पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३९१

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अनजोखा-अनतिविलम्बित नशा समा जाता ४ वृक्षविशेष, एक पेड़ जिसे शफाफ नहीं। २ अतिशय प्रकट, निहायत नमूदार। 'अनजान' कहते हैं। अनतिभूत (स. त्रि०) सर्वानतिक्रम्य न भवति, अति- अनजोखा (हिं० वि०) परिमाणरहित, बेवजन, भू-डुतच् । यथार्थंभूत, सच्चे तौरसे हुआ। (पु.) बेतौल ; जो जोखा या तोला न गया हो। २ वह मनुष्य जिसे किसीने लांघा न हो, ला-सबकृत। अनञ्जन (स'• क्लो०) न अज्यत लिप्यते ; अञ्ज. अनतिप्रश्ना (सं० त्रि.) न अतिप्रश्नमर्हति यत् । लुपट् कमणि, नञ्तत् । १ आकाश, आसमान। अतिप्रश्नके अयोग्य, ज्यादा सवाल करनेके नाकाबिल । २ वायुमण्डल, हवाका कुरह। ३ विष्णु । (त्रि.) अनतिरिक्त (सं० त्रि.) न अतिरिक्तम्, नत्र-तत्। नञ्-बहुव्रौ। ४ कज्जलशून्य, सुरमेसे खालो। अनधिक, थोड़ा। न्यायमतसे अपनी अन्यूनवृत्ति या ५ दोषरहित, बेएब। प्रमेय अनतिरिक्त है। अनट (हिं० पु०) अत्याचार, उपद्रव ; जुल्म, बलवा । अनतिविलम्बित (सं० स्त्री०) अभावार्थे नत्र-तत् । अनडीठ (हिं० वि०) अदृष्ट, न देखा हुआ। १ अतिविलम्बाभाव, ज्यादा वक़फे.को नामौजूदगी। अनडुजिह्वा (सं० स्त्री० ) अनडुहो-जिह्वे व । गोजिह्वा, २ वाग्गुणविशेष, ज़बानको एक सिफ.त। हेमचन्द्रके अनन्तमूल। इसकी पत्ती मवेशियों को जीभ-जैसो अभिधान-चिन्तामणिमें कई एक वाग्गुण लिखे हैं- होती है। ( Elephantopus Scaber ) "संस्कारवत्वमौदार्यमुपचारपरीतता। मेघनिघोषगाम्भीर्य प्रविनादविधायिता॥ अनडुल्क ( स० त्रि०) बल रखनेवाला, जो बैल रखे। दक्षिणत्वमुपनीतरागत्वश्च महार्थता । अनडुद्द (स० पु.) वृषभदाता, बैलको दान करने- अव्याहतत्व' शिष्टत्व' संशयानामसम्भवः । वाला आदमौ। निराकृतान्योत्तरत्व हृदयङ्गमितापि च । अनडुह (सं० पु.) अनः शकटं वहतीति निपातनात् । मिथः साकाङचता प्रस्तावौचित्य तत्त्वनिष्ठता ॥ चतुरनडुहोरामुदात्त: । पा ७१।६८ अनडान् । १ वृष, बैल जो अप्रकीर्ण प्रस्तत्वमस'वाघ्यानिन्दितता। गाड़ी खींचता है। २ वृषराशि । आभिजात्यमतिस्निग्धमधुरत्व' प्रशस्यता ॥ अमर्मबोधितौदार्य धर्मार्थप्रविबद्धता। अनडुह (सं० पु०) गोत्रविशेषके प्रधानका नाम । कारकाद्यविपर्यासी विधमादिवियुक्तता ॥ अनडुही, अनडाही (स० स्त्री० ) गौ, गाय । चिवकृत्वमडतत्व तथानतिविलम्बिता । अनणु (स० पु०) न अणुः। १ स्थूल धान्य, मोटा अनेकजातिवैचिवामारोपितविशेषता ॥ अनाज। (त्रि.) २ स्थूल, अणुभिन्न ; मोटा। सत्वप्रधानता वर्णपदवाक्यविविक्तताः । अनत (सं० त्रि०) झुका हुआ नहीं, जो नीचा न अव्युत्थितिरखेदित्व पञ्चविशच्च वाग गुणाः ॥ २ सीधा, खड़ा। ३ कठिन, चिमड़ा। 'सब मिलाके पैंतीस वागगुण होते हैं,- ४ अभिमानी, शोख। (हिं० क्रि०वि०) ५ यहां १ संस्कारवत्व-वाक्यके व्याकरणसिद्ध कृत्तद्धित नहीं, किसी दूसरे स्थानमें, दूसरी जगहपर। समासादिका संस्कारगुण अर्थात् व्याकरणशुद्धि ; अनति (सं० त्रि०) अधिक नहीं, न्यून ; ज्यादा नहीं, २ औदार्य-वाक्यको उदारता, महत्व या उत्कर्ष-गुण ; कम। (स्त्री०) २ सुशीलताका अभाव, शायस्तगौकी ३ उपचारपरीतता यथायोग्य शब्द या अर्थका नामौजूदगौ। ३ अहङ्कार, फ़ख र । समावेश-गुण या लाक्षणिक अर्थको शून्यता; ५ मेघ- अनतिक्रम (स पु०) न अतिक्रमः, नञ्-तत् । निर्घोष-गाम्भीर्य-मेघनादकी तरह शब्दका गाम्भीर्य- अतिक्रमका न उठाना, हदसे बाहर न जाना। गुण यानी शब्दका गाढ़ प्रयोग ; ५ प्रतिनाद- अनतिक्रमणीय (सं० त्रि०) नज-तत्। अतिक्रमके विधायिता-उच्चारणकालमें शब्दका प्रतिध्वनि-जनक- अयोग्य, लांघनेके नाकाबिल। गुण ; ६ दक्षिणत्व-सरलता या प्रसाद-गुण; ७ उप- अनतिदृश्य (वै० त्रि.) १ अनुज्ज्वल, मलिन ; जो नौतरागत्व-ऐसा गुण जिसे सुनने या कहनेसे अनु- हुआ हो।