पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३४४

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शाखा अड्वातमाम् अद्भुतब्राह्मण ३३७ बोतलका अदाश। घण्टा, जो प्रत्येक घण्टे के हैं। पूर्वकालसे यह सकल लक्षण दुनिमित्त कहलाते बीचमें बजाया जाये। १० ताल विशेष। यह चले आये हैं। सूर्यमण्डलमें कलङ्घका चिह्न वर्तमान कव्वालीसे आधी होती और चार मात्रा रखती है। है। आजकलके युरोपीय पण्डित भो उसे कुलक्षण ११ नौका विशेष, एक तरहको छोटी नाव । कहते हैं। उनके मतसे सूर्यमें कलङ्कको स्याही अद्धातमाम् (वै. अव्य०.) अवश्य मेव, बिलाशक । पड़नेपर अनावृष्टि और दुर्भिक्ष होता है। दक्षिण- अद्वाति (वै० पु०) धिमान् पुरुष । दिक्में धूमकेतुके उदय, वक्र मङ्गलग्रहमें कृत्तिका- अद्धापुरुष (वै यु० ) सच्चा मनुष्य, रास्त शखुश ।... नक्षत्रके घोर दर्शन, उल्कापात, शीतग्रोमादिके अद्धाबोधय- (व. पु०) शुक्ल यजुर्वेदको विपरीत भाव अर्थात् शीतकालमें ग्रीष्मबोध और विशेषके अनुयायी। वह लोग, जो शुक्ल यजुर्वेदक ग्रीष्मकालमें शीतबोध, भूमिष्ठ होनेवाली सन्तानके एक शाखाको मानते हैं। होनाङ्ग किंवा विकृताङ्ग अथवा अधिकाङ्ग, हेमन्त- अद्वामिश्रितवचन (सं० पु०). जैनियोंके विश्वासा. कालमें कोकिलके कूकने, सन्ध्याकालमें कुक्कटके बोल नुसार समयके सम्बन्धमें असत्य कथन, समय बताने में उठने, सूयं निकलनेपर शृगालोंके इ-ह करने, कौवे मठका बोलना। चील प्रभृति पक्षियों के उड़कर घरपर बैठने, राध, अद्धी (हिं. स्त्री०) १ दमड़ीका अढांश, जो कौड़ियोंसे काक, शृगाल प्रभृति जन्तुओंके श्मशानसे हड्डी और गिना जाता है। २ निहायत उम्दा तनजेब, जिसका मांस लाकर गांवके भीतर डालने और ज्येष्ठी, छिय- थान साधारण तनजे बके थानसे आधा होता है कली प्रभृति जन्तुओंके अङ्गवाले स्थान विशेषमें आ अद्ध्यालोहकर्ण (वै० त्रि.) लाल कानोंवाला, गिरनेसे शुभाशुभ संघटित होता है। जिसके गोश सुख हों। (पु.) ३ नवम मन्वन्तरके इन्द्रका नाम । (त्रि.) अद्भुत (सं० क्लो० ) अद्-भू-डुतच्, डिवात् टिलोपः । ४ अलौकिक, अनूठा, अजीब । अदिभुको डुतच । उण ५।१ । १ आश्चर्य, आकस्मिक । अद्भुतकर्मन् (सं० त्रि०). १ आश्चर्यजनक कर्म करने- २ आलङ्कारिकोंका सम्मत नव-रसोंके. अन्तर्गत एक वाला, जो अनोखे काम करे। २विलक्षण कला- रस । यह रसात्मक कविता पढ़नेसे पाठक विस्मयमें कौशल दिखानेवाला, जो निराली कारीगरी निकाले। पड़ जाते हैं। आलङ्कारिक कहते हैं, कि इस अद्भुतक्रतु (वै० त्रि०) अपूर्व बुद्धि रखनेवाला, रसका स्थायिभाव विस्मय, देवता, गन्धर्व, पीतवर्ण, जिसको अल्ल, निराली रहे। आलम्बन लोकातीत , वस्तु, . उद्दीपन . गुणको अद्भुतगन्ध (सं० त्रि०) अलौकिक गन्धका, जिसमें महिमा है। स्तम्भ, खेद, रोमाञ्च, गद्दस्वर, विभ्रम, अजीब खुशबू हो। नेत्रविकाश प्रभृति इसके अनुभाव हैं। वितर्क, आवेग, अद्भुततम (सं० लो०) असाधारण आश्चर्य, गैर- सम्भ्रान्ति इसके व्यभिचारिभाव हैं। किसौ नायककें मामूली तअज्जु ब । सुरङ्ग द्वारा नायिकाके प्रासादमें एकाएक प्रवेश करने- अद्भुतता (स. स्त्री०) निरालापन, विचित्रता। यर सखियां विस्मयपूर्वक एक-दूसरेसे पूछती हैं, अद्भुतत्व (सं० लो०) विलक्षणता, निरालापन। आकर पहुंचा कौन है, किसे देखती वीर। अद्भुतदर्शन (सं० वि०) अनोखे रूपवाला, जो अजीब देव असुर या नाग नर कही समुझि धरि धौर ।' देखा जाये। ...... शास्त्रकारोंके मतसे संसारमें शुभाशुभ होनेसे अद्भुतधर्म (सं० पु०) आश्चर्य कर्मका नियम, अजीब पहले अनेक निमित्त आ उपस्थित होत, जिनमें कामोंको तरीक। कितने ही सुलक्षण और कितने ही कुलक्षण रहते अद्भुतब्राह्मण : (सं०.पु.).: छन्दोग-ब्राह्मणोंका एक हैं। ऋषि इन निमित्तोंको भी अद्भुत हों बताते विभाग। इस संकलनको प्रौढब्राह्मण या पञ्चविंश- - ८५