पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

होन। ३२ अकारक अकालकुष्माण्ड अकारक-मिलाव (हि. पु०) एक प्रकारको रासायनिक न होगी। यदि वृहस्पतिका एक राशिमें स्थिति-काल मिलावट, जिसमें मिली हुई वस्तुओं के पृथक् गुण ठोक समाप्त न हुआ हो और वे पूर्व राशिमें गमन करें, ठीक बने रहते हैं और वे इच्छानुसार अलग-अलग तो इस वक्रातिचारकै कारण २८ दिन अशुद्ध माने भी की जा सकती हैं। जायेंगे। बृहस्पति यदि पूर्व राशिमें एक वर्ष भोग अकारज (हि. पु०) कार्यकी हानि। हानि । न करके अन्य राशिमें चले जायं और फिर पूर्व अकारण (सं० त्रि०) निष्पयोजन । नास्ति कारणम् राशिमें न आवें, तो इस महातिचारको लुप्त-सम्वत्सर हेतुरुद्देश्यम् वा यस्य। बहुव्री० । कारणशून्य। कहते हैं। लुप्त संवत्सरका एक वर्ष अशुद्ध रहता है। अकारणगुणोत्पन्नगुण (सं० पु०) अकारणात् हेत्व वृहस्पतिका एक राशिम भोगकाल पूर्ण न होनेपर भावाद्गुणात् उत्पन्नो जातो गुणो धर्मः । न्यायमतसे, भी यदि वह एक राशिसे दूसरी राशिमें चले जायं -विभुनिष्ठ विशेष गुण-समूह । जैसे बुद्धि, सुख, दुःख, और फिर उसी पूर्व राशिमें लौट आवें, तो इस इच्छा, द्वेष, यत्न, धर्म, अधर्म, भावना, शब्द । अतिचारके कारण ४५ दिन अशुद्ध माने जायेगे। अकारथ (हि० वि० सं० अकार्यार्थ, प्रा० अकारियस्थ ) वृहस्पति यदि राहुग्रस्त हो जायँ, तो एक वर्ष अकाल निष्पयोजन। वथा। लाभरहित । माना जायगा। अकारन (हि० वि०) अकारण देखो। शुक्रके महास्तके पूर्व वृद्धत्वके १५ दिन और अकारिन् (सं० त्रि०) न-क-णिन् । कर्तृभिन्न। कार्य महास्तके बादके ७२ दिन अकालके दिवस हैं। शुक्रके उदयमें १० दिन और अस्तमें १२ दिन अकालके अकार्पण्य (सं० त्रि०). नास्ति कार्पण्यम् यस्य । बहुव्रौ० । माने गये हैं। भानुलवित मासके, क्षय मासके और कृपणता-शून्य। मलमासके पूरे ३० दिन और पूरा महीना ही अशुद्ध अकार्य (स० क्लो०) (हि० पु०) न-क-ण्यत् । नञ् तत् माना गया है । भूकम्प आदि अद्भुत घटनामें एक सप्ताह -11 ऋहलोय त् । पा ३।१।१२४ अकारान्त एवं हलन्त अशुद्ध है। पौषादि चतुर्मासके बीच जो एक दिन धातुके उत्तर ण्यत् प्रत्यय होता है। अप्रशस्त कार्य । चरणाशित वर्षणका है, वह दिन अशुद्ध है। दो दुष्कर्म । नास्ति कार्यम् यस्य बहुव्री० । कार्यहीन । दिनोंतक एक प्रकारसे ही दृष्टि होनेपर तीन दिन (त्रि.) अकाज । हर्ज, बुरा काम । और तीन दिनोंतक एक तरहसे वृष्टि होनेपर अकाल (सं० पु० ) (अ-नहीं वा बुरा, काल-समय) अन्तिम दिवससे एक सप्ताहतकके दिवस अशुद्ध माने बुरा समय। अप्राप्तः कालः, शाकपार्थिवादि तत् । गये हैं। साथमें पहिलेके दो दिन भी जोड़ लिये असमय। अनवसर। कुसमय। दुर्भिक्ष। मँहगी। जाते हैं। इस तरह ८ दिन अशुद्ध हुए। हरिशयनकै ज्योतिषके मतसे उपनयन विवाहादि शुभकम्मके चार महीने अशुद्ध होते हैं। चन्द्र-सूर्य-ग्रहणमें कम अयोग्य समय। अकाल बहुत तरहके हैं। उनका विशेषसे कहीं एक दिन, कहीं तीन दिन और स्थूल- स्थ ल विवरण यहां लिखा जाता है। वृहस्पति भावसे एक सप्ताहक दिवस अशुद्ध माने गये है। अस्त होनेसे पहले वृद्धत्वमें १५ दिन कालाशुद्धि अकाल-कुसुम (सं० पु०) बिना समय अर्थात् वे- और उसके बाद ३२ दिन। बृहस्पति उदय होनेके ऋतुका फूला हुआ फूल। ऐसा फूल दुर्भिक्ष अथवा बाद बालत्वके १५ दिन। वृहस्पति और सूर्यक अन्य किसी उपद्रवकी सूचना देनेवाला समझा योगके १० दिन। सिंहराशिमें वृहस्पति रहनेपर जाता है। पूरा एक वर्ष। इसमें एक विशेषत्व यह है कि, अकालकुष्माण्ड (सं०पु०) गान्धारीने कोहरे के आकार- यदि माघ महीनेकौ पूर्णिमाको मघा नक्षत्रका योग का एक मांसपिण्ड अकालमें प्रसव किया था। उसीसे हो, तो इस प्रकारको काल-अशुद्धि होगी, नहीं तो दुर्योधन आदिका जन्म हुआ। उसीको सन्तान कुरु-