पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४०७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बनाया था। ४०० अनन्यता-अनन्याश्रित अनन्यता (सं० स्त्री०) अन्य होनेका अभाव, दूसरा शिवका यह वर यथार्थ ही निकला-'ऐसे पतिको न रहनेको हालत ; निरालापन, अनोखापन; एक प्राप्त करो, जो किसी दूसरी स्त्रीको न भजे।' क्योंकि निष्ठा, एकाश्रयता। ईश्वरको उक्ति कभी विपरीत अर्थ नहीं देती अर्थात् अनन्यत्व सलो०) अनन्यता देखो। ईश्वरका वाक्य कभी निष्फल नहीं जाता। अनन्यदास-युक्तप्रदेश गोंडा जिलेके चकदवेवाले एक अननाभाव (सं० त्रि०) अना भाव न रखने अर्थात् कविका नाम। शिवसिंह-सरोज नामक पुस्तकमें केवल ईश्वरसे ध्यान लगानेवाला, जो दूसरा मतलब लिखा है, कि इन्होंने अनन्ययोग नामक एक ग्रन्थ न रखे, परमेश्वरमें ही ध्यान लगाये रहे। अनन्यमनस्, अनन्यमनस्क, अनन्यसानस (सं० त्रि.) अनन्यदृष्टि (सं० त्रि०) अन्य दृष्टि से न देखनेवाला, सम्पूर्ण ध्यानको कार्यमें नियुक्त करनेवाला, जो अपना जो बराबर टकटको बांधकर देखे। पूरा खयाल किसी बातपर जमा दे। अनन्यदेव (सं० पु०) नास्ति अन्यद् यस्मात् सर्व- अनन्ययोग्य (सं० त्रि०) अन्यके उपयुक्त नहों, जो वस्तूनां तदात्मकत्वात् तादृशो देवः । १ परमेश्वर दूसरेके काबिल न हो। जिनको बराबर दूसरा कोई देवता नहीं। २ विष्णु । अनन्यविषय (सं० त्रि०) अन्य विषयका नहीं, पूर्ण अनन्यनिष्याद्य (सं० त्रि.) अन्य द्वारा पूरण किये नियुक्तिके योग्य ; जो पूरे तौरसे काममें लाया जानेको आवश्यकता न रखनेवाला, जो आप ही पूरा जा सके। पड़ जाये। अनन्यविषयात्मन् (सं० त्रि०) अना विषयके आत्मा- अनन्यपूर्वा, अनन्यपूर्विका ( स० स्त्री०) न अन्यः का नहीं, एक ही विषयपर आत्माको लगानेवाला; पूर्वो यस्याः, बहुव्री०। १ अन्यसे अभुक्त स्त्री, जिस जो रूहको पूरे तौरपर किसी बातमें मशग ल करे। स्त्रीके साथ पहले किसीने भोग नहीं किया। अननावृत्ति (स. त्रि०) न अनमा विभिन्ना वृत्तिः २ अविवाहिता बालिका, बिन व्याही लड़की। मनोवृत्तिर्यस्य, बहुव्री। १ एक ही रूपसे मनोयुक्त, याज्ञवल्कसहितामें लिखा है,- जिसका दिल दूसरी ओर न चले। नास्ति अनया "अविप्नु तब्रह्मचर्यों लक्षण्यां स्त्रियमुबहत् । वृत्तिः जीवनोपायो यस्य । २ एकमात्र जीवनोपाय- अनन्धपूर्वि कां कान्तामसपिण्डां यवीयसौम् ।” ( २।४२) विशिष्ट, जिसके गुज.रको दूसरी तदबीर न लगे। 'ब्रह्मचर्यके बाद सुलक्षणा, अविवाहिता, मनोज्ञा, अननासाधारण (सं० त्रि०) न अनास्य अनाधर्मस्य असपिण्डा और वयःकनिष्ठासे स्त्रीसे विवाह करना साधारण: सदृशः। अपना-जैसा दूसरा न रखनेवाला, चाहिये। सबसे निराला। अनन्यप्रतीक्रिय (सं० त्रि०) प्रतीकारका अन्य उपाय अननाहृत, (सं० त्रि०) अनासे हृत नहीं, जिसे न रखनेवाला, जिसे रोकको दूसरी तदबीर न सूझे । अनन्यभव (सं० त्रि०) अन्यसे उत्पन्न न होनेवाला, | अननग्रादृश ( स० त्रि०) अनाके समान नहीं, एकाकी, दूसरा न उठा ले जाये ; सुरक्षित, महफ ज.। जो आप हो आप पैदा हो। अनन्यभाज (सं० त्रि०) न अनय अनवां वा भजते, | अनन्यवर्थ ( स० त्रि.) अन्य अर्थ न रखनेवाला, जो दूसरे जैसा न देख पड़े, एकता। भज-खि ; उप० स० । भजोखिः। पा ३२ अना पुरुष या अना स्त्रीको सेवा न करनेवाला, जो दूसरे मर्द या | अनन्याथित (स'• त्रि०) अन्यका आश्रित नहीं, प्रधान ; जो दूसरी चीज़से ताल्लुक न रखे, खास । दूसरी औरतकी खिदमत न करे,- "अनन्यभाचं पतिमान हीति सातथ्यमेवाभिहिता भवेन । स्वाधीन ; जो दूसरेका सहारा न लेता हो, आजाद। नहीश्वरव्यातयः कदाचित् पुश्चन्ति लोके विपरौतमर्थम् ।' अदालतमें अनन्याश्रित वह सम्पत्ति कहाती है, (कुमारसम्भव, श६२) जिसमें कोई झगड़ा झञ्झट नहीं रहता।