पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३३७

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अदिमग दासीसे विवाह कर सकते हैं। इसके बाद कल जो सोनेके पिंजड़ेमें रखे गये ; पिंजड़ा राजप्रासादके दासो थी, वह आज गृहलक्ष्मी-प्रभुको अर्द्धाङ्गिनी दरवाजेपर लटकने लगा। कितने ही लोग देख- बन सुखसे संसारधर्मको निर्वाह करती है। कोई सुनके चले जाते थे। सवेरेसे सध्यातक लोगोंको भीड़ महाजन निर्धन हो जानेसे अपनी दासदासीको कम न होती थी। जो आता, वही शिरपर हाथ दूसरे व्यक्तिके हाथ बेच सकता है। मनुष्यको रहन रखके सोचने लगता, ब्रह्माको सृष्टिमें यह कौन रखनेको चाल थियङ्गथा जातिमें हो अधिक है। पदार्थ है राजाने नगर-नगरमें घोषणा करा दी। थियङ्ग्था देखो। तुङ्गथाओंमें इसतरह मनुष्यको रहन घोषणामें कहा गया था, जो इस कीड़ेका नाम रखनेको चाल कदाचित् सुन पड़तो है। कितने ही और इसकी उत्पत्ति ठीक-ठीक बता सकेगा, उसे यह बात भी कहते, कि युद्धके बाद पराजित जातिके अधिक और क्या-राजकन्या विवाहमें प्रदान जो स्त्री-पुरुष यह पकड़ लाते, उन्हींको घरका दास की जायेगी। दैवज्ञ और पुरोहित पोथी-पत्रा दासी बनाते हैं, किन्तु ऋणके लिये मनुष्यको रहन खोलके बैठे; कितनी हो गणना लगाई, अङ्कपात नहीं रखते। लिलइन साहबने भी अपनी पुस्तकमें किया, किन्तु कौड़े का नाम ठीक न निकला। इसौ मतको समर्थन किया है। किन्तु और भी एक देश-देशान्तरसे भो कितने ही लोग आये, किन्तु बात है, जिसके झूठ या सच होनेका कोई ठिकाना कौड़ेका नाम बता न सके। अन्तको एक राक्षस नहीं। पहले असभ्य पहाड़ी कदाचित् गांवमें जाकर मनुष्यका रूप बना सभामें जा पहुंचा। उसने लड़के चुरा लाते थे। लड़कोंका मांस हलवानर्स भी गणनाकर कहा, कि उस कोडेका नाम जूआं था, मुलायम होता है। जो उसे खाते हैं, उन सकल नर जो अब्दुल खां नामक एक बङ्गाली सौदागरके बालोंसे पिशाच-राक्षसोंके मुख में उसका स्वाद भी आ सकता राजाके शिरमें चढ़ गया। फिर वह सौदागर पकड़ है। पहाड़ी कदाचित् लड़के चुरा उनमें किसीका बुलाया गया। नौकरोंने उसके बाल खोलकर देखे ; मांस खाते और किसौको दास भी बना लेते थे। ब्रह्म सब बात सत्य थी, कुछ भो उसमें झूठ नहीं,- देशक राजाने जो पत्र लिखा, उसमें इस बातका अबदुल खांके शिरमें जूए भरे थे। अपराध प्रमाणित कितना हो आभास मिला है, कि पहले आराकान हो गया और उसे उचित शास्ति देने की व्यवस्था हुई। प्रभृति स्थानोंके असभ्य लोग मनुष्य खाते थे। दूसरा इसीलिये उस समय गड्डे में बड़े-बड़े जहरीले सांप- भी एक प्रमाण है। आराकान प्रभृतिके पहाड़ी | बिच्छू छोड़े गये और उसमें अब्दुल खांको डालके लोग स्नान करते समय शिर नहीं भिगोते। शिर प्राणवध किया गया। भिगोनेसे निविड़ लम्ब-लम्बे बाल सुखाने में बड़ा हो राजाको मालूम न था, कि उनको सभामें राक्षस कष्ट मिलता है, इसीसे केवल शरीर डुबो जलसे आया, उन्होंने आदरकर उसे कन्याको प्रदान किया। बाहर निकल आते हैं। दूसरा भी एक भय है, राक्षसने देखा,-'अष्टप्रहर मनुष्यके समीप रहना कदाचित् भिगोये हुए शिरमें जूएं बहुत पड़ जाते हैं। पड़ता ; जिस ओर बैठो, जिस ओर खड़े हो, उसी एक कहानी है, कि पहले थियङ्गथा, तुङ्गथा प्रभृति ओर मनुष्यका गन्ध लहराता है। लोभ कितने दिन पहाड़ियोंके शिरमें जूएं न थे। इसके बाद हठात् संवरण किया जायेगा? न जाने किस दिन किसे एक दिन आराकानके राजाका शिर खूब खुजलाने खा जाऊं, इसलिये ऐसे स्थानसे चल देना हो अच्छा लगा। राणीने बालोंको उठा और ढूंढ-ढूंढ देखा, है।' यही विचार उसने श्वसुरसे बिदा मांगी। कि शिरमें एक प्रकारके काले-काले कोड़े पड़ गये राजाने अनेक दासदासी दे कन्या और दामादको थे। आंखसे क्या देखना था ? उन कोड़ोंका नाम बिदा किया। राहमें जाकर मनुष्यमांस खानेको भी तो किसीने कभी नहीं सुना। कौड़े निकालकर राक्षस बहुत व्याकुल हुआ। साथमें राजकन्या रही,