पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३५५

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३४८ अधरकण्टक-अधरीण ओर। ८पहला, । "स्तनवोर्गयोथैव आहे चव तथाधरे। अधरा (सं० स्त्री०) दक्षिणदिक्, अधोदिक्, खोटी दन्ताघातः प्रकर्तव्यः कामिनीनां मुखावहः ॥” ( रति०) पुरुषका रक्तवर्ण अधर सुलक्षण है। इसीतरह अधराक् (स अव्य०) नौचे, निम्न प्रदेशमें । स्त्रियोंका पाटलवर्ण, पतला और मध्यरेखा-युक्त अधर अधराच् ( स० त्रि०) अधरां दक्षिण दिशमञ्चतीति, अच्छा होता है। स्थूल और कृष्णवणे अओष्ठ अशुभ अञ्चुक्किप् । दक्षिणदिग्गामी, जनबको जानिब जाने- वाला। "पाणिपादतलौ रक्तो नैवान्तरनखानि च । अधराचीन (वै० त्रि.) अधराचि भवः, अधराच्-ख । तालुकोऽधर जिह्वा च सप्तरक' प्रशखते ॥ १ अधःप्रदेशमें उत्पन्न होनेवाला, जो नीचेके पाटलावतुल: स्निग्धरेखाभूषितमध्यभूः । मुल्कमें पैदा हो। २ नौचेको ओर झुकता सौमन्तिनौनामधरो राज्ञां च व स्त्रियो भवेत् ॥ हुआ। ३ दक्षिणाभिमुख, जनूबको तर्फ जो श्यामः स्थूलोऽधरोष्ठः स्यात् वैधव्यकलहप्रदः।" (सामुद्रिक) रागिब हो। (लो०) ३ मदनग्रह, मदनालय, योनि। (त्रि.) अधराच्य (वै. त्रि०) अधरच्यां भवः यत् । जो ४ नीच, कमीना। ५ नौचेको झुका हुआ। ६ कुत् अधोदिक्में उत्पन्न हो, नौचेको तर्फ पैदा सित, हकौर। ७ विजित, शान्त । होनेवाला। पूर्वका। अधरात् (सं० अव्य०) अधर:-अस्त्यर्थं आति। अधरकण्टक (सं० पु०) दुरालभा । उत्तराधरदक्षिणादातिः । ५।।३४ । अधरतः, अधरण, अधस्तात् ; अधरकण्टिका ( स० स्त्री०) क्षुद्र शतावरी, छोटी नीचेसे, निम्नभागसे। शतावर। अधरात्तात् (वै० अव्य०) नौचे, निम्नभागमें। अधरकण्ठ (सं० पु०-क्लो०) निम्नकण्ठ, नीचेकी गर्दन । अधराधर (सं० पु.) निम्न ओष्ठ, नीचेका होंठ; अधरकाय (स• पु०) शरीरका निम्नभाग, जिस्मका लब। नीचेवाला हिस्सा। अधरामृत (सं० लो०) अधरस्य अमृतमिव । अधर- अधरज (हिं० स्त्री०) १ ओष्ठको रक्ताभा, होंठोंकी सुधा, होंठका अमृत, शौरीनी-ए-लब। भागवतमें सुखीं। २ मिस्सोको धड़ी या पानको लाली, जो लिखा है,- होंठोंपर जम जाती है। "सिञ्चाङ्गनस्त्वदधरामृतपूरकैण अधरतस्, अधरत्तात्, अधरस्तात्, अधरस्मात्, अधरात्, हासावलोककलगीतज हृच्छयाग्निम्।" १०।२६।३२ । अधरण ( स० अव्य) नौचे, निम्नप्रदेशमें । 'हे कृष्ण ! आपकी सहास्यदृष्टि और आपके अधरपान (सं० लो०) ओष्ठका चूसना, ओष्ठचुम्बन ; मधुर सङ्गीतसे हमारी जो मन्मथाग्नि जल उठी है, होंठका बोसा। उसे आप अधरामृत पिला निर्वाण कीजिये।' अधरम (हिं०) अधर्म देखो। अधरारणि (वै० स्त्री०) यज्ञ करनेको अग्नि उत्पन्न अधरमकाय, अधर्मास्तिकाथ देखो। करने के लिये जो दो लकड़ियां घिसी जाती हैं, उनमें अधरमधु (सं० क्लौ०) अधरस्य मधु इव आस्वादाति- छोटी लकड़ी। शयात् । अधररस, अधरामृत, वक्त्रासव, लबको अधरावलोप (सं० पु.) अधरखण्डन, होंठका काटना। अधरस्तात्, अधरतस् देखो। अधरीकृत (सं० त्रि०) '१ विजित, हारा हुआ। अधरस्मात् अधरतस् देखो। २ अकर्मण्य बनाया या नाकाम किया गया। अधरस्वस्तिक (सं० लो०) अधःस्वस्तिक देखो। अधरोण ( सं० त्रि.) अधरे भवः, अधर-खा शोरीनौ।