पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३९८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अनन्तदेव याजिक-अनन्तपुर ३६१ रचयिता। कार। १२ वेदान्तसारपद्यमालाकार। १३ सिद्धान्त- अनन्तपालय्य-षष्ठ विक्रमादित्य के महाप्रधान मन्त्री, तत्त्व नामसे वैदान्तिक ग्रन्थकार । १४ कारिका जो साढ़े सात लाख पत्राय करका इन्तजाम पश्चिम- नामसे धर्मग्रन्यकार। बम्बईमें करते थे। बेलगांवसे सन् ११०३ ई. की अनन्तदेव याज्ञिक -व्यवहार-दर्प रह और शुद्धिदर्पण के तारीखका जो ताम्रफलक निकला, उनमें इनकी बात लिखी है। अनन्त देवायनि-शिशुपाल-वध-टीकाकार । अनन्तपुर-उड़ीसा बालेश्वर जिले का एक गांव । अनन्तदवज्ञ-नन्दिग्रामवासी केशव दैवज्ञके पुत्र, यहांसे सोरोको एक पक्की सड़क निकली और एक कालनिर्णयावरोध-रचयिता। छोटा-मोटा पुलिसका थाना भी बना है। अनन्तनारायण-१ दाक्षिणात्य के प्रसिद्ध कवि। इन्होंने अनन्तपुर-सन्द्राज प्रान्तका एक जिला। यह सन् संस्कृत भाषामें अानन्द-वल्लो स्तोत्र और शरमोजि १८८२ ई० को ५वीं जनवरीको गूटी, ताडपत्री, चरित्र रचा था। २ प्रसिद्ध नैयायिक, कारिकावल्लो अनन्तर, धर्मावरम्, पेनुकोण्डा, मरकसोर और और तर्कल ग्रहके टीकाकार । हिन्दूपुर इन सात ताल्लुकको मिलाकर बनाया गया, अनन्तनारायण दीक्षित-गीताशङ्कर नामसे संस्कृत जो पहले बेलारी जिले में लगते थे। यह १३°४१ ग्रन्थकार, इनके पिताका मृत्युञ्जय और पितामहका और १५०१४ अक्षांश, तथा ७६°४६' और ७८० नाम कृष्णदीक्षित था। ट्राधिमांशके बीच अवस्थित है। इसका क्षेत्रफल ५५५७ अनन्तनमि (सं० पु०) मालवेके एक राजा, जो वर्गमील और जननिवास कोई छः लाखके लगभग है। शाक्यमुनिके सहयोगी थे। मन्द्राज प्रान्त के जिलों में विस्तारको देखते पन्द्रहवां अनन्तपण्डित-गोदावरीतौरस्थ पुण्यस्तम्भवाले अधि और मनुष्य-गणना देखते बीसवां दरजा इसने पाया वासी बाम्बक पण्डितके पुत्र, इन्होंने व्यङ्गार्थ-कौमुदी है। इसके कोई एक हजार आबाद गांवमें दश नाम्नी काव्य, गोवईनसप्तशतोटोका और रसमञ्जरी शहर भी शामिल हैं। इसके उत्तर वेलारी और टीका रची थी। दक्षिण महिसूर राज्य और करनूल ज़िला, पश्चिम अनन्तपन्यो-युक्त प्रदेश रायबरेली और सीतापुर जिले- महिसूरका राज्य और वेलारी ज़िला, और पूर्व का फिरसे सुधरा वैष्णव सम्प्रदाय। इनकी संख्या कड़ापा जिला सीमाको बांधे है। बहुत कम है। यह अकेले परमेश्वरको मानते, अपने उत्तरीय और केन्द्रीय विभागमें यह जिला जिन्हें अनन्तदेव कहकर पूजते हैं। मुंडवेमें रहने ऊंचा मैदान है, जिसके ऊपर जहां-तहां बड़ी-बड़ी वाले साधु मुन्नादास सोनारका चलाया यह वैष्णव भुरभुरे पत्थरको चटान और नीची पहाड़ी उठी है। सम्प्रदाय विशेष है। कहते हैं, कि जब दुर्भिक्ष बड़े सिवा गांवके दूसरी जगह वृक्ष बहुत कम देख-पड़ते जोरपर था, तब मुन्नादासने लोगोंको सूखेसे बचाया हैं। उत्तरमें काली रुई पैदा करने वाली मट्टी भरी और खेरी, सीतापुर और बहरायच जिले में कितने ही है, किन्तु दक्षिणको आगे बढ़ने लाल पड़ जाती है। उनके चेले बन गये थे। नहीं देखते, कि मुन्नादासने दक्षिणा ताल्लुक में धरातल अधिक पथरीला है, जहां जो उपदेश दिया, उसमें और साधारण वैष्णवोंकी मैदान समुद्रतल से २२०० फीट ऊंचा है। उत्तर बात में कोई भेद हो। ताल्लुकमें पानीको कमी है, किन्तु दक्षिणमें वह भरा अनन्तपार ( स० वि० ) असीम विस्तृतिसम्पन्न, पड़ा है। इस जिलेमें बहनेवाली पवित्र पेन्नार नदी बेहद लम्बा-चौड़ा। वर्षमें बहुत दिनतक सूखी पड़ी रहती है। इसके 'अनन्तपाल (सं० पु.) कश्मीरके एक वीर राजाका वामतटपर हिन्दूपुर शहर है, जहां हिन्दुओंका नाम। कश्मीर देखो। एक अति पवित्र मन्दिर बना, और यात्रौ दर्शन