पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३४२ अद्रिसार-अद्रोधावित अद्रिसार (स० पु०) अट्रेः सार इव । १ लौह, लोहा।। पत्तेका काढ़ा वायुगोलेपर दिया और पुष्टिकर समझा २ शिलाजतु, शिलाजीत । (त्रि.) अट्रेरिव सारोऽस्य, जाता है। कुष्ठ और गण्डमालामें इसका पत्ता बहुव्री। ३ अतिकठिन, निहायत सख्त । और बकला खाते और लगाते भी हैं, फूलोंका अद्रिसारमय (स'० त्रि०) १ अट्रिसारात्मक, लोहेका। पुलटिस चर्मरोगपर बहुत लाभदायक होता है। २ अत्यन्तकठिन, निहायत सख्त । फलमें विष रहता है; किन्तु लोग उसे कुष्ठ और अद्रीन्द्र, अद्रीश (सं० पु०) अट्रीणां इन्द्रः वा ईशः गण्डमालापर व्यवहार करते और छुआ-छत दूर प्रधानः, ६-तत्। १हिमालय । २शिव । रखनेको उसका हार गले में पहनते हैं। पञ्जाबमें अद्रुह् (वै० त्रि०) १ ईर्ष्या या छलसे रहित, जो वौज गठियेपर दिया जाता है, कांगड़े में ख बानौके हसद या बुगजसे बरी हो। २ सच्चा। साथ उसे कूट इसी रोगपर ऊपरसे लगाते हैं। अद्रुह्वन् (सं० त्रि०) न-द्रुह क्वनिप्, नञ्-तत् । बम्बईमें महामारी बढ़ते समय बकाइनका वीज अद्रोहकारक, जो द्रोह न करे। डोरोमें पिरोकर दरवाज़ोंपर बोमारी दूर रखनेको अट्रेक (सं० त्रि.) निम्बविशेष. एक प्रकारको नीम, लोग लटका देते हैं। इस वृक्षमें ताड़ी भी होती है। जिसे बकाइन कहते हैं। (स्त्री०) अद्रेष्का। तिल्ली बढ जानेपर इसका गोंद औषधरूपसे काम इस वृक्षका वैज्ञानिक नाम Mealia Azedarach आता है। अमेरिकामें चुन्ने पड़ जानेसे शराबमें है। यह कोई ४० फुट ऊंचा होता और इसका भिगोया हुआ इसका फल खिलाया जाता और शिरका तना छोटा और शिखर चौड़ा रहता है। भारतमें गञ्जापन दूर करनेको गोंद व्यवहृत होता है। प्रायः इसकी खेती होती, किन्तु निम्न हिमालय किन्तु इसमें विष होने के कारण इसे अधिक मात्रामें प्रदेशमें यह जङ्गली तौरपर भी पाया जाता है। न खाये, ऐसा करनेसे कई लोग मर गये हैं। इसका सम्भवतः मुसलमानोंने इसे विदेशसे लाकर पहले फल भेड़-बकरे खूब खाते हैं। दाक्षिणात्यमें लगाया था। इसकी ऊपरी लकड़ी पौलो-सफेद और भीतरी इस वृक्षसे गोंद भी निकलता है, किन्तु किसी नर्म-लाल होती है, तख ते बड़ी ही सुविधासे चौर काम नहीं आता। इसकी पत्ती चमकीला-हरा लिये जाते हैं। बङ्गालमें नीमकी तरह इसे प्रतिमा रङ्ग चढ़ानेको अच्छी है, जिसे लोग भारतमें व्यवहार बनाने में व्यवहार करते और दूसरा सामान भी इससे नहीं करते। इसके वीजका तेल नीमकै तेल-जैसा बनाते हैं। इसकी गुठलौसे भारतमें लोग माला निकलता, किन्तु न तो उसे कोई जानता और न पिरोते हैं। भारतको तरह अमेरिकामें भी इसका उससे कोई काम ही लेता है। पत्र और फल कौड़ोंका आक्रमण रोकनेके काम आयुर्वेदमें नौमके आगे बकाइनको बात कोई आता है। नहीं पूछता। किन्तु अरब और ईरानके अधिवासी अद्रोध (व० त्रि०) द्रुह-घञ्-घत्वम्, नास्ति ट्रोधो इसे बहुत दिनसे औषधरूपमें व्यवहार कर रहे थे, यस्य। १ द्रोहरहित, जिसे डाह न हो। (पु.) जिसका गुण उन्होंने आकर भारतवासियोंको बताया। न द्रोधः, अभावार्थे नञ्-तत् । २ द्रोहका अभाव, इसके मूलको त्वक, फल, फूल और पत्ता सूखा और डाहका न होना। गर्म होता और पाचनशक्ति रखता है। फूल और अद्रोधवाक् (वै० त्रि०) ईर्थारहित बात कहनेवाला, पत्तेका पुलटिस बांधनेसे शिरःपौड़ा छूट जाती है। जिसकी बातमें डाह न हो। इसके पत्तेका रस निकालकर पीने से पेटके कौड़े मर अद्रोधावित (वै• त्रि०) अद्रोधः अवितो रक्षित जाते, पेशाब खुलकर उतरता, दस्त साफ़ आता और येन। अद्रोहरक्षक, हसद या डाहसे दूर रहने- बादीको सूजन मिटती है। अमेरिकामें इसके वाला।