पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४००

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था। अनन्तपुर ३६३ जमीन नारियल, पान, केला, गेहं, तम्बाकू, मिर्च, चावल ढेरका ढेर कड़ापा, करनूल, बेलारी और हलदी, सबज़ी और मैवा पैदा करती है। खाद भी महिसूर राज्यको भेजा जाता है। रुईको चीजोंमें उसमें देते हैं। बैलकी जोड़ी पछत्तरसे सौ रुपये कपड़ा, रस्सी और फौता खूब बनता है। धर्म- तक आती है। भैंसे सस्ते होते भी हलमें नहीं वरम्के ताल्लुकमें कागज़ भी तय्यार होता है। जोते जाते। खेतीके औजार बहुत ही पुराने हैं। तेलहन, गन्ने, पटसन और नीलका खूब काम-काज फिर भी हालमें कितनी ही चीज़ोंकी उन्नति की गई चलता है। नारियलको मोटी चीनी दूसरी जगह है। पुरानो गाड़ियोंकी जगह नयी गाड़ियां चलने को रवाना की जाती है। गूटो ताल्लुकमें आज भी लगी हैं। लोग अंगरेज़ी रीतिपर खेती करने छींटको छाप जारी है। कितनी ही जगह कांचकी के उत्सुक हैं, पशुओंके रोगी होनेपर लोग उन्हें चूड़ी बनायी जाती है। नमक निकालनेका निषेध अलग रखना चाहते हैं। भाव बढ़ता आया है। है। इस जिलेके बिलकुल उत्तर मन्द्राज-रेलवेको सन् १८५० ई. से पहले मजदूर और कारीगर जो उत्तर-पश्चिम-लाइन लगी, और ताड़पत्री, रयाल- पाते थे, उससे अब उज.रत दूनी चढ़ गई है। फिर चेरुबू, गूटी और गण्डाकुलमें टेशन बनी है। फिर भी मजदूरोंको उज़रतमें अनाज दिया जाता, जिससे भी सड़क और रेल बढ़ानेकी जरूरत है। बङ्ग- भावका बढ़ना उन्हें नहीं अखरता। दूसरी स्थितिमें लरसे सिकन्दराबादको जो बड़ी सड़क गई, वह किसानको लाभ है। कोदीकोण्डे के पास इस जिलेसे मिलती और अनन्त- सन् १७०२-३ ई० में यहां बड़े जोरका दुर्भिक्ष पुर शहर पहुंचने के बाद गूटौके पास अलग हो उस समय चावल रुपयेमें कोई ढाई सेर और जाती है। सड़कें बनानेके लिये जमीनको माल- चना कोई सात सेर बिका। सन् १८०३ ई० में गुजारीपर सवा छ: रुपये सेकड़े महसूल लगाया अन्नका भाव तिगुना बढ़ गया था, जिससे अधिकांश गया है। इस महसूलका एक तिहाई हिस्सा दूसरी लोग यहांसे भाग खड़े हुए। सन् १८३३ ई० में मददके साथ जिलेमें पढ़ाई, टीका और स्थास्थ्यके गूटोके हजारो आदमी हैजे.से मरे। अन्न न मिलनेसे खर्च खपता है, अनन्तपुरमें छापखाने और अख- भी कितने ही लोग चल बसे थे। सन् १८५१ ई० में बारको कोई बात नहीं देख पड़ती। यहां इतने ज़ोरसे तूफान आया था, कि तालाबों और प्रबन्ध-इन्तज़ाम करनेके लिये यह जिला सात सोंचक कारखानोंका बड़ा नुकसान हुवा, और सन् ताल्लुकों में बंटा है,-अनन्तपुर, धर्मवरम्, गूटी, १८५३ ई० में सिर्फ छः इञ्च पानी बरसनेसे सूखा छा हिन्दूपुर, मदकसौरा, पेनू कोण्डा और ताडपत्री। गया। कितने ही पशु इसके कारण मरे, किन्तु दीवानी काररवाईको चार आदलतें हैं,-गांवके शीघ्र ही अकाल-मोचनका काम खुल जानेसे लोगोंके मुनसिफ, जि.लेके मुनसिफ़, और छोटे सिविल प्राण बच गये। सन् १८६६ ई० में फिर दुर्भिक्ष जजकी। सबसे पीछे कही हुई अदालतमें दौरेके पड़ा। अकाल-मोचनके कामने लोगोंका कष्ट बहुत मुकद्दमे भी पेश होते हैं। बेलारौके जज भी सिविल रोका। हैजा इतने जोरसे फूटा, कि बहुतसे आदमी और दौरका काम चलाते हैं। हरेक ताल्लुक में अपने मुरदे न देखने लगे। सन् १८७६-७८ में एक एक कैदखाना बना है। जिलेका जेल बेलारीमें अनन्तपुरपर बड़े जोरसे दुर्भिक्ष दौड़ा था। किन्तु है। सिर्फ अनन्तपुर शहरमें हो मूनिसिपलिटी अकाल-मोचनके काम और ख़रातसे कितना ही प्रतिष्ठित है, जहां स्थानीय संस्कारके लिये कई हजार रुपये प्रति वर्ष खर्च होता है। इस जिलेमें खेतकी उपजके लिये दक्षिण भागमें चावल और पढ़ाईका काम ढीला है, किन्तु उसे बढ़ानेके लिये उत्तर भागमें रूई सबसे बड़ी फसल है। यहांसे यत्न हो रहा है। 99 दूर हुआ।