पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३३३

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अदिमग ठीक नहीं बताया जा सकता, कि यह सब आदमी आदमी थे। वह वहां चोरी और लूट-मारकर अपना किस देशसे आये और कितने दिनसे इन पहाड़ोंमें काम चलाते थे, अन्तको राजाके भयसे भारतवर्षमें घर बनाकर बसे हैं। थियङ्गथा एक जातिका आकर उन्होंने आश्रय लिया। कोई-कोई कहते नाम है। आजकलके चाकमा इसी जातिके अन्तर्गत हैं, यह भारतवर्षके आदिम निवासी हैं, दूसरे देशसे हैं। कोई-कोई अनुमान करते हैं, कि थियङ्गथाओं यहां नहीं आये। किन्तु इस बातके दो-एक आधुनिक और चाकमाओंका आदिवास आराकानमें था। प्रमाण मिलते हैं, कि दस्यु ब्रह्मदेशसे आकर भारत- थियङ्गथामें थियङ्-शब्दका अर्थ नदी है, थ या वर्षमें आश्रय लेते थे। कर्णवालिसके समय ब्रह्म- था अथवा चा शब्दसे पुत्रका बोध होता है। इससे राजने चट्टग्रामवाले सरदारके पास एक पत्र भेजा, जो नदीके किनारे घर बनाकर रहे, वही नदीपुत्र जिसमें चोरोंकी बात लिखी थी। सन् १७८७ ई. आजकलको थियङ्गथा जाति हैं। इनकी बोलो पुरानी में आराकानके राजाने चट्टग्रामके सरदारको जो पत्र आराकानी और आचार-व्यवहार प्रायः बौद्धोंकासा लिखा, उसमें भी चोरोंकी बात थी। इन दोनो है। थियङ्ग्था देखो। किन्तु अदिमग या तुङ्गथा कौन पत्रोंके पढ़नेसे उस समयको कितनी ही बातें समझ हैं ? तुङ्ग या तुङ् शब्दका अर्थ पर्वत है। इसीसे | पड़ती हैं, इसीसे यहां उनका मर्म लिख दिया गया अनुमान होता है, कि पहले जो जाति केवल पर्वतमें है। ब्रह्मराज-तुर्बुमाको आज्ञासे आराकानके कर्म- रहते रही, उसे अब लोग तुङ्गथा कहते हैं। किन्तु चारोने यह पत्र चट्टग्राम भेजा था,- अदि शब्दका अर्थ क्या है ? विशेष अनुसन्धान करने 'हम चक्रवर्ती महाराज हैं। हमारे शासनमें पर भी इस बातका कुछ ठीक-ठाक न लगा। सौ (१००) ग्राम विद्यमान हैं। लोग हमें राजच्छत्र- कर्नल डालन साहबको पुस्तकमें भी इस धारी कहते हैं। हम सूर्यकुलोद्भव हैं, सोनेका नामका कहीं पता नहीं चलता। कप्तान 'लिअन' चन्द्रातप सर्वदा हमारे शिरपर शोभा देता है। साहबने तुङ्गथा नामका उल्लेख किया है, किन्तु असंख्य-असंख्य राजा हमारी पूजा किया करते हैं। अदिमगका नाम नहीं लिया। हमारे राज्यमें सोना, चांदी और कई सौ रत्न उत्पन्न पड़ता, कि यह नाम क्रमसे अप्रचलित होते होते हैं। हमारे पास वज्र-जैसे अस्त्र-शस्त्र विद्य- जाता है। पहाड़ी स्वयं अपनी बात कुछ भी नहीं मान हैं, जिन्हें देखते हो शत्रु शरण लेते हैं। जानते। वह यह सब पेंचकी बातें नहीं समझते, कि हमारे पास जो समस्त सैन्य-सामन्त हैं, उनसे कोई कौन किस जाति और किस सम्प्रदायका आदमी है। भी बात कहना नहीं पड़ती। इस राजसंसारमें परिचयके लिये वह अपने वासस्थानका नाम बता हाथी घोड़ोंकी कोई संख्या नहीं। हमारी सभामें सकते हैं। इससे स्पष्ट हो मालूम पड़ता है, कि दश शास्त्रज्ञ पण्डित और एक-सौ-चार पुरोहित थियङ्गथा, चाकमा, तुङ्गथा, लुशाई, कुको प्रभृति नाम विद्यमान हैं, जिनके परामर्शसे हम राज्यशासन करते उनके रखे हुए नहीं। बङ्गाली, ब्रह्मदेशवासी, चौना हैं। विद्युत्का वेग चाहे टल जाये, किन्तु हमारी प्रभृति लोगोंने ही असभ्य पहाड़ियोंके यह नाम रखे आज्ञा नहीं टलतो। हमारी प्रजा धार्मिक और होंगे। इसमें सन्देह नहीं, कि 'अदिमग' शब्द आदि न्यायपरायण है। वह नहीं जानती, कि दुष्कर्म मग किंवा अद्रिमग शब्दका अपभ्रंश है। किन्तु किसे कहते हैं। हम सूर्य के समान हैं, अन्धकारमें तुङ्गथा (अर्थात् पर्वतपुत्र ) शब्दको अपेक्षा वास्तव में भी हमारे ज्ञानका आलोक पहुंचा करता है। अद्रिमग शुद्ध मालम होता है। लोगोंको दुरभिसन्धि हम सहजमें हो समझ सकते हैं। तुङ्गथाओंका पूर्व इतिहास कुछ ठीक नहीं जान 'दया और न्यायपरायणता हो राजाका धर्म है। 'पड़ता। किसीके मतसे इनके पूर्व पुरुष ब्रह्मदेशके इस राज्यमें चोर एवं असत् व्यक्तियोंको उचित शास्ति इसीसे मालूम