पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३३

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१२) अकसौर :-अकार अकसौर (अ० स्त्रो०) १ रसायन, कीमिया । वह रस वा अकाथ (हि० क्रि० वि०) अकारथ । व्यर्थ । वृथा। भस्म, जो धातुको सोना वा चाँदी बना दे। २ जो अकादर (हि० वि०) जो कायर न हो शूर। साहसी। औषधि प्रत्येक रोगको नष्ट करे। अकापट्य ( हि० पु०) निश्छलता, ईमानदारी। अकस्मात् (सं० क्रि० वि०) न कस्मात्, अलुक् । १ हठात्, अकापर्वत श्राकापर्चत देखो। अकारण । २ अचानक । ३ अनायास । ४ बैठे बिठाए । अकाम (सं० त्रि०, हि० वि०) न काम-णिङ-अच्, न ५ औचक । ६ अतर्कित । कामयते। इच्छाशून्य। कामनारहित । निस्पृह । अकह (हि. वि०) १ अकथ, न कहने योग्य । २ बुरौ, अकामतस् (अव्य ) न काम-तसिल । अनिच्छा-हेतु । मुँहपर न लाने योग्य । ३ अनुचित। पञ्चम्यास्तसिल । पा ५।३७ पञ्चमी समर्थनके अर्थ में अकहुवा (हि. वि. ) जो कहा न जा सके, अकथ्य । शब्दके उत्तर तसिल् प्रत्यय होता है। अका-आका देखो। अकामनिर्जरा सं० स्त्री० ) जैन सिद्धान्तके अनु- अकाखेल–अफरीदी देखो। सार तपस्यासे जो निर्जरा अर्थात् कर्मका नाश अकांड (सं० अकाण्ड) अकाण्ड देखो। होता है, उसके दो भेदों से एक भेदका नाम। यह अकाउंट-( Account) हिसाब। हिसाब-किताब । निर्जरा सब प्राणियोंको होती है, क्योंकि उन्हें बहुतसे अकाउंटेंट-(Accountant) हिसाब लिखनेवाला। क्लेशोंको विवश होकर सहना पड़ता है। अकाज (हि. पु०) १ बुरा काम, दुष्कर्म । २ कार्यको अकामा (सं० स्त्री० ) जिसमें कामका प्रादुर्भाव न हानि, नुकसान। ४ बिगाड़। ५ विघ्न। हुआ हो। यौवनावस्थासे पूर्व । कामचेष्टा-रहित स्त्री। अकाजना (हि क्रि०) १ अकाज करना, हानि करना। अकामी (सं० वि० ) कामना-रहित । निस्पृह । २ हानि होना, खो जाना। जितेन्द्रिय । अकाजी (हि. वि०) अकाज करनेवाला। हर्ज करने- अकाय (स• पु०) नास्ति कायः शरीरम् यस्य । बहुव्री। १ राहु। (त्रि०) २ देहशून्य ।। निवासचितिशरीरो- अकाटमूर्ख, ग्राम्य भाषामें, जिसको बुद्धिमें काट पसमाधानेष्वादेश्च कः । पा ३।३।४१। निवास, चिति अर्थात् धार या तीक्ष्णता नहीं रहती, उसको कहते (अग्निका स्थान) शरीर एवं उपसमाधान (समूह) है। निर्बोध । मालूम होनेपर चि धातुके उत्तर घञ् प्रत्यय और अकाट्य (हि. वि०) न काटने योग्य । जो न काटा जा च-के स्थानमें ककारका आदेश होता है। * । काय, सके। अकाट्य प्रमाण-अर्थात् जिस प्रमाणके विरुद्ध चिञ्-घञ्। चोयतेऽस्मिन्नस्थ्यादिकमिति । (सि. को०) कोई तर्क न हो। जिस प्रमाणका काटना दुष्कर हो। राहुका दिखण्डित शरीर । इन दोनों खण्डोंमें अकाण्ड (सं त्रि०) न काण्ड अवयव नञ् तत् । अकाल। एक अंश जो मस्तक है, वही राहु है; इसलिये अनवसर। नास्ति काण्डः शरो यस्य। बहुव्री० । शर राहुके शरीर नहीं है। दूसरा खण्ड, कण्ठसे नीचेका शून्य। नास्ति काण्डः स्कन्धो यस्य । जिसके कांधा न हो, सब अवयव केतु है ; केतुके मस्तक नहीं है। इससे स्कन्ध-शून्य । बिना डालो वा शाखाका। (क्रि० वि०) केतुका नाम अकच पड़ा है। २ अकस्मात् । ३ सहसा । अकार (सं० पु०)।। वर्णात् कारः (कात्यायन) एक-एक अकाण्डजात (सं० वि०) होतही मर जानेवाला। वर्णका उल्लेख करनेके लिये उसके उत्तर कार प्रत्ययका जन्मते ही मर जानेवाला। प्रयोग करना पड़ता है। जैसे ; ककार,वकार इत्यादि। अकाण्ड ताण्डव (सं० पु०) व्यर्थको उछल-कूद। व्यर्थका किन्तु र वर्णका उल्लेख करते समय (इफ्) प्रत्यय बकवाद। लगाना पड़ता है। * । रांदिफः । यथा रेफ। नकारः अकाण्डपात (हि. वि०) होतही मर जानेवाला। (व-भावेघ) नास्ति क्रिया यस्य। बहुव्री०। कर्महीन। वाला। बाधक।