पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३४०

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अदीननगर–अदुःखनवमी ३३३ अन्यान्य साहबोंने भी पहलेसे हरिदासको दोनवेग खान् था।) आराइन जातोय चवू नामक कितनी ही बात सुन रखी थी। किन्तु काम सरकपुरनिवासी एक व्यक्तिक पुत्र । यह मुगल असम्भव होनेके कारण उन्हें विश्वास न हुआ। वंशमें वर्द्धित हुए थे। पहले सैनिक श्रेणी और पौछ जब वह सब पञ्जाबमें आये, तब इससे बढ़कर राजस्व-संग्रह करने में इन्होंने काम किया, धीरे-धीरे आनन्दकी दूसरी क्या बात हो सकती थी, कि एक यह लुधियानेके निकटस्थ कनक नामक गांवके माल- राहसे दो काम निकल जाते। यही सोचकै सन्यासी गुज़ार और सुलतानपुरके हाकिम बन बैठे। यह को बुलानेके लिये उन्होंने महाराजसे अनुरोध किया। अपुत्रक थे। होशियारपुरके निकटस्थ खान्पुरमें उस समय हरिदास अमृतसरमें थे। महाराजका इनको मृत्यु हुई थी, जहां इनको समाधिके ऊपर एक संवाद पाकर उन्होंने उसी समय अदीननगरको यात्रा सुन्दर समाधिमन्दिर बनाया गया। तारीखे-इब्राहीम-खान् नामक ग्रन्थमें लिखा है, कि सन् ११७२ हिजरीमें (सन् १७५७-८ ई०) अदौन- वैगने मानवलीलाको सम्बरण किया। (फरहत नाजरी) अदीन-मसजिद,-वङ्गन्देशान्तर्गत मालदह जिलेके पाण्डुया नगरस्थ एक मसजिदका ध्वंशावशेष । यह पठानोंके कारुकर्मका एक चमत्कार दृश्य है। अदौननगर। अदौनसत्व (स० वि०) अकातर औदार्य-युक्त, खुली की। ६ठौं जूनको सन्यासी आये, साहबोंका आह्वाद सखावतवाला। उमड पड़ा। उन्होंने योगोके पास पहुंचके देखा, अदीनात्मा (स. त्रि.) उच्चाशय, आलोदमाग, बढ़े कि वह एक प्रस्तर-निर्मित अट्टालिकामें पलंगके हुए दिलका। ऊपर बैठे, कमरमें इधर-उधर गलीचे बिछे और अदीपित (स' त्रि) न जलाया गया, जिसमें मखमलके मोढ़े पड़े थे। पलंगपर रेशमको शय्या रोशनी न की गई हो। लगी थी। हरिदासके सामने दो प्याले और एक अदोब–'अबू हसन आलो विन-नस्र'का नामान्तर। ग्रन्थ रखा था। वाम भागमें एक आबखोरा, दो यह मिश्र देशके एक विख्यात दार्शनिक रहे, एक भोली और एक गेरुआ वस्त्र पड़ा था। मेज़पर एक खिलाफ़तके हाकिम भी थे। दूसरी पुस्तक और रणजित् सिंहकी दी हुई कश्मीरी अदीयमान (स० वि०) दिया न गया, जिसे दे शाल थी। पलंगको एक ओर और योगीके पौधे न सकें। खड़े हो जनैक शिष्य तालवृन्त द्वारा धीरे-धीरे हवा कर अदीर्घ सं० वि०) लम्बा नहीं, छोटा। रहा था। पहले समाधिको अवस्थासे निकलनेपर अदीर्घसूत्र ( स० वि०) देर न करनेवाला, चुस्त । महाराजने सन्यासोको जो अलङ्कार देकर विभूषित अदीह (हिं०)-प्रदीर्घ देखो। किया था, उस दिन वह वही कनकहार और रत्न- अदुंद (हिं० वि०) १ अहन्द, जिसमें कोई झगड़ा- कुण्डल पहनके जा पहुंचे। साहबोंने उनके पास झञ्झट न हो। २ शान्त, ठण्डा । ३ अद्वितीय, जाकर कितनी ही बातचीत की और उनके योगबलको लासानी, वेजोड़। परीक्षा लेना चाहौ। किन्तु सन्यासी इस बार चातुरौ अदुःख सं० त्रि०) :. दुःख या बाधासे रहित, कर गये, उन्होंने साहबोंको अपना योगबल न प्रसन्न, खुश। दिखाया। हरिदास साधु देखो। अदुःखनवमी (स० स्त्री..) भाद्र-कृष्णा-नवमी। यह अदीनबैग खान्-(किसी-किसीके मतसे इनका नाम तिथि अत्यन्त शुभ समझी जाती और इसी तिथि- ८४