पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३४७

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३४. अदि-अद्रिकर्णी अद्रि (सं० पु०) अ-क्विन्। अदिशदिशभिभ्यः निन् । और साफ दस्त लाता है। यह दृष्टिको निर्बलता, उण ४॥६५॥ १ पर्वत, पहाड़। २ प्रस्तर, पत्थर। गलेके जखम, दस्तकी बीमारी, गिलटी, चमड़ेके ३ वृक्ष, दरख त । ४ सूर्य, आफताब । ५ मेघ, बादल । रोग और जलोदर में भी काम आता है। पत्तीका ६ परिमाणविशेष। ७ सोम पीसनेका लोढ़ा। रस हरे अदरकके रसमें मिला अधिक पसीना ८ वज। ८ सातका अङ्क । १० पृथुके एक पोत्र या निकलने और क्षयका ज्वर आनेसे खिलाया जाता है। नाती। इसका सविशेष वृत्तान्त पर्वत शब्दमें देखो। अपने फलोंवाले रङ्गके कारण अपराजिता दो अद्रिकर्णी (स स्त्री०) अद्रिः अदिनामिका गिरिबाल तरहको होती है-नीले फूलोंवाली और सफेद मूषिका तस्याः कर्णः कर्णतुल्यं पुष्पान्तःस्थ पत्रं यस्याः फूलोंवालो। फिर नोलो अपराजिताके फूल कई ( वाच० ), गौरादित्वात् ङीष् । अपराजिता, खेता तरहके देख पड़ते हैं। इन नाना प्रकारको अप- पराजिता, शोभाञ्जन, विष्णुकर्णी, मूसांकर्णी ; वह राजिताओंके वोजमें कोई प्रभेद नहीं। यदि है, तो लता जिसके फूलको भीतरौ पत्ती बालमूषिकाके यह, कि सफेद अपराजिताका वीज अधिक लाभ- कान-जैसी देख पड़ती है। दायक होता है। वृक्ष सदा फूला करते हैं। वीज यह बागका मामूली फूल है और समग्र भारतको प्रायः बाजारमें नहीं बिकता और बिकता भी, तो झाड़ियोंमें भी पाया जाता है। लोग इसका बोज अपरिपक्व अवस्थामें संग्रह किये जानेके कारण उसमें भारतसे इङ्गलण्ड ले गये थे। यह फूल दुर्गा देवीके गुणका अभाव पाया जाता है। जबतक वीज वृक्ष पूजनमें प्रधान समझा जाता है। इसकी जड़े भली भांति न पक जाये, तबतक उसे कदापि न गुले-अब्बासकी जड़-जैसी सखत दस्तावर होतो तोड़ना चाहिये। जिस वीजको ऐसी सावधानतासे और पेटको प्रांत बढ़ जाने तथा जलोदर होनेसे संग्रह करते हैं, वह प्रायः गोल या किनारोंपर कुछ दूसरी पेशंबावर और दस्तावर चीजोंके साथ दबा रहता, उसका रङ्ग हलका हरा, या भूरा सेवन करनेको बताई जाता है। जब बच्चोंको बड़े होता, और छोटा-छोटा धब्बा पड़ जाते है। जोरसे खांसी आती, तब इसे वमन करानको कुछ वीज़ोंके सिरे गोल और कुछके चपटे होते व्यवहार करते हैं। इसकी शराबका भस्म पांचसे हैं ; मानो, किसौन-उनके सिरे चाकू से उतार दिये दश ग्रेनतक खिलाने पर खासा जुलाब हो जाता हों। खानेसे वौज कटु मालूम पड़ता, अच्छा है। किन्तु इससे पेटमें ऐंठन बढ़ती और रोगोको नहीं लगता, तथा न उसमें किसी प्रकारका गन्ध कुछ ज्वर चढ़ता और बेचैनी मालूम होती है। ही रहता है जितना ही वीज मोटा और गील पित्तप्रकोपमें यह ओषधि अत्यन्त लाभदायक है। होता, उतना ही अधिक काम करता है। कच्चा इससे पेशाब और दस्त दोनों खुलके उतरने लगते वीज चपटा और धुंधले भूरे रङ्गका होता है। हैं। इसका वीज अधिकतर उपयोगी प्रमाणित पक्का वीज जुलाब लेनेमें अच्छा गुण दिखाता हुआ, और युरोपमें लिये किसी प्रकारको है। अपराजिताको ताजो जड़ या छाल भारतमें हानि न करनेवाला औषध समझा जाता है। घराऊ औषध है। बता स्त्रियां बालकोंको पुढे या वौजका चूर्ण रेचक होता है। पोटाश और अदरकके फेफड़ेकी बीमारी हो जानेसे उसे खिलाती हैं। उसके नमकमें इसे मिला जुलाब लानको सेवन कराते हैं। सेवनसे बालक वमन करते, उनका जी मिचलाता, पत्तियोंका रस फोड़े-फुन्सीपर लगाया जाता है। बोज उनके गले या फेफड़ेसे बलगम निकलता, उन्हें दस्त शीतल होता और जहरको मारता है। जड़ वमन आता और उनका रोग कितने ही अंशमें घट जाता कराने और गठिया दबाने में काम आती है। वौंज है। पुरुष जब उसे पूर्ण मात्रामें खाते, तब उनका अधिक मात्रामें सेवन करानेसे कृमिको नाश करता पेट मुलायम पड़ जाता और चिनंग, थोड़ा पेशाब