पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अदिमग- ३२७ दी जाती है। इस समय हमारा नाम लेनेसे दुष्ट प्रजा प्रतिदिन वहां जाकर देवार्चना कर आती थी। लोगोंका प्राण घबड़ाने लगता है। देवालयमें रात्रि-दिन असंख्य दास-दासी रहतीं, 'हम दो हज़ार नदी और असंख्य नालोंके मध्यमें इसीसे अतिथि आनेपर उनको परिचर्या में कोई त्रुटि सागरके सदृश विराजमान हैं। चालौस पर्वतोंके न पड़ती थी। नृपति सर्वदा ही पांच धर्मग्रन्थ पढ़ते मध्यमें हम सुमेरुके समान शोभा पाते हैं। इनके थे। शास्त्रसे जो काम करना निषिद्ध है, नृपति कभी जैसे एक-सौ-एक राजाओंपर हमारा आधिपत्य उस काममें हाथ न डालते थे। हंस, सूअर, कबूतर, विस्तृत होते चला जाता है। इसके सिवा प्रत्यह बकरे और मुर्गेका मांस अभक्ष्य था। पुरोहित उसे हजार राजा हमारी सभामें यातायात किया करते स्पर्श भी न करते थे। दुःशोलता, चौर्य, परदार-ग्रहण इस राज्यको बात क्या कहेंगे ? जगत्में ऐसी और प्रवञ्चना राज्यसे एकबारगी ही उठ गई थी। जगह कहीं भी मिलने को नहीं। अमरावती जैसी 'हमारा चरित्र और हमारी धर्मनीति ठीक उन्हीं हमारी राजसभा है ; अमूल्य मणि-माणिक्य-विभूषित राजाकोसो है। किन्तु आराकान राज्य जब हमारे हो रहे हैं,-तीनो लोकमें ऐसा आदर किसीका हाथमें पड़ा न था, तब वहांके लोग सांप-जैसे रहे,- नहीं। देवताओंकी तरह हमारे सब कार्य पवित्र सर्वदा ही केवल विवाद-विसंवाद करते थे। मगध, हैं। आराकानके गांव-गांव, नगर-नगर हमने ढिंढोरा मैनवङ्ग, द्वारावती प्रभृति देशोंके लोग मनुष्य खाते, पिटवा दिया है, जिससे यह चिठ्ठो चट्टग्राम निर्विघ्न और सभी अतिशय दुष्ट-निष्ठुर थे, कोई किसीका पहुंच जाये। यह देश पहले मङ्गल राजाके अधि विश्वास न रखता था। उस समय बुद्धदत्त या श्रीवत् कारमें था। उन्हों राजाने चट्टग्राममें प्रजापत्तनसे ठाकुर आराकान पहुचे। क्या मनुष्य और क्या वनके आबादी कराई थी। वहां मङ्गलराज और पशु-सबको उन्होंने धर्मज्ञान सिखाया था, इसीसे अमरपुरके राजा तुमा द्वारा प्रतिष्ठित २४०० पांच हजार वर्ष राज्यमें कोई विशृङ्खला न देख पड़ी। देवालय और २४ सरोवर विद्यमान हैं। मङ्गलोंके 'हमारी शासननीति ठीक वैसी ही है। फिर आनसे पहले चट्टग्राम दूसरे राजाके अधिकारमें था। यहां किसी स्थानको मट्टीसे एक तरहका अच्छा- लोग उन्हें छत्रधर कहते थे। उन्होंने देवालय प्रति खुशबूदार तेल निकलता है। हमारी क्षमता भी ष्ठित और अनेक पुरोहित नियुक्त किये थे। प्रजामें उसीतरह दूसरे राजाओंसे श्रेष्ठ है। जाम्फबू नामक जिसका जैसा धर्म था, पुरोहित उससे उसीके अनुरूप हमारे पुरोहितने दूसरे धर्मयाजकोंसे परामर्श-कर, याज़नादि क्रिया कराते थे। किन्तु तुमा चाकमाके ११४८ संवत्के पौष मासमें हमसे पूछा, आप क्या राजा होनेसे पहले रत्नपुर, दुर्गावती, पाराकान, श्रीवत् ठाकुरको तरह व्यवहार करते ? वास्तव में दुर्गापति, रामपति, चयदोण, महादाइन, मङ्गल हम श्रीवत् ठाकुरके अनुसार ही कार्य करते आ रहे प्रभृति स्थानोंमें कोई सुशृङ्खला न थी। श्रौतुमाके राजा हैं। विशेषतः हमने राज्यमें अनेक देवालयोंको होने पश्चात् उनके शासनगुणसे प्रजा सुखी हो निर्माण कराया है, हम श्रोतुमा चाकमेको नीतिपर गई। उस समयके धार्मिक लोग उनपर बड़ा अनुग्रह दृष्टि रख दया-दाक्षिण्यके साथ प्रजापालन करते हैं। रखते, विशेषतः बुद्धने उनको सभामें अवस्थान किया 'आराकान-राज्य चट्टग्रामके पास है। बाणिज्यके था। राजाने धौपदेश सुनने के लिये उनसे एक निमित्त अंगरेज हमारे साथ यदि सन्धि करना चाहें, सद्गुरु मांगा था, इसौसे तन्धारि राजाके धर्मोपदेष्टा तो सकल विषयों में ही एकता और हृद्यता रखना ' बने। उस समय आकाशसे सोना, चांदी और रत्न आवश्यक है। इसीसे हम आपको बताते, कि बरसने लगा। राजाने उन सब अमूल्य रत्नोंको चट्टग्रामक बणिक् यहां आकर मोती; हाथी-दांत और । मट्टीमें गाड़कर तन्वारिको उनका अध्यक्ष बना दिया। मोम खरीद और यहांके लोग भी चट्टग्राम चीज़