पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३३०

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अदिति ३२३ and और भी लिखा है, अदिति अखण्डनीया पृथिवी किंवा देवमाताको कहते हैं। 'अदितिरदौना अखण्ड नौया वा -- पृथिवी देवमाता वा ।' यास्कने लिखा. कि अदिति शब्दसे अदीना देवमाताका बोध होता है। । 'अदितिरदौना देव- माता।' (निरुक्त ४।२२।) किन्तु उक्त मन्त्र वाजसनेय-संहितामें भी उल्लिखित हुआ है। (१०।२६ ।) इसको टोकामें महो- 'धरने दूसरा हो अर्थ लगाया है :- 'अदितिमदीनं विहितानुष्ठातारं दिति दीनं नास्तिकवृत्त च पस्यतं अर्थ पापी भयं पुण्यवानिति ।' पुराणमें अदिति सुरगणको और दिति असुर- गणको जो माता बताई गई हैं, महीधरके मतानुसार उक्त मन्त्रसे ही उसका सूत्रपात है। क्योंकि पुराणमें सुरगण यज्ञानुष्ठाता और धार्मिक तथा असुरगण "यज्ञविघ्नकारी और नास्तिक कहे गए हैं। सुर, अमुर और दिति देखो। वाजसनेयसंहिता और अथर्वसंहितामें दिति और अदितिको एकत्र देवता बताकर भी वर्णन किया गया है। (वाजसनेय १८१२२, अथर्व १५१६।७, १५।१८।४।) ऋग्वेदके अनेक स्थलोंमें अदितिको आदित्य- गणको माता कहा है। (८२५।३, ८४७६, १०॥३६॥३, १०।१३२।६ ; अथर्व ५१९) किन्तु किसी स्थानमें यह हादशादित्यको माता नहीं लिखों। अथर्वसंहिताके एक स्थलमें केवल अष्टयोनि और अष्टपुत्रा नामसे उल्लिखित हैं। (अधर्व यासा२१ । ) अष्टपुत्र देखो। फिर ऋग्वेदके किसी-किसी स्थलमें यह वसुकी दुहिता आदित्यगणको भगिनी और रुद्रगणको माताके नामके अभिहित हैं,- "माता रुद्रायां दुहिता वसूनां खसाऽदित्यानां अमृतस्य नाभि । प्रनु वीचं चिकितुषे जनाथ मा गामनासामदितिं वधिष्ट ॥" ऋक् पार०1१५॥ लिखा, कि सामवेद और अथर्ववेदमें अदितिके भ्राता और पुत्र दोनोका प्रस्ताव लिखा है :- "त्वष्टो नो दैव्य वचः पर्जन्यो ब्रह्मणस्पतिः । पुर्वर्धाभिरदितिर्नु पातु नो दुष्ट'रंवामणं वचः ॥" साम १२९-अथर्व ६।४।१५ May Tvastri, Parjança Brahmapaspati (preserve ) our divine utterance. May Aditi with (her) sons and brothers preserve our invincible ani protecting utterance.' [Muir, O. S. Texts, Vol. V. p 38 ] ... किन्तु उपरोक्त मन्त्रमें जो पुत्र और भ्राता शब्द लिखे गये हैं, उनका अदितिके पुत्र और भ्राता न होकर उक्त मन्त्रस्तवकारौकेही पुत्र और भाता होना अर्थसंगत है। इस सन्देहको निराकरण करनेके लिये हम एक दूसरे युरोपीय विद्दान्का,अनुवाद नीचे उद्धृत करते हैं, "Let the Divine Artist preserve to us the divine gift of speech, and Brahmanaspati give us rain and Aditi save us, and our sons and grandsons, from the malicious violence and reproach of our enemies' Stevenson's Translation of Sama-veda, p. 56. ऋग्वेदके प्रथमांशमें अदिति देवगणको जन्मभूमि लिखी गई हैं। (ऋक् १।२४।१।) ऋग्वेद अदितिको निम्नलिखित कई आदित्योंकी माता बताता है,- मित्र, वरुण, अर्यमा, भग, दक्ष, सविता, इन्द्र इत्यादि। पुराणमतसे अदिति दक्षको कन्या (महाभारत १।६६०, हरिवंश ३ १०, विष्णुपु० १।१५।१३०) और कश्यपकी पत्नी थीं। इनके यह कई एक पुत्र रहे,-विवखान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, शुक, अंश और उपक्रम । (ौभागवत ६।६।२६, हरिव. ३ अ०, विष्णुपु० १।१५।१३१-२)। समुद्रमन्थनसे कर्णाभरणके उत्पन्न होनेपर इन्द्रने उन्हें अदितिको प्रदान किया था। (मत्स्यपु०, हरिव० १६०अ०)। वामनावतारमें स्वयं विष्णु इनके गर्भसे उत्पन्न हुए थे। (योभागवत, विष्णुपु०, वामनपु० ४६ अ०)। हरिवंशमें लिखा है,-कश्यपने वरुणको काम- धनुको अपहरण किया था; इससे ब्रह्माने कश्यपको अभिशाप दिया, कि उन्होंने जिस अंशसे गोधनको अपहरण किया था, उसी अंशसे वह पृथिवीपर. जन्म- ग्रहण कर गोपत्वको लाभ करते, और उनको दोनो भार्या अदिति और सुरभि उनको अनुगामिनी होतों। इसौसे अदितिने ब्रह्माके शापवश पृथिवीपर वसुदेव- पत्नी देवकोके रूपमें जन्मग्रहण किया और उनके गर्भसे कृष्णका जन्म हुआ। (हरिवंश ५५ अ० ।) मुहर् साहबने