पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३४४ अत–अधःकृष्णाजिनम् यह शान्तिपुरमें रहते थे। इनका जन्म वारेन्द्रब्राह्मण अद्दत प्रभुके सन्तान हैं। इस वशमें अनेक सुपण्डित कुलमें हुआ था। अत प्रभुने दारपरिग्रह किया व्यक्तियोंने जन्मग्रहण किया है। शान्तिपुरमें अहतको था, इनके औरससे आठ सन्तान हुए। यह पहलेसे प्रतिष्ठित की हुई एक कृष्णमूर्ति वर्तमान है, जिसे ही विलक्षण कृष्णभक्त थे, भागवतादि पुस्तक पढ़ने में मदनगोपाल कहते हैं। आज भी मदनगोपालके इनका मन खब लगता था। गौराङ्गके जन्म रासमें विलक्षण आनन्द हुआ करता है। होनेसे पहले यह सर्वदा हो कहा करते थे,- अद्वैतवाद (सं० पु.) ब्रह्मसे सकल जगत्के उत्पन्न नवद्वीपमें जो (अर्थात् गौराङ्गः ) जन्मग्रहण करेंगे, मैं होनेका मत, जिसमें संसार असार माना गया है। उनका अनुचर बनूंगा। पीछे गौराङ्गने जब सन्यासा अईतवादिन् (सं० त्रि.) अहतं अभेदं वदतीति, श्रमको अवलम्बन किया, तब अबैत प्रभु भो संसारको वद्-णिनि । ब्रह्मवादी, एकात्मवादी। परित्यागकर उनके अनुचर बन गये। अतिसिद्धि (सं० पु.) अह तस्य विश्वस्य ब्रह्मा- वैष्णवोंके मतसे तीन प्रभु होते हैं,-१ श्रीश्री भेदस्य सिद्धियंत्र १ अह तसिद्धि नामक वेदान्त नित्यानन्द प्रभु, २ श्रीश्री अति प्रभु और ३ श्रीश्री प्रकरण विशेष। (स्त्री०) २ अद्वैत विषयको सिद्धि। चैतन्य महाप्रभु। गौराङ्ग और अद्दत एकप्राण और अहतानन्द-भूमानन्द सरस्वतीके शिष्य। यह शङ्करा- एक आत्मा थे। संसाराश्रमको त्याग करनेपर चार्य-विरचित ब्रह्मविद्याभरण नामक ग्रन्थ के टीका- श्रीचैतन्य सर्वदा ही अबैत-प्रभुको साधुचूड़ामणि कार थे। कहकर आदर किया करते थे। अहतोपनिषत्-आत्मतत्त्व-विषयक एक उपनिषत् । गौराङ्गका जन्म १७०७ शकमें हुआ था। अद्दत इसमें जीवात्मा और परमात्माका अभेद विषय प्रभु उनको अपेक्षा वयोज्येष्ठ थे। इसलिये यदि लिखित है। इन्हें ३० वर्ष बड़ा कहें, तो यह मानना पड़ेगा, कि | अध (वै. अव्य) १ अब, सम्पति। २ सुतरां, इनका जन्म १३७७ शकमें हुआ था। वैष्णवोंका अतएव, इसलिये । ३ अलावा, सिवा । ४ कुछ-कुछ। पर्वदिन देख निश्चित होता है, कि यह माघ मासको ५ और। ६ अनन्तर, पोछ । ७ आगे, पहले। शुक्ला सप्तमीको आविर्भूत हुए थे। अधअध ( स० अव्यं०) १ और। २ कुछ-कुछ। मुसलमान राजाओंका अत्यन्त प्रादुर्भाव था, हिन्दुओं अधंतरी (हिं. स्त्री०) एकतरहको कसरत, जो का आचार-व्यवहार भी इस लाम-जैसा हो गया था। मालखम्भपर की जाती है। अवैत प्रभुके आठ सन्तानमें सात जन यथेच्छाचारी अधः, अधस् देखो। थे ; केवल अच्युत परम वैष्णव रहे, वह सिवा विष्णु अधःकर (स. 'पु०) हाथके नीचेका भाग। भक्तिके और कुछ जानते न थें। यही कारण है, कि अधःकरण (सं० क्लो०) अप्राधान्य बनानेका काम, अदै तप्रभु उनसे बहुत प्रसन्न रहते थे। न्यूनकरण । अद्वैत, गौराङ्ग प्रभृति वैष्णव जब कृष्णप्रेमसुधा अधःकाय (स० पु.) अधः अधरं कायस्य, एकदेशि- चारो ओर बरसाते घूमते थे, तब खड़दहके नित्यानन्द समासः । नाभिका अध:प्रदेश, कमरसे नीचेका प्रभु भी जाकर इनके दलमें मिल गये। तीनो प्रभुके अप्रकट होने बाद नवदीपके अधःकार (सं० पु०) न्यून करनेका काम, तिरस्कार, वैष्णवोंने इन तीनो जनोंको दारुमय तीन मूर्तियां अधरीकरण। स्थापन की। आज भी बारी-बारी उन सकल अधःकुन्तल (स. पुं०) नोचेके बाल । मूर्तियोंकी सेवा हुआ करती है। शान्तिपुरवाले अधःक्त (स० वि०). नीचे रखा गया, डाला गया। उडिगोखामौके सिवा दूसरे प्रायः सभी गोस्वामी अधःकृष्णाजिनम् ( स० अव्य०) काले चमड़ेके नीचे। उस समय शरीर।