पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३९०

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अनङ्गमेजय-अनजान ३८३ जाये। 'राढावरेन्द्रयवनीनयनाञ्जनाश्रुपूरण टूरविनिवेशितकालिमश्री। पहले एक लघु और उसके बाद एक गुरु वर्ण लगाने- तप्रिलम्भकरणागु तनिस्तरण गङ्गापि न नममुना यमुनाधुनाभूत् ॥" से दण्डकका अनङ्गशेखर बनता है। इसके प्रति (२य नृसिहदैवको तामपट्टलिपि ८४ झोक।) चरणमें अट्ठाईस अक्षर होते हैं। (मादला-पञ्जीके मतसे) मन्त्री और पुत्रके अनङ्गसुन्दररस (सं० पु०) वाजीकरणके अधिकार- बाहुवलसे इनका अधिकार बहुत दूरतक फेल पड़ा। का रस, जो रस वृद्धको तरुण बनाने के लिये खिलाया उत्तरमें भागीरथीकूल, दक्षिणमें गोदावरी, पश्चिममें सोनपुरके जङ्गल और पूर्वमें समुद्र-तट-इस बहु "सूतस्य पलं गन्धकस्य च पल रक्तकुमुदरस: दिनवयं भावयेत् विस्तीर्ण राज्यमें यह स्वच्छन्द अकेले आधिपत्य करते ततो वास्लुकायन्त्र प्रहरमात्वं पचत्। अवतार्य रक्तवक पुण्यश्वेतपद्मरमैन थे। राज्यसे जो आय आती, उसका तोयांश यह अपने दिनकं भावयेत् ।" ( रसेन्द्रसारसं०) व्ययके लिये रखते और बचे हुए राजखसे पुरोहितों एक पल पार और एक पल गन्धकको लाल और सैनिकोंका व्यय निकालते थे। कहते हैं, कि बघोलेके रस में तीन दिन घोंटे। इसके बाद बालुका राज्यको उन्नतिके लिये अनङ्गभीमने कितने ही सत्- यन्त्र में इसे डाल तीन घण्टे तक पकाना चाहिये। कार्य किये थे। इन्होंने साठ देवमन्दिर और दश उतारकर फिर तीन दिन लाल बघोले और सफेद बड़ी नदियोंपर सेतु निर्माण कराये, चालीस कूप कमलके रसमें घोंटनेसे अनङ्गसुन्दर-रस तैयार खुदाये, नदी किनारे एकसौबावन घाट बंधाये, साढ़े होता है। चार-सौ ग्राम बसा और उनमें ब्राह्मणोत्तर-भूमि अनङ्गापौड़ (सं० पु०) कश्मीर के एक राजाका नाम । प्रदानकर कितने ही ब्राह्मणोंको बसाया और कृषिमें कश्मीर देखो। जल देनेको सुविधाके लिये दश लाख पुष्करिणी | अनङ्गारि (सं० पु०) कामदेवके शत्रु, महादेव । खुदवाई थीं। प्रवाद है-अनङ्गभीमने, ऐसे धार्मिक अनङ्गा-समझा (सं० स्त्री०) नदीविशेष । ( महाभा० भीमप० ) नृपति होते भी एक ब्राह्मणको मरवा डाला था। इस अनङ्गामुहृत् (सं० पु०) अनङ्गस्य असुहृत्, ६-तत्। महापातकवाले प्रायश्चित्तके लिये यह कठोर तपस्या महादेव, मदनके दुश्मन । करने लगे । अन्तमें पुरौ पहुंच इन्होंने जगन्नाथ देवका अनङ्गुरि ( स० त्रि.) अङ्गुरिरहित, जिसके उंगलियां नाटमन्दिर बनानेकी आज्ञा दी। इन्होंने चौंतीस वर्ष न हों। राजत्व रखा था। अनचहा (हिं. वि.) अनिच्छित, जिसकी चाह न अनङ्गमेजय (सं० त्रि०) शरीर न कंपाता हुआ, हुई हो। जो जिस्म न हिला रहा हो। अनचाहत (हिं० वि०) प्रेम न करनेवाला, जिसे अनङ्गलेख (सं० पु.) लिख्यते यस्मिन् स लेख: चाह न हो। पत्रिका। कामव्यञ्जकपत्र, चिट्ठी जिससे प्यारको अनचौन्हा (हिं० वि०) अपरिचित, अजनबी; जिससे बातें जाहिर हों। (स्त्री० ) अनङ्गलेखा। जान-पहचान न हो। अनङ्गवती (सं० स्त्री० ) कामिनी, सुन्दरी स्त्री। अनचैन (हिं. स्त्री०) असुख, घबराहट ; चैन न अनङ्गशेखर (स• पु०) अनङ्गे कामविषये शेखरः मिलनेको हालत। शिरोमाल्यमिव तद्दई कत्वात्। छन्दोविशेष, एक अनच्छ (सं० त्रि.) न अच्छं निर्मलम्, ६-तत्। तरहको बहर। छन्दोमञ्जरोमें इसका लक्षण यां कलुष, अनिर्मल ; गन्दा, मैला ; जो साफ़ नहीं। लिखा है,-"लघुगुरुनिजच्छया यदा निवेश्यते तदेषदण्डकोभवत्यनङ्ग अनजान (हिं.वि.) १ अनभिज्ञ, नादान। २ अपरि- 'शेखरः।" चित, अजनबी। (पु.) ३ एक तरहको घास जिसे 'अपनी इच्छासे क्रमपूर्वक लघु और गुरु वर्ण अर्थात् प्रायः भैंसें खातीं और जिसे चरनेसे उनके दूधमें