पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३४१

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३३४ अदुग्ध-अदृष्ट खभाववाला। को स्त्रियां वर्तमान वर्षका अमङ्गल दूर करनेके लिये अदूषितधी ( स० पु०) विशुद्धहृदयका पुरुष, वह देवीको पूजा करती हैं। आदमी जिसको अक्ल बिगड़ी न हो। अदुग्ध (सं० त्रि०) जो दूही न गई हो, जिसे अदृढ़ (सं० त्रि०) १ दृढ़ नहीं, ढीला, कमज़ोर । किसीने पिया न हो। २ विचाररहित, अस्थिर, डावांडोल। (क्लो०) ३ टण- अदुच्छुन (वै० त्रि०) बाधारहित, भला, अच्छा। विशेष, एक तरहको घास । अदुर्ग ( स० त्रि०) १ गमनसाध्य, जहां पहुंचना अपित (वै० त्रि.) जिसके साथ कठोर व्यवहार मुश्किल न हो। २ दुर्गरहित, जहां किलेबन्दी न हो। न किया जाये। २ विचारवान्, समझदार। अदुर्गविषय ( स० पु०) दुर्गरहित देश, वह मुल्क अदृप्त (वे० त्रि.) अभिमानरहित, निरभिमान, जहां किला न हो। जिसे घमण्ड न हो। अदुर्मख (वै० त्रि०) प्रसन्न, खुश । अदृप्तक्रतु (सं० त्रि.) १ अभिमानका विचार न अदुमङ्गल (वै० त्रि०) शुभ, कल्याणकारक, मुबारक । रखनेवाला। २ गम्भौर, सञ्जीदा। अदुवृत्त (सं० त्रि.) १ सच्चरित्र, जिसका चाल अदृप्यत् (वै० त्रि०) अभिमानशून्य, जिसे किसी चलन अच्छा हो। २ प्रसन्नहृदय, खुशमिज़ाज, अच्छे बातका घमण्ड न हो। अदृश् (सं० वि०) नास्ति दृक् दृष्टिर्यस्य, दृश-क्किए । अदुष्ट (सं० त्रि.) न दुष्टम्, नञ्-तत्। १ दुरदृष्ट १ अन्ध, नाबौना, जिसे देख न पड़े। न पश्यतीति, साधनतारूप दोषरहित, दुष्ट नहीं, भला। २ निर्दोष, दृश-क्विप् कर्तरि ; नञ्-तत्। २ अदर्शक, न देखने- बेगुनाह। वाला। अदू (वै० त्रि०) १ शिथिल, सुस्त। २ हृदयशून्य, अदृश्य (सं• त्रि०) न दृश्यम्, नञ्-तत् । दृश्यभिन्न, बहिम्मयत। ३ पूजा न करनेवाला। दृष्टिशक्तिके अगोचर, जो आंखों देखा न जाये। अदून (सं० त्रि०) १ आघातशून्य,बेज़खम, बैचोट। अदृश्यकरण (सं० लो०) २ अदृश्य बनानेको क्रिया, २ अकातर, निडर। गायब करनेका काम। २ जादूका खेल। अदूर (स० लो०) न दूरम्, नञ्-तत् । १दूर अदृश्यत् (स• त्रि.) १ अगोचर, अदेख, जो दिखाई नहीं, सामीप्य । (त्रि.) २ अदूरवर्ती, निकट, न दे। (स्त्री०) २ वशिष्ठ मुनिको एक बहू । समीप, पास। अदृष्ट (सं० क्लो०) न-दृष्टम्, दृश-क्त ; नञ्-तत् । पुण्या- अटूरतस्, अदूरात्, अदूरे (स० अव्य० ) १ दूरसे नहीं, पुण्यरूप भाग्य, जन्मान्तरीय संस्कार, किस्मत। कोई पाससे। २ शोधतासे, जल्द-जल्द । यह कह नहीं सकता, कि कपालमें क्या लिखा है; अदूरदर्शी (स' नि.) दूरतक न विचारनेवाला, इसी कारण भाग्यको अदृष्ट मानते हैं। ऋग्वेद और विचाररहित, अनग्रशोची, कोताबीन, नासमझ, जो अथर्ववेदमें यह शब्द उन कौटोंके लिये भी व्यवहृत किसी बातका अन्त न देखे। हुआ है, जो देख नहीं पड़ते। संसारमें हम जो सुख- अदूरभव (स० वि०) जो बहुत दूर अवस्थित न दुःख भोग करते, उसे लोग पूर्वजन्मार्जित पापपुण्यका हो, पासका रहनेवाला। फलाफल बताते हैं। जिसका सुकृतिबल होता, वह अदूषण ( स० त्रि०) जिसमें दूषण न हो, निर्दोष, सुखमें रहता ; जिसने दुष्कर्म किया, उसे इस शुद्ध, स्वच्छ, भला, अच्छा, बैऐब । संसारमें कष्ट उठना पड़ता है। अदृष्ट माननेसे अदूषित (स० त्रि०) न दूषितम्, नञ्-तत् । कितना ही विरोध संघटित होता है। न माननेसे दोषोणौ। पा ६४/६०। जो दूषित रहीं, दोषरहित, अनेक विषयोंको अभिसन्धि समझमें नहीं आती। निर्दोष, बेएब। इसौसे कोई-कोई अदृष्ट मानते, कोई-कोई अदृष्ट नहीं