पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३९५

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अनध्याय-अनन्त - विहान् ब्राह्मणके एकोद्दिष्टवादका निमन्त्रण लेने, आज़ाद, अनुगत-भिन्न, मातहतोसे अलग। तुल्याकार राजाके सन्तान जन्मने या चन्द्रसूर्यग्रहण पड़नपर तीन को प्रतीतिका योजक-धर्म अनुगत होता है। दिन अनध्याय होता है। एकोद्दिष्टाडके भोजन अननुगम (सं० पु०) न अनुगमः, अभावार्थे नञ्- पोछे जबतक विद्वान् ब्राह्मण के मस्तकपर कुश्मादिका तत्। अनुगमका अभाव, पोछेका छोड़ना। न्यायके गन्ध या प्रलेप रहेगा, तबतक विद्याध्ययन न होगा मतसे तुल्याकारको प्रतीतिके योजक-धर्मका समालोचन सो, आसनपर पैर रख, टांगपर टांग चढ़ा, आमिष अनुगम कहाता है। खा और जन्ममरणाशौचका अन्न भोजनकर वेद न अनुज्ञात ( स० त्रि०) असम्मत, आज्ञाविहीन, निषिद्ध ; पढ़े। प्रातःसन्धया या सायंसन्ध्याके समय कुज्झटिका नामञ्जर, बेहुक्म, मना। या मेघगर्जन होनसे और अमावस्या, चतुदशी, पूर्णिमा | अननुभावक (स० त्रि.) मूर्ख, नादान ; जो बात और अष्टमी तिथिको वेदाध्ययन निषिद्ध है। अमा समझ न सके। वस्या गुरु और चतुर्दशी शिष्यको नष्ट करतौ और | अननुभावकता ( स० स्त्री०) मूर्खता ; नादानी ; अष्टमी और पूर्णिमा वेदको भुला देती है, इसलिये इन बेसमझो। सकल तिथियों में अध्ययन और अध्यापना छोड़ दे। अननुभाषण (सं० क्लो०) १ किसी साध्यको पुन- धूलि बरसने, दिग्दाह होने, शृगाल कुक्कुर, गर्दभ रावृत्तिका न होना, किसी शक्लका न दुहराना। और बोलने या उनके दल बांधनेसे द्विजाति वेद न्यायमें इसे निग्रहका स्थान मानते हैं। वादीके कोई न पढ़े। श्मशान, ग्रामान्त और गोष्ठ में और विषय तीन बार प्रमाणित करनेसे प्रतिवादीके उसका स्त्रीसंसर्गवाले समयके वस्त्रपहन और श्राडका द्रव्य उत्तर न देने पर अननुभाषण समझा जाता है ऐसे ले (श्राद्धका पक्वान्न खाकर) वेद पढ़ना मना स्थलमें वादी जीतता और प्रतिवादी हारता है। है। श्राद्धका द्रव्य किसी प्राणी या अप्राणीक हाथसे २ मौन स्वीकृति, चुपकेसे मञ्जुरौ। लेनेपर अनध्याय हो जाता है; क्योंकि हस्त ही अननुभूत (सं० त्रि०) अनुभवरहित, नामालूम ;. ब्राह्मणका मुखस्वरूप है। ग्राममें चोरोंका उत्पात अज्ञात, जो समझा-बूझा नहीं। मचने, राहदाहादिसे डराने और कोई भी अद्भुत अननुमत (सं० त्रि०) मानविहीन, बेइज्जत ; अप्रिय, बात देखनेसे आकालिक अनध्याय मानते हैं। नापसन्द ; असह्य, नागवार ; अयोग्य, नाकाबिल । उपाकर्म और उत्सर्ग कर्ममें विरात्र और अष्टका अननुषङ्गिन् (सं० त्रि०) पृथक्, अलग ; बेपरवा । (कृष्णाष्टमी) और ऋतुके अन्त-दिन अहोरात्र अननुष्ठान (सं० लो०) १ अनरीति, बेरस्मी ; अनु- अनध्याय रहता है। घोड़े, वृक्ष, हाथो, नाव, गधे, ठानका न उठाना। २ विस्मरण, भूलचूक । ऊंट, गाड़ी प्रभृतिपर चढ़ और ऊपर देशमें रह ३ असभ्यता, नाशायस्तगी। कर वेद न पढ़े। कहा-सुनी या मारपीट होनेसे अननुक्त (सं० त्रि.) १ अपठित, न पढ़ा हुआ। सैन्यके पास, युवक्षेत्रमें, भोजनसे पीछे हो, अजीर्णमें २ गानरहित, न गाया गया। अप्रदत्त-प्रत्युत्तर, जिस- या वमन करनेपर वेदाध्ययन निषिद्ध है। का जवाब न दिया जाये। अनध्यायदिवस (पु.) पढ़नेकौ छुट्टौका दिन । अनन्त (०सं० पु०) नास्ति अन्तो गुणानां यस्य । अनन (सं० क्लो०) अन-ल्य ट भावे । १ विष्णु, नारायण। २ शेषनाग। ३ मेघ, बादल। जिन्दगी। २ गति, रविश, चाल । ३ श्वास, सांस। ४ बलराम, कृष्णके बड़े भाई । ५ बहुविस्तारयुक्त सिन्धु- अननङ्गमेजय (सं० वि०) शरीरको विना कंपाये न वार वृक्ष, खूब फैला हुआ पानीका संभालु । ६ जिन छोड़नेवाला, जो जिस्मको हिला डाले। विशेष। ७ दुरालभा, लटजीरा। ८ अनन्त नामक अननुगत (सं• त्रि०) न अनुगतम्, नञ्-तत् । स्वतन्त्र, ' चूर्ण, जो सर्वज्वर परचलता है। ८अभ्रक, अबरक। १ जीवन,