पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३७२

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अधियारी -अधिरोहण क्विप् । लिये हुए। अधियारी (हिं. स्त्री०) १ सम्पत्तिके अधांशका अधिरथ्यम् (सं० अव्य० ) प्रधान मार्गपर, बड़ी अधिकार, मिलकियतका निस्फ. हिस्सा, जायदादका राहमें। आधा इखतिबार। २ दो गांवोंको बराबर हिस्सेदारी। अधिराज् (स० पु०) अधिराजत इति, अधिराज अधियोग (सं० पु०) अधिको योगः, प्रादि-स। १ सम्राट, नृप, बादशाह। (त्रि.) ज्योतिषके मतसे यात्रिक शुभ योग। इस योग, यात्रा २ अधिक शोभान्वित, जयादा रौनकदार। करनेसे मङ्गल होता है और कोई विघ्न नहीं पड़ता। अधिराज (सं० पु.) अधिको राजा, टच स.। अधियोध (स० पु०) अधि-युध्-घञ्, आधिक्येन अधोखर, सम्राट, बादशाह । युध्यति । १ महायोडा, बड़ा वीर, अजीम शुजा। अधिराज्य (सं० लो०) अधिकं राज्यम्, प्रादि-स. । (अव्य०)२ महायोडाके विषयमें, बड़े वीरको लेकर, साम्राज्य, शाही। अजीम शुजाको बाबत। अधिराज्यभाक् (सं० पु०) अधिराट, साम्राज्यके अधिरज्जु (वै० त्रि०) १ रज्जुधारण किये हुए, रसौ वैभवका अधिकारी; शाहीका मालिक,- २ बांधते हुए, लपेटते हुए। ३हथ "अत्यन्यान् पृथिवीपालान् पृथिव्यामधिराज्यभाक् ।” ( महाभारत ) कड़ी-बेड़ी डालते या पहनाते हुए। अधिराष्ट्र (स० लो०) अधिकृतं राष्ट्रमन, प्रादि- अधिरथ (सं० पु.) अध्यारूढ़ः रथम्, अत्या० स० । बहुव्री०। १ राज्य, बादशाहो । (अव्य०)२ राज्यको महारथ, रथपर विराजमान वौर, योद्दा जो रथपर अधिकार कर, राज्य के विषयमें । चढ़ा हो। २ सारथी, रथ चलानेवाला, गाडीबान । अधिरुका (सं० त्रि०) अधिगतं रुक्म आभरण येन, ३ विशाल रथ, बढ़िया गाड़ी। प्रादि-बहुव्री। १ आभरण-प्राप्त, जिसे जे.वर या ४ अङ्गवंशोद्भव सत्यकर्माके पुत्र। इनकी स्त्रीका गहना मिला हो। (पु०) अधिकं रुक्म सुवर्णाभरणम्, नाम राधा था। अधिरथ धृतराष्ट्र के सखा और कर्णके प्रादि-स। २ अधिक सुवर्णाभरण, ज्यादा सोनेका पालक-पिता रहे। किसी समय यह अपनी पत्नी जेवर या गहना।- राधाको साथ लेकर भागीरथी तौर जा उपस्थित "अध वा बोषणा मही प्रतीचि वशमशक्य । राधाने गङ्गाजलमें एक बहती हुई अधिरुक्मा विनीयते।" (ऋक् ५४६।३३।) मञ्जूषाको ( सन्दूक ) आते देख स्वामीके निकट अधिरूढ (स० वि०) अधि-रुह-क्त कर्तरि । १ चढ़ा लानको प्रार्थना की। जलसे जैसे ही मञ्जूषा निकाल या ऊपर पहुंचा हुआ। २ अत्यन्त वृद्धियुक्त, निहायत अधिरथने खोली, वैसे ही उसमें एक सद्यप्रसूत सुत चढ़ा-बढ़ा। देख पड़ा, जिसे उठा भार्याको दे दिया। उस समय अधिरूढ़समाधियोग (स० त्रि.) ससाधिके योगमें राधाके पुत्रादि न हुए थे। बालक पाकर वह महा अधिरूढ, गहरे ध्यानमें लगा। नन्दसे घर गई और यथाविधि उसका भरण-पोषण अधिरोपण (सं• क्लो०) ऊपरका चढ़ाना या उठाना। करने लगीं। वही बालक पृथा द्वारा परित्यक्त कर्ण अधिरोपित (सं० वि०) अधि-रुह-णिच-क्त पुक् निकला। (महाभारत, विष्णुपुराण ४१६ १०)। अधिरथ सूतका कर्मणि। रुहः पोऽन्यतरस्याम् । पा ॥३॥४३॥ अतिशय आरो- कार्य करते थे और कर्णको पुत्रत्वमें प्रतिग्रह कर पित हुआ, ऊपर रखा गया। लिया ; कर्णके सूतपुत्र कहलानेका यही प्रधान अधिरोह (सं० पु०) अधि-रुह-घञ्। ऊपरका आरोहण, चढ़ाव। कारण था। (लो०) ५ गाडीका असबाब या बोझ । अधिरोहण (सं० लो०) अधि-रूह-ल्युट भावे । अधिरथी (सं० पु०) १ सूर्य, आफताब । २ समुद्र, १ जपरका आरोहण, ऊँचेका चढ़ाव । २ सोपान, बहर। सिडी। 'आरोहणं स्यात् सोपानं ।' (अमर) 2२ हुए थे।