पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३५७

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३५० अधर्म कुच्छन्दरिः शुभान् गन्धान पवशाकन्तु वहिणः । वावित् कृतान्नं विविधमकतान्नन्तु शल्यकः ॥६५ बको भवति हत्वाग्नि गृहकारी झु पन्करम् । रक्तानि हत्वा वासांसि जायते जीवजीवकः ॥ ६६ हको मगभं व्यानोऽत्र फलमूमन्तु मर्कटः । स्त्रीमन्तोकको बारि बानान्युष्टः पयनजः ॥" ६७ मनुस'हिता ११ अध्याय । ब्रह्महत्याके लिये महापातको पहले शत-शत वत्सर नरकभोग करते हैं। नरक भोगके बाद जन्म- की बात इसतरह लिखी गई है,- 'ब्रह्महत्याकारी कुत्ते, सूअर, गधे, ऊंट, भैंस, बकरे, भेडे, मृग, पक्षी, चण्डाल और निषादसे ले शूद्राजात पुक्कश तकको योनिमें जन्मग्रहण करते हैं। (पापको मात्राके अनुसार क्रमसे सभी योनियोंमें जन्म हो सकता है।)। ब्राह्मण सुरापान करनेसे कृमि, कोट, पतङ्ग, विष्ठाभक्षक पक्षी और (व्याघ्रादि) हिंस्रक प्राणीको योनिमें उत्पन्न होता ब्राह्मण यदि चोर हुआ, (कुल्लूकभट्टके मतसे सोना चुराया) तो मकड़े, सांप, कुकलास, जलचर पक्षी, कुम्भीरादि और पिशाचादिको योनिमें जन्म लेता है। गुरुपत्नीसे गमन-करनेपर तृण, गुल्म, लता, कच्चा मांसखा-नेवाले पशुपक्षी, दन्तशाली सिंहादि और क्रूरकर्मशील व्याघ्रादिको योनिमें शतबार जन्म लेना पड़ता है। जो जीवहिंसा करता, वह कच्चामांस खानेवाला जन्तु होता है। अभक्ष्य द्रव्यको भोजन करनेवाला कमि योनिमें उत्पन्न होता है। चोर ( कुल्लूकभट्टके मतसे चोर जो महापातको नहीं) परस्परके मांसभक्षक बन जन्मते हैं। चण्डालादि अन्त्यज जातिकी स्त्रीसे गमन करनेपर प्रेतयोनि प्राप्त (प्रेताख्य प्राणिविशेष, कुल्लूकभट्ट )। पतित व्यक्तिका संसर्ग रहने, परस्त्रीगमन करने और ब्राह्मणका धन (सुवर्ण भिन्न ) चुरानेसे ब्रह्मराक्षस बनना पड़ता है। जो मनुष्य लोभवशतः मणि, मुक्ता, प्रबाल और रत्नको अपहरण करता, वह सुवर्णकार होता है ( कोई-कोई कहते हैं, कि वह हमकार पक्षियोनिमें जन्मग्रहण करता है)। धान चुरानेसे मनुष्य इन्दुर हो जाता है। जो कांसे- को चोरी करता, उसे हंस बनना पड़ता है। जलका चोर प्लव नामक पक्षीको योनिमें जन्म लेता है। मधु चुरानेवाला डांस होगा। दूधके तस्करको काककी योनिमें जन्म दिया जाता है। तैलादि रसको अपहरण करनेसे कुत्ता बनना पड़ता है। एतका चोर नेवला होगा। मांस चुरानेवाला ग्ध्रको योनिमें जन्म लेगा। जो चोंकी चोरी करता, उसे मछलीको योनिमें उत्पन्न होना पड़ता है। तेल चुरानेवाला पतङ्ग बनेगा। लवणको अपहरण "करनेसे चौरीवाक कोट बनना पड़ता है। दधि चुरानेवाला क्षुद्र वक पक्षी होता है। कौषय वस्त्र चुरानेसे तितलो होना पड़ेगा। क्षोमवस्त्रका तस्कर भेक बनेगा। कार्पास वस्त्रकी चोरी करनेसे मनुष्य क्रौञ्च पक्षी होता है। मवेशी चुरानेवाला गोधेको योनिमें जन्म लेता है। गुड़ चुरानेसे चिमगा- दड़ होना होगा। सुगन्धि द्रव्य चुरानेवाला छळू- दरका जन्म धारण करता है। पत्रशाकादि चुरानेसे मयूर होगा। सिद्धान्नको हरण करनेवाला खावित् और अपक्कानको हरण करनेवाला शल्धक बनता आग चुरानेसे मनुष्य वकको योनिमें जन्म गृहका उपकरण द्रव्य चुरानेवाला मृत्तिकादि द्वारा ग्टहनिर्माणकारी पक्षवान् कोट बनता है। जो रक्तवस्त्र चुराता, वह चकोर पक्षी होता है। मृग-हस्ती चुरानेसे लकड़बग्घेको योनिमें जन्म मिलता है। घोड़ा चुरानेवाला व्याघ्र होगा। फलमूलका चोर मर्कटका जन्म पाता है। स्त्रीको चोरी करनेसे भालुको योनिमें जन्म लेना पड़ता है। जलका चोर चातक पक्षी होगा। यानको हरण करनेवाला ऊंट बनता है। अन्यान्य पशु चुरानेसे अजको योनिमें जन्म मिलता है। जान पड़ता है, कि जो जन्तु जो-जो द्रव्य खाकर प्राणधारण करता, अनेकस्थलमें तद्रूप द्रव्य को हरण करनेसे मनुष्य उसो प्रकारके किसी जन्तुको योनिमें उत्पन्न होता है। ऋषियोंने पापवाले फलभोगके लिये इसी नियमसे व्यवस्था की है। अनेकस्थलमें फिर यह नियम नहीं भी है। शरीरके कर्ण, वास- लेगा। होती है।