्न बताई गई हैं,- "पृथिवी च मेऽदितिश्च मे दितिश मे द्यौथ मे * * यजेन कल्पन्ताम् ।" (वाजसनेयसंहिता १५२२.) "भूमिर्माता अदितिर्नी जनिव' भातान्तरिक्षमचिशस्तया नः ।" (अथर्व हा१२००२) जन्मग्रहण किया। उत्तानपदसे पृथिवी और पृथिवीसे आशा अर्थात् दिक् उत्पन्न हुई। अदितिसे दक्ष और दक्षसे अदिति उत्पन्न हुई। इसलिये हे दक्ष ! जन्मग्रहण करनेवालो अदिति आपको कन्या हैं। उनसे भद्र और अमृत-बन्धु देवता उत्पन्न हुए। जब इस सम्पर्ण जलके ऊपर आपने देवताओंको आन्दोलित किया था, तब नर्तकियोंकी तरह आपके निकटसे तीव्र धूलि उड़ी और जब देवता यतिओंकी तरह भुवन परिपूर्ण कर रहे थे, तब आपने समुद्रके भीतरसे गुप्त सूर्यको निकाला। अदितिके जो आठ सन्तान • उत्पन्न हुए थे, उनमें वह सात पुत्र लेकर देवताओंके समीप गई, किन्तु मार्तण्डको समुद्रमें डाल दिया। पूर्व युगमें अदिति सात ही पुत्र लेकर गई थीं, प्रजाको सृष्टि और मृत्युके लिये उन्होंने फिर मार्तण्डको प्रसव किया। ऋग्वेदके अनेक स्थलों में लिखा है, कि अदिति पापनिवारिणा रूपसे पूजी जाती थीं। (ऋक्संहिता १।१६।२२, २।२७१४, १०।१२।८।) यह पुत्रकन्या और गवादिको हितकारिणी हैं। (ऋक् ११४३२) अनेक स्थलों में देवीके नामसे सम्बो- धित हुई हैं। (कक् ॥५५॥३७, ५॥५१॥११, ६।५०।१, ७॥३८॥४, १४०।२, ८।२५।१०, ८२७५, ८।५६।१०।) यह कहीं अनर्वा अर्थात् अप्रतिकूला देवी ( २१४०।६, ७४०४, १०।९२।१४ ), कहीं क्षितिधारिणी-ज्योतिष्मती (१.१३६॥३), कहीं राजपुत्रा (२।२७७), कहीं सुपुत्रा (३।४।११), कहीं उग्रपुत्रा (८१५६:११), कहीं शूरपुत्रा अर्थात् वीरों को माता (अथर्वसहिता ३८२, ११।१।१२); कहीं पञ्चजना-विश्वजन्या (ऋक् ७।१०।४) ; कहीं उरुव्यचाः अर्थात् बहुविस्तीर्णा . (५॥४६॥६), और कहीं पस्त्या अर्थात् सर्वगन्तव्या --(४॥५५॥३) बताई गई हैं। अनेकस्थलोंमें इन्हें पृथिवी-अखण्डनीया भूमि अर्थसे लिखा गया है। (ऋक् १।२४।१, १।४३।२. १०६५।१, १०।१३२६ ; अथर्व १३।१।३८।) ऋग्वेदके अनेक मन्त्र पढ़- 'नेसे यह भी विदित होता है, कि अदिति पृथिवीसे भिन्न थी, ४।१२।४, ५।८।६, ७/८७७, ७९७, चतुर्थ ऋक्में लिखा है,-"अदितिसे दक्ष और दक्षसे अदितिने जन्मग्रहण किया।" यह घटना सर्वथा असम्भव जान पड़ती है। अतएव यास्कने निरुक्त में लिखा है,- "आदित्यो दक्ष इत्याहुरादित्यमध्ये च स्तुतः । अदितिर्दाक्षायणी अदिते- दक्षोऽजायत दक्षाददितिः परि इति च तत् कथमुपपद्येत। समानजन्मानौ स्वातामिति । अपि वा देवधर्मेण इतरतरजन्मानी स्वातामितरतरप्रकृती।" (११ । २३ ।) 'दक्ष आदित्य अर्थात् अदितिके पुत्र बताये गये हैं, आदित्योंके मध्यमें उनकी स्तुति भी की जाती है। फिर इस ऋक्के अनुसार, कि 'अदितिसे दक्ष उत्पन्न हुए और दक्षसे अदितिने जन्मग्रहण किया', अदिति दाक्षायणी अर्थात् दक्षको कन्या हैं। यह कैसे सम्भव हो सकता है, कि उनका समान जन्म हो। किंवा देवधर्मानुसार वह दोनो परस्पर उत्पन्न हुए होंगे और परस्परको प्रकृति प्राप्त की होगी। ऋग्वेदमें अदिति और दिति शब्दका एक ही जगह प्रयोग देखा जाता है- "हिरण्यरूपमुषसो व्युष्टावयःस्थूणमुदिता सूर्यस्य । आ रोहयो वरुण मिव गर्तमतयक्षार्थ अदिति दितिं च ॥" (५४६२।८।) सायणाचार्यने इसकी व्याख्यामें लिखा है,- अदितिका अर्थ, अखण्डनीय रूप समस्त भूमि और दितिका खण्डरूप प्रजादि है। 'अदितिमखण्डनीयां भूमिम् । दितिं खण्डितां प्रजादिकाम् । १।८।१०। ऋक्के भाष्यमें उन्होंने