पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३८४

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अध्येषण -अध्वर ३७७ सवाल। 1 मन्त्र। ७हार, अधषण (सं० लो०) अधि-इष प्रेषण णिच् ल्य ट। सुन्लभ वृक्ष है, राहके लोगोंके तोड़कर खानेपर भी १ विनयपूर्वक जिज्ञासा, आजिजीका कोई कुछ नहीं बोलता। २ प्रार्थना, आरज । ३ सत्कारपूर्वक प्रेरण, इज्जतको अध्वगमन (सं० क्लो०) मार्गका जाना, राहका चलना। बिदाई। (स्त्री०) अध्येषणा। अध्वगवृक्ष (सं० पु०) आम्नातक, अमरा। अध्रि (वै० त्रि०) अकृत, न पकड़ाहुअा, हाथसे बाहर। अध्वगामिन् (सं० त्रि०) मार्गमें यात्रा करने या अध्रिगु (वै० त्रि.) अधिकृतो गौर्यस्मिन् मन्त्रे, राह चलेनेवाला। बहुव्री०। 'अधिकृतशब्दस्व अधिभावः, गोशब्दयात्व पगुमानोपलक्षकः ।' अध्वजा (स' स्त्री०) अध्वनि जायते, जन्-ड ७-तत्। इति निरुक्तम् । १ अधृतगमन, अप्रतिहतगति; चलता स्वर्णपुष्यो, स्वर्णली ; एक लता जो राहमें जमती है हुआ, जल्दबाज। (पु.) २ अधिकृत पशुविशिष्ट और जिसमें सुनहले फूल लगते हैं ३ अग्नि । ४ इन्द्र। अध्वन् (सं० पु०) अद-क्वनिप, दकारस्य धकारः । अध्रिज (वै० त्रि०) अतं जनयति, जन-ड अन्त- अध च । उण् ४।११५॥ 'पदनं स्वस्तिगच्छता पक्ष्यादीनां विषमस्थाना- भूतण्यर्थे । १ अतजनक, अध्ष्यजनक, जो रुके नहीं। भावात्। यहा,-अधिगत्यर्थः कचिद्धातुः, बाहुलकात् पूर्वेण वनिप् । गच्छन्त्यस्मिन् देवतादय इत्यध्वा ।' (देवराजः) १ पथ, राह। अधिपुष्पिका (वै० स्त्री०) ताम्बल, नागवल्ली, नागरबल, पान। (Piper betel) २ अन्तरिक्ष, जमीन और आसमानके बीचको खाली अध्रियमाण (सं० त्रि.) १ न पकड़ा हुआ, वैहाथ । जगह। ३ आकाश, आसमान । ४ यात्रा, सफर। २ जो पकड़ा न जाये, वैपहुंच। ३ मृत, मरा हुआ। ५ दूरी, फासिला। ६ काल, समय । अध्रियामणी (हिं. स्त्री०) कटारी, कुरी। जरिया। ८ वायु, हवा। ८ स्थान, जगह। १० वेद- मत। अध्रुव (सं० त्रि०) न ध्रुवम्, नञ्-तत् । १ अनिश्चित । ११ आक्रमण, हमला। २२ स्कन्द, मुका- लह। ठीक नहीं। २ चञ्चल, चुलबुला। १३ अवयव, अजो। योग्य, जो अलग किया जा सके। अध्वनिषेवण (सं० लो०) अध्वचलन, चङ्घमण; अध्रुष (स• पु०) विकृतरतजनित और ज्वरभुक्त हवाखोरी, टहलपहल । शोथरोग विशेष ; खुनक। यह एक तरहको सूजन अध्वनीन (सं० त्रि०) अध्वानं अलं गामी, अध्वन्-ख । अध्वनी बतखी। पा ५।२।१६। राह है, जो मुखमें तालुपर उभर आती है। इसका रङ्ग लाल और इसकी पौड़ासे ज्वर आ जाता है। चलनेवाला। "शोथस्तब्धो लोहितन्तालुदेशे रक्ताज्ज्ञेयः सोऽध्रुषा रुग्चरायः ।" अध्वन्य (सं० त्रि०) अध्वानं अलंगामी, अध्वन्-यत् । (मुचव नि० १६०) खू ब होशियारीसे पथ चलनेवाला। अध्वग (सं० पु०) अध्वानं गच्छतीति, गम-ड। अध्वपति (सं० त्रि०) ७ वा ६ तत् । १ मार्गपालक, अन्तात्यन्ताध्वटूरपारसर्वानन्तेषु डः। पा ३।२।४८.१ पथिक, मुसा- राहका रखवाला। (पु०) २ सूर्य, जो राशिचक्रके फिर। २ उष्ट्र; शुतर, ऊंट। ३ सूर्य, आफताब। राजा हैं। ४ अश्वतर, खच्चर। (त्रि०) ५ राह चलनेवाला। अध्वयत् (वै० त्रि०) १ दौड़ता हुआ। २ शीघ्रगामी, अध्वगक्षमी (सं० पु०) पक्षो, परिन्द । जल्द चलनेवाला। अध्वगत् (सं० पु०) अध्वानं गच्छति, गम-क्किए । अध्वर (वै० पु०) व हिंसाकर्मे घ, ध्वरति ध्वरः; पथिक ; मुसाफिर, बटोही। न विद्यते ध्वरो हिंसा यस्मिन्, नञ्-बहुव्रीः । अध्वगभोग्य, अध्वगभोज्य (सं० पु.) अध्वगन पुसि संज्ञायां घः प्रायण। पा ३।२।११८। १ यन्न । अतिसौलभ्यात् भोग्यः, ३-तत् । आन्नातक वृक्ष, • रहित यज्ञ अर्थात् जिस यज्ञमें कोई विघ्न न हो। अमरा। (Spondias mangifera) अमरा अति निरुक्तमें अध्वर शब्दको अनेक प्रकारसे व्युत्पत्ति को ३ पृथक् करने खूब होशियारीसे %3D २ हिंसा-