पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३६५

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३५८ अधिकर्मकर-अधिकार अधिकर्मकर (सं० पु०) अधिकं कर्म तत् करो वंश-सम्भूत बताये गये। इन्होंने नानाविषयिणी कविता तीति, कालोम्यादौ ट। दासविशेष, सेवकविशेष, बनाई थी। शुश्रूषकविशेष ; मजदूरोंका जमादर । अधिकाना (हिं. क्रि०) १ अधिक हो जाना, अधिकर्म कृत (सं० पु.) अधिकं कर्म-अधिकर्म, ज्यादा देखाई पड़ना। २ बढ़ना, ऊपर चढ़ना। तत् कृतं येन। दासविशेष, शुश्रूकविशेष, नौकरोंका अधिकाभेदरूपक (स० पु०) अलङ्कार विशेष । चौधरी। चन्द्रालोकमें लिखा है, कि रूपक-अलङ्कारके तीन अधिकर्मिक (स० पु०) अधिकृत्य इट्ट कर्मणेऽलम्, भेद होते हैं। इनमें अधिकाभेदरूपक वह है, जो अधिकर्म-ठन् । अषडक्षासित'ग्वल'कर्माल'पुरुषाध्युत्तरपदात् खः । उपमान और उपमेयका कई प्रकार अभेद बता फिर पा ५४७ । हाटका अध्यक्ष, बाज़ारका दारोगा। उपमेयमें कुछ विशेषता दिखाता है,- अधिकल्पिन् (वै० पु० ) होशियार जुआरी, चालाक शुभग, मुशीतल, भावनी सुन्दर आनन्दकन्द । किमारबाज। रैन-दिवस नित रहत है शोभित आनन-चन्द ॥ अधिकवाक्योक्ति (सं० स्त्री०) अत्यन्त सम्भाषण, यहां चन्द्र उपमान और मुख उपमेय है। पहले बढ़ावा, अधिक प्रशंसा, हदसे ज्यादा तारौफ । तो शुभगता, शीतलता, सुन्दरता आदि गुण दोनोमें अधिकषष्टिक (सं० त्रि.) परिमाण या मूल्यमें समान बताये थे, किन्तु पोछ मुखको दिन-रात शोभित साठसे अधिक या ज्यादा। रहनेवाला कह उसका गुण चन्द्रसे बढ़ा दिया अधिकसंवत्सर (सं० पु.) सौर वर्ष पूर्ण करनेको गया। जोड़ा जानेवाला अतिरिक्त मास, महीना जो शम्सी | अधिकाम (स० पु.) १ अधिक काम, अत्यन्त साल पूरा करनेको ऊपरसे जोड़ लिया जाये। अभिलाष, ज्यादा ख्वाहिश । (त्रि०) अधिकः कामो अधिकसाप्ततिक (सं० त्रि०) परिमाण या मूल्यमें यस्य, बहुव्री। २ अत्यन्त कामयुक्त, निहायत ख्वा सत्तरसे अधिक या ज्यादा । हिशमन्द। अधिकांग, अधिकाङ्ग देखो। अधिकार, अधीकार (स० पु.) अधि-क-घञ्। अधिकांश (सं० पु०) १ अतिरिक्त भाग, ज्यादा १स्वामित्व, आधिपत्य । २ नियोग अर्थात् कर्तव्य कर्म, हिस्सा। (हिं. क्रि०-वि०) २ विशेषतः, ज्यादा कार्यभार। ३ आरम्भ, अनुष्ठान; शुरू, आगाज़। तर। ३ प्रायः, अकसर। ४ स्वीकार, मञ्जूर। ५ खत्व, हक। ६ प्रकरण, अधिकाई (हिं. स्त्री०) १ आधिक्य, बढ़तौ; सिलसिला। ७ पद, दरजा। ८ गवर्नमेण्ट, सरकार,। बड़ाई, महिमा। ८ जायदाद, सम्पत्ति । १० सम्बन्ध, रिश्ता । ११ प्रमाण, अधिकाङ्ग (सं० लो०) अधिकोऽङ्गात्। १ योद्धाओं- हवाला। १२ चेष्टा, कोशिश। १३ विषय, मज- के हृदयपर दृढ़ रूपसे कवच बांधने के लिये पट्टिकादि, मून। १४ वाक्य, फिकरा। १५ राजाका छत्रादि कमरबन्द। (त्रि०) अधिकमङ्ग यस्य, बहुव्री। धारण। १६ व्याकरणप्रसिद्ध अनुवृत्तिका सम्बन्ध । २ अधिक अङ्गयुक्त, बोससे अतिरिक्त अङ्गुल्यादि अङ्ग १७ न्यायमतसे-प्रवर्तमान पुरुषनिष्ठताको ज्ञायमान युक्त ; ज्यादा अजावाला, जिसके मामूलौसे ज्यादा सत्प्रकृतिका हेतु, धर्मविशिष्ट द्वारा कृतकर्मका फल- जनकत्व। १८ काव्यज्ञोंके मतसे-व्यवस्थापन । मेघ- अधिकाधिक (सं. वि. ) एक दूसरसे बढ़कर, दूतमें लिखा है,-"कश्चित्कान्ताविरहगुरुणा खाधिकारात् प्रमत्तः ।" ज्यादासे ज्यादा। अर्थात् अपने नियोगसे प्रमत्त होकर इत्यादि। अधिकानन–दक्षिण-देशीय कवि अय्यरके भ्राता। यहां अधिकार-शब्द नियोग-अर्थमें आया है। पहले यह राजकर्ट क प्रतिपालित होते थे, पीछे राज 'खाधिकारात् खनियोगात्' इति मल्लिनाथः । आजा हों।