पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४१५

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४०८ अनन् -अनलवार अनन् (सं० वि०) अर्द-हिंसायां क्वनिप् ; न अर्वा, | नलराजाको नामौजूदगी। (त्रि०) १७ गन्धशून्य, नञ्-तत्। शत्रु भिन्न, दुश्मन नहीं; जो वैरी बेखुशबू। १८ अपर्याप्त, जो चुक गया हो। न हो। अनलङ्करिष्णु (सं० त्रि०) १ अलङ्कार पहननेका अनर्विश् (वै० त्रि०) अनसा शकटेन विशति प्राप्नोति ; अभ्यास न रखनेवाला, जिसे जेवर पहननेकी आदत विश-क्विप, ३-तत् । रोऽमुपि । पा ८।२।६६। १ शकट द्वारा न हो। २ अलङ्कार-रहित, बेगहना। काष्ठ लानेको वनमें फिरनेवाला, जो गाड़ी ले जङ्गलको अनलचूर्ण (सं० पु०) बारूद, आगका मसाला। लकड़ी बटोरने जाये। २ गन्तव्य स्थल में गमन करनेको अनलदीपन (सं० क्लो०) अनलं जठरानलं पित्त- असमर्थ, मनज़िले मकसूदपर न पहुंच सकनेवाला। धातुवर्धनेन दीपयति वर्धयति ; दीप-णिच्-ल्युट् । (पु.) २ सारथी, गाडीबान। जठरानलदीपक द्रव्य, अग्निबुद्धिकर ; मुकब्बी मेदा, अनर्शनि (वै० पु०) दैत्यविशेष, एक राक्षसका पेटको ताकत देनेवाली चीज । नाम । इन्द्रदेवने इसे मार डाला था। अनलनामा (सं० पु०) चित्रक वृक्ष, चौत । अनर्शराति (सं० त्रि.) अर्शशब्दोऽश्लीलवाचौ। रात: अनलपक्ष (सं० पु.) पक्षिविशेष, एक तरहको क्तिन् इति रातिर्दानम्। अनीलविषया रातिर्दान' यस्य सोऽर्श चिड़िया। लोग कहते हैं, कि यह सदैव आकाशमें रातिः पापकदानस्तविपरीतोऽनर्शरातिः। (इति निरुक्तटौकायां देवरान:) उड़ते रहती और वहीं अण्डे भी देतो; जो भूमिपर १ अपापक दान देनेवाला, जिसकी दी हुई चीज़ गिरनेसे पहले फूटता और बच्चा फड़फड़ाकर अपने तकलीफ न पहुंचाये। २ पापिष्ठ-भिन्न अन्य व्यक्तिको पिता-माताकी छातीसे जा चिपटता है। जो दान दे, सत्पात्रको देनेवाला ; गुनहगार छोड़ अनलपङ्घ (हिं.) अनलपक्ष देखो। दूसरे शखशको बख शनेवाला, जो भले आदमौको अनलपङ्खचार (हिं. पु.) हस्तौ, हाथी। बख शे। अनलप्रभा (सं० स्त्री०) अनलस्य प्रभा इव प्रभा यस्य, अनह (सं० त्रि०) न अहः योग्यः, नञ्-तत् । १ दण्ड बहुव्री०। ज्योतिष्मती लता, रत्नज्योति, रतनजोति। या पुरस्कारके अयोग्य, जो सजा या जज़ाके काबिल अनलप्रिया (सं• स्त्री०) अनलस्य प्रिया, ६-तत्। न हो। २ अपर्याप्त, अनुपयुक्त ; कसौर, नाकाबिल ; स्वाहानामक दक्षकन्या, अग्निकी पत्नी, विसर्ग। कम, भद्दा। वर्णाभिधानमें कहा है, "विठः स्वाहानलप्रिया ।" सिवा अनह्यता (सं० स्त्री०) १ विशुद्ध रौतिसे परिमाण इसके राघवभट्टने भी लिखा है,-"ठिः खाहा ठकारण न बांधे जानेको स्थिति, हालत जिसमें ठीक तौरसे लिपिमास्यादिन्दुरुच्यते। तस्य हित्व तेन विसर्ग: सच शक्तिरुपः तेन दिठ- अन्दाज़ न लगे। २ अपर्याप्तता, अनुपयुक्तता ; कसर, शब्द नाग्निशक्तिः स्वाहा।" मतलब यह, कि हिठ और स्वाहा नाकाबिलियत ; कमी, भद्दापन। पर्याय शब्द हैं। ठकार देखनेमें विन्दु-जैसी होती अनल (सं० पु०) नास्ति अलं पर्याप्तिः परिच्छेदो है। उसे हित्व करने अर्थात् दो विन्दु लगानेसे ही यस्य प्रभावात् नज-बहुव्री० । १ अग्नि, वह्नि विसर्ग बनता है। वह विसर्ग शक्तिका रूप है। आतिश, आग। २ शरीरका पित्तधातु, जिस्ममें रहने इसलिये हिठ शब्द अग्निशक्ति स्वाहाको सुझाता है। वाला सफरा।३ आठ वसुवोंमें पांचवें वसु ।४ कृत्तिका अनलवत्-बम्बई प्रान्त के सूरत जि.लेके शुक्ल खरका नक्षत्र। ५ वायु, हवा। ६ वासुदेव। ८ मुनिविशेष । मन्दिर। यह सङ्गेमूसासे बना है। ८.चित्रक, चौत। ८ भल्लातक, भिलावां । १० देव- | अनलवात (सं० पु०) प्राचीन पटने का नाम । धान्य। ११ रकार अक्षर। १२ तीनकी गिनती। अनलवार (अनहल्वाड़)-गुजरातके एक प्राचीन नमर- १३ वार्हस्पत्य षष्टिसंवत्सरका पन्द्रहवां वर्ष । १४ पिढ का नाम । आजकल यह वौरवल-पत्तनके नामसे प्रसिद्ध देवविशेष । १५ विष्णु। (क्लो०) १६ नलका अभाव, है। मुसलमानोंने इसका नहरवाल नाम लिखा है सन्