पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३९९

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३६२ अनन्तपुर । करने जाते हैं। अपने रङ्गीन वस्त्रके लिये प्रसिद्ध वीरत्वका एक स्मारक-जैसा रहा। सन् १६८० ई० में पामिदौ और ताडपत्री भी इधर ही बसे, जिनके महाराज शिवाजीके निर्वाण बाद उनको साहाय्य मन्दिर देखने प्रति वर्ष कोई बीस हजार आदमी देने के कारण औरङ्गज,बने कुचल डाला, किन्तु उनका पहुंचते हैं। जिलेके दक्षिणसे चित्रावती नदी प्रभाव भी अन्तमें प्रतिष्ठित हो न सका और न निकलती और धर्मावरम् और बुक्कायतनम्के बड़े कभी ठीक तौरसे आमदनी हो शाही खजाने में भेजी तालाब भर देती है। मुचूकोटेको नोची और गई। औरङ्गजेबके मरने और निज़ामके ऊंचे उठने पमादुरतौके पासवाली पहाड़ियों में कीमती लकड़ी बाद सब और प्रधानत: गूटीक पलिगार स्वतन्त्र बन पेदा होती है। गूटीमें समुद्रतलसे २१७१ फौट बैठे। इसी बीच महिसूर राज्य हड़पनेवाले हैदर ऊंची बहुत ही अच्छौ किलेको चटान है और अलोको अपना प्रभाव पासके देशपर फैलानेको पेनकोण्डे में भी ३१०० फीट ऊंची दूसरी चटान खड़ी उत्कण्ठा उठी। कोदीकोण्डा, जदकसौरा और है। भुरभुरे पत्थरको चटानका कोई ठिकाना नहीं। हिन्दूपुर तो उन्होंने ले लिया, किन्तु गूटी बराबर तांबा, रांगा, सुरमा और फिटकरी सब कुछ पहा लड़ता रहा और एक पैसा भी उन्हें न दिया। ड़ियोंमें मिलता है। नमक और शोरा मट्टीसे अन्तमें हैदर अलीने गूटीको जीतकर अपना अड्डा निकालते हैं। सन् १८१३ ई०से ताड़पत्री और बनाया और वह महाराष्ट्र और निजामसे लड़ते रहे। गूटीवालो होरेको खानियों में कोई लाभ नहीं हुआ, इधर-उधरके पलायम महिसूरके करद राज्य हो गये किन्तु अब फिर लोगोंका ध्यान उनपर दौड़ने लगा हैदर अलीके मरनेपर वह सब स्वतन्त्र बने। हैदर है। शेर ( बहुतकम), चौता, लकड़ बग्घा, भेड़िया, अलीके लड़के टीपूने गद्दीपर बैठ सब बलवाइयोंके धर काला रौछ, जङ्गली सूअर, बारहसिंहा और हिरण दबाया था। किन्तु टोपूको शीघ्र ही अंगरेजोंसे अधिक है। कितनी ही तरहको शिकारी चिड़ियां लड़ना पड़ा। सन् १७८८ ई० में निज़ामने अनन्तपुर मामूली तौरसे मिलती हैं। तुकदर, मुरगी, तोतर, अंगरेज-सरकारको अपनी ओर की सरकारी फौजके घुग्घू, हंस, तोते और अनेक छोटे पक्षियोंको कोई खर्चमें दे डाला। जब आमदनी वसूल करनेको कमी नहीं। ज़हरीले सांप अकसर देखने में आते ठहरी, तब पलिगारोंने बलवा मचाया था, जिसे हैं। बबूल, बेर और जङ्गली खजूर असली वृक्ष हैं। जनरल कम्बलने भली भांति दबा दिया। बदमाश आम, नारियल, इमली, केले और कितने ही दूसरे अपनी रियासतसे निकाले गये और बाकी लोग वृक्षोंको भी लोगोंने यहां पहुंचाया है। डरकर चुपके हुए; लोगोंके हाथमें प्रबन्धका भार इतिहास-यह ज़िला सन् ई० के १४वे शताब्दके न रहा और उन्हें फौज न रखनेका आदेश बीच विजयनगरके राज्यका एक भाग रहा। सन् दिया गया। १५६५ इ० में तालिकोटके युद्धपर विजापुर, गोलकुण्ड, इस जिले में कितनी ही उजड़ जमीन है। बाकी दौलताबाद और बराड़के सुलतानोंको मिली हुई कोई एक तिहाईपर खेती होती और सैकड़े पीछे फौजने विजयनगरके महाराज रामराजको हराया सोलह एकर भूमि इनाममें लगी है। कितने ही एकर और फिर उनको राजधानी लूट-मारकर तोड़ डाली। भूमि चरागाह और जङ्गलके लिये भी रखी गई है। रामराजके भाई तीरूमल पेनकोण्डेको भागे, जहां खेती तीन भागमें बंटी है,-सींची, सूखी और बागको पहले एक सुविशाल और जनसम्पन्न नगर रहनेके ज़मीन । सूखी जमीनपर विना पानी दिये खेती होती- लक्षण देख पड़ते हैं। विजयनगर-राजके दीवान है। खास फसल कम्ब, चोलम्, रगी और कोरेको चिकघा उदय्यरने अनन्तपुरको सन् १३६४ ई० में है, जिसे खाकर अधिकांश लोग जीते-जागते हैं। प्रतिष्ठित किया था। यह महाराष्ट्रोंके बल और सींचकी जमीनमें चावल और गन्ना बोते हैं। बागको