पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३३९

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३३२ अदिव्य-अदौननगर प्याला शराब इनके पेटमें न पड़नेसे इन्हें अन्न-जल किनारे-किनार क्यारो कटा हुआ हरा-भरा फूलोंका नहों रुचता। सिवा इसके पूजापार्वण, विवाह प्रभृति जङ्गल खड़ा था। दोपहरको जलमें उसकी छाया जितने प्रकारके काम-काज हैं, उन सबमें केवल पड़नेसे शोभापर शोभाका विस्तार देख पड़ता था। शराबको ही धूम-धाम होती है। यह तीन तरहको उद्यानके स्थान-स्थानमें अपूर्व अट्टालिका बनौ थीं। शराब पीते हैं। एक तरहको शराब थुङ् कहलाती बागको बग़लमें सिपाहियोंके कवाइद करनेका जो चावल सड़ाकर बनाई जातो, किन्तु पौने में सम्भवतः मैदान था। उसौ बागवाले फाटकके बीच में शालका बहुत मोठी होती है। 'सोपा' दूसरी तरहको सड़ी तम्बू खड़ा करते थे। रातको महाराज उसी तम्ब में शराब है, जो बिहीदानेसे बनती है। तीसरी शराब लेटकर नींद लेते थे। • 'अर्क है, यह चावलसे टपकाई जाती है। सन् १८३८ ई० में लार्ड आकलेण्डने मेकनेटन, अदिव्य (सं० त्रि.) १ दिव्य या चमत्कृत नहीं, असबरन प्रभृति कितने ही सम्धान्त अंगरेजोंको सामान्य। २ इन्द्रियों द्वारा ज्ञातव्य, लौकिक ; महाराज रणजित् सिंहके पास भेजा। शाह शुजाको दुनयाबी। काबुलके सिंहासनपर बैठानेके लिये हो वह पञ्जाबके अदिष्ट, अदृष्ट देखो। अधिपतिसे एक दृढ़ सन्धि करने आये थे। उन सब अदिष्टो (हिं० वि०) १ अदूरदर्शी, कोताबीन। अंगरेज-दूतोंने इसी अदीननगरमें आकर महाराजसे २ मूर्ख, बेवक फ। ३ दुष्ट, बदमाश । ४ हतभाग्य, मुलाकात की। उसी समय यहां एक दूसरी प्रसिद्ध बदकिस्मत। घटना उपस्थित हो गई। हरिदास साधु नामक अदीक्षित (सं० वि०) १ सोमयनको जिसे दीक्षा जनक समाधिस्थ योगीको पहले रणजित् सिंहने न मिली हो। २ जिसे सोमयन्नमें स्थान न प्राप्त हुआ मट्टी में गड़वाकर योगबलको परीक्षा ली थी। हो। ३ जिसे गुरुमन्त्र न दिया गया हो। उस समय डाकर मेकग्रेगर प्रभृति अनेक अंगरेज़ यज्ञोपवीत न हुआ हो। वहां उपस्थित थे। रणजित् सिंहने उन योगीको अदीठ (हिं. वि०) अदृष्ट, गुप्त, जो देखा न गया आदर करके लाहोरमें टिकाया था। हो, पोशीदा। अनेक दिन हुए, मेकनेटन साहबने भी पुष्करमें अदीन (स• त्रि०) न दीनम्, दो-त; नञ्-तत् । एकबार हरिदासके योगबलको परीक्षा ली थी। १ अकातर, निडर। २ अदुःखित, खुश। ३ अनम्र, लोग कहते फिरते, कि सन्यासी खास बन्द करके न झुकनेवाला। ४ उदार, सखी। ५ धनी, अमौर। मौके भीतर रह सकते थे। अपनी आंखोंसे न देखने (पु.) ६ पुरूरवाके वंशोद्भव एक राजा। यह सह पर नहीं कहा जा सकता, कि बात कैसी है। यही देवके पुत्र थे। अदीनको सन्तानका नाम जयसेन सोचकर उन्होंने योगीको एक सन्दूकके भीतर बन्द था। विष्णुपुराणके नवें अध्यायवाले चौथे अंशमें किया और अपने घरके खूटेपर तेरह दिनतक लटका लिखा है,- रखा। तेरह दिन बाद उन्होंने सन्दूक खोलकर "हर्ष वईनसुतः सहदेवः, तस्माददौनः, तस्य जयसेनः ।" देखा, सन्यासीके निश्वास नहीं, हृत्स्पन्दन नहीं अदीननगर-नगरविशेष, शहर। पञ्जाबमें वह जड़वत् और मृतदेह-जैसे पड़े हैं। कुछ देर बाद अदीननगर नामक एक मनोहर पुरी थी। ग्रीष्मकाल उसो शरीरमें जीवनसञ्चार हो आया। अंगरेजीमें आनेसे महाराज रणजित् सिंह इस नगरमें आकर लिखा गया है, रहते थे। उस समय यहांके उद्यानकी ऐसी शोभा "But another officer Mcnaughten...... Assistant to the Agent to the Governor General in Rajputana) put his थी, कि इन्द्रदेव उसे देख नन्दनकाननका सुख भूल abstenence to the test at Pushkar by suspending him for जाते थे। बागके बीचसे नहर निकल गई थी। thirteen days, shut up in a wooden chaste." (See Lieutenant Baileau's Tour to Rajwar ) ४ जिसका . एक